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पिता के सपने को बेटे ने लेफ्टिनेंट बन पूरा किया

डबुआ में आटा चक्की चलाकर परिवार चलाने वाले सरदार विक्रम सिंह के सपने को बेटे अर्शदीप सिंह ने पूरा किया है। विक्रम सिंह ने सेना में भर्ती होने का सपना देखा था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के चलते...

अर्शदीप सिंह
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जाह्नवी
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लक्ष्य
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सुहानी
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विष्णु
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कार्यालय संवाददाता,फरीदाबादSat, 17 Jun 2017 11:55 PM
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डबुआ में आटा चक्की चलाकर परिवार चलाने वाले सरदार विक्रम सिंह के सपने को बेटे अर्शदीप सिंह ने पूरा किया है। विक्रम सिंह ने सेना में भर्ती होने का सपना देखा था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के चलते नहीं जा सके। शादी के बाद पत्नी से पहले ही कहा था कि बेटा होगा तो सेना में ही भेजेंगे। 1994 को बेटे अर्शदीप का जन्म हुआ तो उसे बचपन से ही सेना की वीरता के किस्से सुनाकर प्रेरित किया। अर्शदीप ने सेना प्रवेश योजना में आवेदन किया और चयनति हुए। 6 जुलाई 2013 को बिहार के गया में सेनाधिकारी प्रशिक्षण अकादमी में प्रशिक्षणरत हुए। अर्शदीप 10 जून 2017 को प्रशिक्षण पूरा करके सेना में लेफ्टिनेंट बनकर घर लौटे हैं। 

पिता की रोशनी है राष्ट्रीय स्तर खिलाड़ी जाह्नवी
केंद्रीय विद्यालय-1 में बतौर जूड़ो, कराटे, डांस और स्केटिंग शिक्षक तैनात राजीव को खुद भले ही धुंधला दिखता हो। लेकिन उनके सपनों को पूरा कर राष्ट्रीय स्तर तक कामयाबी के झंडे गाड़ने वाली बेटी आंखों में चमक की वजह है। आठ साल की उम्र में दुर्घटना का शिकार हुए राजीव की आंखें लगातार अपनी रोशनी खोती जा रही हैं। स्केटिंग की कोचिंग भले ही देते हैं लेकिन खुद नहीं खेल सके। इसी साल 12वीं करने वाली बेटी जाह्नवी ने पिछले साल पूणे और 2015 में जयपुर में हुए राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। वहीं स्कूल फेडरेशन गेम्स और राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। इसके साथ उनका बेटा भी स्केटिंग में राष्ट्रीय खिलाड़ी है। 

पिता का मिला साथ तो लक्ष्य ने विदेशों तक कमाया नाम
हाल ही में 12वीं पास करने वाले लक्ष्य कौरा साइंस को मजेदार और आसान प्रयोगों के जरिए समझाने में महारथ हासिल कर विदेशों तक छाए हैं। पिता संजीव कौरा सीए हैं और साइंस के क्षेत्र में कुछ करने का अरमान बेटे के जरिए पूरा कर रहे हैं। 12 वर्ष की उम्र में आई क्यूब साइंस क्लब बनाने वाले लक्ष्य शिक्षा विभाग के साथ 75 स्कूलों में काम कर चुके हैं। तिब्बत और अफगानिस्तान के शिक्षक भी इनसे ट्रेनिंक पा चुके हैं। 2014 अल जजीरा ने लक्ष्य को भारत में हो रही क्रांति के तौर पर लक्ष्य को कवरेज दिया था। आस्ट्रेलिया इनोवेशन पेटेंट का सर्टिफिकेट दे चुका है तो गूगल साइंस फेयर में एशिया में टॉप-10 में रहे। 
 
पापा के मार्गदर्शन से बॉलीवुड तक पहुंची सुहानी
दंगल फिल्म में बबिता फोगाट के बचपन का किरदार शहर की सुहानी ने निभाया है। पहलवान महावीर सिंह फोगाट और फोगाट बहनों के किरदार बनी इस फिल्म में सुहानी ने अपनी आदायगी के साथ छाप छोड़ी है। पिता पुनीत ने बताया कि बचपन में फिल्में देखने का काफी शौक था। लेकिन बेटी की सफलता ने फिल्मी जगत को नजदीक से देखने का मौका दिया। फिल्म में जगह बनाने के लिए सुहानी ने लाखों प्रतिभागियों को पछाड़ा और हर कदम पर मां ने संभाला तो पिता ने मार्गदर्शन दिया। सेक्टर-19 स्थित डीपीएस स्कूल में कक्षा 8 की छात्रा सुहानी ने आठ साल की उम्र में पहला विज्ञापन किया था। फिल्म से पहले सुहानी कई किड्स विज्ञापनों में नजर आ चुकी हैं।
 
खुद का सपना बेटे को डॉक्टर बना पूरा किया
बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना जब परिवार की आर्थिक तंगी के आगे टूट गया तो बेटे के जरिए उस ख्वाब को पूरा करने की ठानी। राजीव कॉलोनी निवासी जसवंत मुद्गल के बेटे विष्णु मुद्गल महाराष्ट्र से एमबीबीएस कर रहे हैं। जसवंत बताते हैं कि पढ़ाई में तेज थे लेकिन गरीबी के चलते एमबीबीएस नहीं कर पाए। परिवार की आर्थिक तंगी बच्चों की जिंदगी के आड़े ना आए इसलिए खुद कई कंपनियों में नौकरी की। फिलहाल बतौर एलआईसी एजेंट काम कर रहे हैं। बेटे का सपना आर्मी में चिकित्सा सेवा देने का है। उनका कहना है कि बेटो को डॉक्टर बनते देखना ऐसा है जैसे खुद का सपना पूरा हो गया। 

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