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हम दहशतगर्द जमातों को धन नहीं देते

करीब सवा तीन करोड़ की आबादी वाले सऊदी अरब में 25 लाख से ज्यादा हिन्दुस्तानियों की मौजूदगी यह बताने को काफी है कि दोनों देशों के रिश्ते कितने गहरे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में न केवल अरब...

हम दहशतगर्द जमातों को धन नहीं देते
निर्मल पाठकMon, 17 Jul 2017 01:05 AM
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करीब सवा तीन करोड़ की आबादी वाले सऊदी अरब में 25 लाख से ज्यादा हिन्दुस्तानियों की मौजूदगी यह बताने को काफी है कि दोनों देशों के रिश्ते कितने गहरे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में न केवल अरब देशों से आयातित तेल और प्राकृतिक गैस ने अहम भूमिका निभाई, बल्कि खाड़ी के देशों में कार्यरत भारतीयों के योगदान ने भी हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्ध किया है। मगर हाल के महीनों में पश्चिम एशिया के हालात तेजी से बिगडे़ हैं। कतर के खिलाफ पड़ोसी देशों की गोलबंदी इसकी नजीर है। इनसे हमारी चिंताएं बढ़ी हैं। इन सभी मसलों पर भारत में सऊदी अरब के राजदूत सौद बिन मोहम्मद अल साते से हिन्दुस्तान के राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक ने बातचीत की-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में इजरायल की यात्रा पर थे। आप कुछ कहेंगे इस पर?
यही कि आपके प्रधानमंत्री इजरायल यात्रा पर थे... बस यही।

किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली इजरायल यात्रा थी। पहली बार भारत ने इजरायल के साथ फलस्तीन को दौरे में शामिल नहीं किया। अरब देश इसे किस तरह देखते हैं?
देखिए, अरब देशों के साथ भारत के संबंध एकदम अलग हैं। हजारों साल पुराने और लोगों द्वारा संचालित हैं। भारत ने कई मौकों पर यह साफ किया है कि फलस्तीन को लेकर उसकी नीति व उसके रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। इसी वर्ष मई में फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की यात्रा पर आए थे। पिछले वर्ष अगस्त में आपकी विदेश मंत्री ने अरब लीग की बैठक में भी यह साफ कहा था कि फलस्तीन को लेकर भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं है और फलस्तीन के लोगों को उसका पूरा समर्थन है। भारत और फलस्तीन के बीच ऐतिहासिक तौर पर मित्रता की जड़ें काफी गहरी हैं। फलस्तीनी मकसद को समर्थन के अलावा भारत उसकी विकास परियोजनाओं के लिए आर्थिक व तकनीकी मदद भी उपलब्ध कराता रहा है। हमारे संबंध  समय की कसौटी पर हमेशा खरे उतरे हैं, इससे ज्यादा और मैं क्या कह सकता हूं?

हाल ही में सऊदी अरब और उसके मित्र देशों ने कतर के साथ अपने संबंध खत्म करने का फैसला किया। अचानक ऐसा क्या हुआ कि यह कठोर फैसला करना पड़ा?
अचानक कुछ नहीं हुआ। यह गलत धारणा है। हमलोग 2012 से ही कतर के शासकों पर दबाव बना रहे थे कि वे उन अतिवादी संगठनों को मदद देना बंद करें, जो खाड़ी के देशों की सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं। कतर की सरकार ने 2013 और 2014 में इस आशय के समझौते पर हस्ताक्षर भी किए। उसने कहा था कि वह उन आतंकवादी संगठनों को मदद देना बंद कर देगी, जो सऊदी अरब, बहरीन, मिस्र और यूएई की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। लेकिन समझौते की शर्तों को लागू करने में कतर ने लगातार आनाकानी की। एक ओर कतर सरकार हमें आश्वासन दे रही थी और दूसरी ओर हिज्बुल्ला व मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे आतंकवादी संगठनों की मदद भी कर रही थे। खाड़ी क्षेत्र और विश्व के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए इस बार सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन, यूएई, यमन, मालदीव, लीबिया, मॉरीसीयाना और कोमोरोस सहित नौ इस्लामी देशों ने कतर से अपने राजनयिक संबंध खत्म करने का फैसला किया है। इससे आतंकवाद के खिलाफ सऊदी अरब की ‘जीरो टॉलरेन्स’ की नीति का दृढ़ संदेश गया है।

