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एक शाहजहां ऐसा भी... पेंशन के पैसे से पत्नी की याद में बनवा रहे ‘ताज महल’

मुगल बादशाह शाहजहां अपनी बेगम की याद में ताज महल खड़ा करने वाले अकेले नहीं हैं। यूपी के सेवानिवृत्त पोस्टमास्टर फैजुल हसन कादरी ने भी अपनी मरहूम बीवी के प्यार में ‘मिनी ताज महल’ तैयार...

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पीयूष खंडेलवाल,नई दिल्लीSat, 24 Jun 2017 05:28 PM
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मुगल बादशाह शाहजहां अपनी बेगम की याद में ताज महल खड़ा करने वाले अकेले नहीं हैं। यूपी के सेवानिवृत्त पोस्टमास्टर फैजुल हसन कादरी ने भी अपनी मरहूम बीवी के प्यार में ‘मिनी ताज महल’ तैयार करवाया है। हालांकि पैसों की किल्लत की वजह से वह इस पर संगमरमर की परत नहीं चढ़वा पाए हैं।

दूसरों की मदद नहीं चाहिए
-81 वर्षीय कादरी दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर बुलंदशहर के कासर कलां गांव में रहते हैं। 2011 में गले के कैंसर से पत्नी ताजामौली बेगम की मौत के बाद उन्होंने उस स्थान पर ताज महल की प्रतिकृति बनवाने का फैसला किया, जहां ताजामौली को दफनाया गया था। 2015 तक कादरी के मिनी ताज महल का ढांचा भी तैयार हो गया। हालांकि तब तक उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो चुकी थी। ऐसे में ढांचे पर संगमरमर लगवाने का काम बीच में रोकना पड़ा। जब यह बात यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पता चली तो उन्होंने निर्माण कार्य में आर्थिक मदद की पेशकश की। हालांकि कादरी इस बाबत राजी नहीं हुए। अलबत्ता उन्होंने पास की अपनी एक जमीन दान में देते हुए सरकार से उस पर स्कूल बनवाने की गुजारिश की।

बच्चियों की शिक्षा ज्यादा जरूरी
कादरी शिक्षा को महिलाओं के विकास का सबसे सशक्त जरिया मानते हैं। वह इलाके में ऐसा स्कूल चाहते थे, जिसमें सभी धर्म की बच्चियां साथ बैठकर न सिर्फ प्रेम, भाईचारे और नैतिकता का पाठ पढ़ें, बल्कि अपने पैरों पर खड़ी होने लायक भी बन सकें। बकौल कादरी, ‘मेरे ताज महल में संगमरमर लगवाने का काम बाकी है। इस पर छह से सात लाख रुपये का खर्च आएगा। 2016 के मध्य तक मैंने अपनी पेंशन से एक लाख रुपये बचाए थे, पर मेरी भांजी को पैसों की सख्त जरूरत थी। लिहाजा मैंने वह रकम उसे दे दी। मेरे पास इस वक्त पेंशन से बचे 55 हजार रुपये हैं। यह रकम संगमरमर लगवाने के लिए नाकाफी है, पर मैं अपने ताज महल को हकीकत का चोला पहनाने के लिए आज भी किसी से आर्थिक मदद न लेने के फैसले पर अडिग हूं।’

एक्सीडेंट के बाद भी नहीं हारी हिम्मत
-2017 की शुरुआत में हुए एक हादसे में कादरी के पैरों में फ्रैक्टर हो गया। वह न सिर्फ कई महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे, बल्कि उनकी जुटाई रकम भी खर्च हो गई। बावजूद इसके कादरी ने हिम्मत नहीं हारी। साथ ही जकत (इस्लाम में चैरिटी के लिए सालाना दी जाने वाली रकम) के लिए तय धनराशि देना भी जारी रखा। आज कादरी की दान की गई जमीन पर स्कूल बनकर खड़ा हो गया है, पर उनका ताज महल अब भी अधूरा है। हालांकि कादरी को यकीन है कि वह पेंशन बचाकर उसे जरूर पूरा करवा लेंगे। वह चाहते हैं कि मौत के बाद उन्हें भी इस ताज महल में पत्नी ताजामौली की कब्र के पास दफनाया जाए। बुलंदशहर की डीआईओएस वीणा यादव के मुताबिक स्कूल में छठी से 12वीं तक की कक्षाएं चलाई जाएंगी। जुलाई के मध्य तक इसमें पढ़ाई भी शुरू होने की उम्मीद है।
 

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