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जरूर पढ़ें : साइकिल मैकैनिक से हाजी मस्तान कैसे बना मुंबई का पहला डॉन

सुपरस्टार रजनीकांत को पत्र भेजकर धमकी दी गई है कि डॉन हाजी मस्तान को किसी अपराधी की तरह न पेश किया जाए। पत्र भेजने वाले ने अपना परिचय मस्तान का दत्तक पुत्र-सुंदर शेखर के रूप में दिया। इस धमकी भरे...

जरूर पढ़ें : साइकिल मैकैनिक से हाजी मस्तान कैसे बना मुंबई का पहला डॉन
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSat, 13 May 2017 03:36 PM
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सुपरस्टार रजनीकांत को पत्र भेजकर धमकी दी गई है कि डॉन हाजी मस्तान को किसी अपराधी की तरह न पेश किया जाए। पत्र भेजने वाले ने अपना परिचय मस्तान का दत्तक पुत्र-सुंदर शेखर के रूप में दिया।

इस धमकी भरे पत्र से हाजी मस्तान का नाम एक बार फिर चर्चा में आ गया है। मन में सवाल उठता है कि आखिर हाजी मस्तान कौन था और क्या है उसके डॉन बनने की कहानी?

बेहद गरीब परिवार से था मस्तान

9 मार्च, 1926 में तमिलनाडु के पनईकुलम एक बेहद गरीब परिवार में जन्मे मस्तान कभी देश की चर्चित हस्तियों में सुमार होगा ऐसा किसी न सोचा था । मस्तान का पूरा नाम मस्तान हैदर मिर्जा था जिसे बाद में हज यात्रा करने के बाद हाजी मस्तान के नाम से पहचाने जाना लगा।

गरीबी से तंग आकर मस्तान के पिता जब मुंबई आए तो मस्तान महज आठ साल का था। मुंबई के एक इलाके में वह अपने पिता के साथ साइकिल मैकैनिक का काम करने लगा। लेकिन मस्तान छोटी कमाई से खुश नहीं था। उसके मन में बड़े ख्वाब पल रहे थे, वह बड़ा आदमी बनना चाहता था।

अपने इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए मस्तान ने साइकिल का काम कुली का काम करने का फैसला किया। मस्तान जब 18 साल का हुआ तो मुंबई के बंदरगाह पर कुली बना गया।

इसी बंदरगाह में उठ रहीं समंदर की लहरें उसके लिए उसके लिए बेशुमार दौलत कमाने का जरिया बन गईं। घड़ियों और ट्रांजिस्टर की तस्करी से  सिलसिला शुरू हुआ और सोने की तस्करी तक पहुंच गया।

इस दौरान मस्तान मस्ता की मुलाकात सोने की तस्करी में लगे अल गालिब से हुई। अल गालिब और मस्तान दोनों मिलकर सोने की तस्करी करने लगे। लेकिन अल गालिब पकड़ा गया। इधर मस्तान ने तस्करी के काम में अपना पांव जमा लिया और सोने का बड़ा तस्कर बन गया।

मुंबई में मस्तान का सिक्का चला तो दो और तस्कर करीम लाला और वरदा से मुलाकात हुई। अब तीनों ने मुंबई के इलाकों को बांट लिया और तस्करी और उगाही का धंधा करने लगे।

बताया जाता है हाजी मस्तान ने दशकों तक तस्करी का का धंधा जारी रखा और 80 के दौरान एक बार गिरफ्तार हुआ। लेकिन अब उसकी पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी थी कि उसे पुलिस ने एक होटल में रखा और किसी महमान की तरह सेवा की।

मस्तान ने अपने आखिरी वक्त में दीन और जकात के भी काम किए। उसने गरीब मुसलमानों की मदद के लिए दलित मुसलमान सुरक्षा महासंघ नाम की सस्था भी बनाई। हाजी मस्तान के इन्हीं नेक कामों के लिए उन्हें लोग काफी इज्जत सम्मान से देखने लगे।

कहा जाता है कि दाऊद ने हाजी मस्तान से वसूली और तस्करी का कहकहरा पढ़ा था। हाजी मस्तान के बाद मुंबई में अपराधियों के कई गैंग बने जिनका अंत गैंगवार के रूप में हुआ।

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