एक महीने से ऊपर हो गया फैसला किए हुए, क्या इसका कोई असर पड़ा है?
सऊदी अरब, मिस्र, यूएई और बहरीन ने 23 जून को कतर सरकार के सामने 13 मांगें रखी थीं। आतंकवाद पर अपनी नीति बदलने को उसे 10 दिन का वक्त दिया गया। बाद में दो दिन और बढ़ाया गया, लेकिन इन मांगों को लेकर कतर की प्रतिक्रिया सकारात्मक नहीं है। उसके झगड़ालू रवैये का खाड़ी क्षेत्र में शांति व मित्रता की संभावनाओं पर बुरा असर पड़ा है।

आपकी मांगों में एक शर्त समाचार चैनल ‘अल जजीरा’ को बंद करने की भी है। इसकी काफी आलोचना हुई है।
यह काफी निराशाजनक है कि कतर अपने समाचार माध्यमों का इस्तेमाल शरारतपूर्ण गतिविधियों के लिए कर रहा है। अल जजीरा  खाड़ी क्षेत्र में तथा खाड़ी क्षेत्र के बारे में झूठी खबरें फैलाने के अलावा सामाजिक अस्थिरता और घृणा फैलाने का काम कर रहा है। 

सऊदी अरब के फैसले पर भारत ने भी चिंता जताई है। क्या भारत सरकार से आपकी बात हुई है?
भारत सरकार कतर में अपने नागरिकों की सुरक्षा-सलामती को लेकर चिंतित है। वह हालात पर नजर बनाए हुए है। क्षेत्र के हालात पर अपने एक बयान में भारत ने यह कहा है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, हिंसक अतिवाद और धार्मिक असहिष्णुता न केवल क्षेत्रीय स्थायित्व, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी गंभीर खतरा है और सभी देशों को समन्वय के साथ समग्र रूप से इसका सामना करना चाहिए। अपने आप में यह काफी स्पष्ट वक्तव्य है। एक और बात, जो मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि कतर के खिलाफ किसी तरह के प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं, जैसा कि मीडिया का एक वर्ग गलत तरीके से प्रचारित कर रहा है। कतर जहां चाहे जैसे चाहे, चाहे समुद्र मार्ग से या फिर वायु मार्ग से अपने सामान भेज सकता है और सामान मंगा सकता है। वह केवल हमारे हवाई क्षेत्र या समुद्री क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं कर सकता। मेरे ख्याल से एक संप्रभु राष्ट्र होने के नाते हम अपने हितों की सुरक्षा के लिए ऐसा करने को स्वतंत्र हैं।

आपको क्या लगता है, यह मामला कितना बढ़ेगा? क्या एक और युद्ध की तरफ आप बढ़ रहे हैैं?
अभी तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि हमलोग विचार-विमर्श कर रहे हैं। एक बात समझने की है कि हम कतर के लोगों के खिलाफ नहीं हैं। हमने यह सुनिश्चित किया है कि सऊदी अरब में रह रहे कतर के नागरिकों को किसी तरह की दिक्कत न हो। कतर की सरकार ने जिस तरह इस मसले को लिया है, उससे हम खुश नहीं हैं।

आपको लगता है कि जो देश आतंकियों की मदद करते हैं,  उन्हें अलग-थलग करने का वक्त आ गया है?
जैसा कि हमारे विदेश मंत्री अल जुबीर ने हाल में जी-20 की बैठक में दोहराया है कि सभी देश आतंकवाद से लड़ने के पक्ष में हैं और इसे आर्थिक सहायता देने के सिद्धांतत: खिलाफ हैं। लगभग सभी देश घृणा फैलाने व उकसावे की कार्रवाई के खिलाफ हैं। सभी देश अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के खिलाफ हैं और सभी आतंकवादियों को प्रश्रय देने का विरोध करते हैं। जी-20 के नेताओं की ओर से जारी वक्तव्य इस मायने में सुकून देने वाला है। संदेश साफ है कि विश्व एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लडे़। 

आप जानते हैं कि भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद का शिकार है। भारत अगर पाकिस्तान के खिलाफ इसी तरह का प्रस्ताव करता है, तो क्या आप उसका समर्थन करेंगे?
जहां तक आतंकवाद से लड़ाई का सवाल है, तो सभी देशों को इसके लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। जी-20 में भारत का रुख इस मामले में काफी स्पष्ट भी था...। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि भारत और पाकिस्तान को क्या करना चाहिए, मगर एक सुझाव बातचीत के जरिए समाधान तलाशने का है। हम उम्मीद करते हैं कि भारत व पाकिस्तान के बीच बातचीत की प्रक्रिया शुरू होगी, क्योंकि मतभेद सुलझाने का यही बेहतर तरीका है। जहां तक हमारा सवाल है, तो हमारे भारत और पाकिस्तान, दोनों से ही बहुत अच्छे संबंध हैं और हमें खुशी होगी, यदि हम किसी भी तरह से मदद कर सके।

