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ट्रिपल तलाक : निकाहनामे में लिखेंगे तीन तलाक न लें-पर्सनल लॉ बोर्ड

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने गुरुवार को कहा है कि तीन तलाक को खत्म करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। देशभर में काजियों से कहा गया है कि वे...

ट्रिपल तलाक : निकाहनामे में लिखेंगे तीन तलाक न लें-पर्सनल लॉ बोर्ड
श्याम सुमन,नई दिल्लीेFri, 19 May 2017 07:11 AM
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तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने गुरुवार को कहा है कि तीन तलाक को खत्म करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। देशभर में काजियों से कहा गया है कि वे विवाह कराते समय निकाहनामे में पति से यह लिखवा लें कि वह तीन तलाक नहीं कहेंगे। 


पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को पूछा था कि क्या निकाहनामे में महिला को तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जा सकता है। बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि पीठ के इस सुझाव के बाद बोर्ड की बैठक हुई और उसमें फैसला किया गया कि तैयार किए जा रहे आदर्श निकालनामे में तीन तलाक न देने का अहद करवाया जाए। इसके लिए पति से यह लिखवाया जाएगा कि वह तीन तलाक का प्रयोग नहीं करेंगे। 


इस पर जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि क्या पर्सनल लॉ बोर्ड हमें वह मजमून दे सकता है जो काजियों को लिखा जा रहा है। सिब्बल ने कहा यह उर्दू में है और इसका अंग्रेजी में तर्जुमा कराने के बाद कोर्ट को सौंप दिया जाएगा। उन्होंने फिर कहाकि कोर्ट समुदाय के पर्सनल मामलों हस्तक्षेप न करें, समुदाय इसे सुलझा लेगा। हम खुद कह रहे हैं कि तीन तलाक उचित नहीं है यह खराब, पापपूर्ण और बेहद अवांछित है। इस पर जस्टिस कुरियन ने पूछा कि जो पापपूर्ण है उसे आप कानून कैसे मान सकते हैं। 


सिब्बल ने कहा, बहुत सारी पापपूर्ण चीजें समाज में हो रही हैं और औरतें इसे स्वीकार कर रही हैं। इस पर कोर्ट में मौजूद महिला वकील चिल्ला उठीं नो...नो....। 
सिब्बल ने कहा, कोर्ट संविधान पीठ में बैठकर इस बात को तय नहीं कर सकता कि क्या पाप है और क्या नहीं। यह फिसलन भरा ढलान है, यदि कोर्ट ने इस पर हस्तक्षेप किया तो कई पर्सनल लॉ में जारी व्यवहारों को चुनौती दी जाएगी। कृपया ऐसा मत कीजिए। यह कोर्ट के क्षेत्राधिकार का मामला नहीं है। 


उन्होंने कहा, अनुच्छेद 25 की कसौटी पर पसर्नल लॉ को नहीं परखा जा सकता। पूरे मामले में मुद्दा तलाक का नहीं है बल्कि इसकी प्रक्रिया का है। इस्लामिक कानून में इज्मा (आम सहमति) का महत्व है। इसके जरिये कानूनों को बदला जाता है। कोर्ट इसे नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि हम महिलाओं के साथ हैं, उनके खिलाफ नहीं। 

 

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मुख्य न्यायाधीश ने तुरंत महिलाओं से कहा कि अब बहस की गुंजाइश नहीं है, बोर्ड आपके साथ आ गया है। इस पर कोर्ट में हंसी के ठहाके लग गए। इसके साथ ही संविधान पीठ ने छह दिन चली बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 
 

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