सऊदी अरब पर यह आरोप भी लगता रहा है कि वह भारत में वहाबी पंथ को बढ़ावा देने के लिए कुछ मुस्लिम संगठनों को धन मुहैया कराता है।
सऊदी अरब ने काफी कोशिश करके यह सुनिश्चित किया है कि उसके यहां का एक भी पैसा आतंकवादी संगठनों तक न पहुंचे। इसलिए इस तरह के आरोप बेबुनियाद हैं और   इनमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। सऊदी अरब और भारत संयुक्त रूप से अपने नागरिकों की खुशहाली व क्षेत्रीय शांति स्थापित करने को प्रतिबद्ध हैं। सच यह है कि सुरक्षा व रक्षा के मोर्चे पर दोनों देशों के बीच सहयोग काफ ी मजबूत है।

लंदन के एक थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में सऊदी अरब पर यह आरोप लगाया है कि वह ब्रिटेन में इस्लामी उग्रवाद को मदद दे रहा है।
इस थिंक टैंक की रिपोर्ट को कट पेस्ट जॉब बताकर कई विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना की है। खाड़ी क्षेत्र के हालात के मद्देनजर इस समय इस रिपोर्ट का आना भी संदेह पैदा करता है। रिपोर्ट किसी सुबूत पर आधारित नहीं है और न ही इसमें कोई विश्लेषण है। इसमें सऊदी अरब पर केवल आरोप लगाए गए हैं। यह सच्चाई है कि सऊदी अरब ने विदेशी लड़ाकों, आत्मघाती दस्तों और अल-कायदा व आईएसआईएस जैसे संगठनों की हमेशा निंदा की है।

लेकिन कतर के खिलाफ आपके कदम को बहुुत समर्थन नहीं मिला है। एशियाई देशों में भी केवल मालदीव आपके साथ आया है?
न तो सऊदी अरब ने और न ही दूसरे खाड़ी देशों में से किसी अन्य ने ऐसा कोई आह्वान किया है कि दुनिया के देश कतर के साथ अपने संबंध समाप्त करें। जिन नौ देशों ने कतर के साथ संबंध समाप्त किए हैं, उन्होंने आतंकवाद के प्रति कतर के रवैये को देखते हुए अपने आप किए हैं।

सऊदी अरब में काम करने वालों में एक बड़ी संख्या भारतीयों की है। उनके साथ खराब व्यवहार को लेकर यहां लगातार शिकायतें मिलती रहती हैं।
पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सऊदी अरब की यात्रा पर गए थे, तब वहां काम कर रहे भारतीय मजदूरों की समस्याओं को देखने व उनका समाधान करने के लिए एक संयुक्त कार्यदल के गठन का फैसला किया गया था। शिकायतों के समाधान के लिए दोनों देशों ने कई कदम उठाए भी हैं। कर्मचारियों, मजदूरों का चयन करने वाली एजेंसियों सहित चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है। ज्यादातर शिकायतें उनकी होती हैं, जो या तो स्वतंत्र रूप से वहां पहुंचते हैं या अवैध तरीके से। कई बार शिकायतें बढ़ा-चढ़ाकर भी पेश की जाती हैं। बावजूद इसके हर शिकायत को गंभीरता से लिया जाता है। एक और बात। पहले की तुलना में अब भारत से वहां जाने वालों में प्रोफेशनल बढ़ रहे हैं। कुल भारतीयों मेें करीब पचास फीसदी डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक हैं।

यह भी कहा
सऊदी अरब की जेलों में बंद भारतीय कैदियों को वापस भेजने को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था। उसमें क्या प्रगति है?
यह समझौता साल 2015 में हुआ था। इसके तहत जिन कैदियों को सऊदी अरब में सजा सुनाई गई है, उन्हें अपनी सजा काटने के लिए उनके देश भेजने का समझौता हुआ था। उस वक्त सऊदी अरब की जेलों में करीब 1,500 भारतीय कैदी थे। क्या आप अंदाज लगाएंगे कि इनमें से कितने भारत आए? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनमें से एक ने भी अपनी सजा  भारत में काटने की इच्छा नहीं जताई। सभी भारतीय कैदी अपनी सजा वहीं पूरी  करना चाहते हैं। अब इससे आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे? 

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