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राइट टू प्राइवेसी: सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज, जानें 10 खास बातें

तीन तलाक पर फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट आज नागरिकों के निजता के अधिकार पर एक अहम फैसला देगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आज यह साफ हो जाएगा कि व्यक्तिगत निजता का अधिकार संविधान की ओर से दिया गया मौलिक...

राइट टू प्राइवेसी: सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज, जानें 10 खास बातें
लाइव हिन्दुस्तान टीम। ,नई दिल्लीThu, 24 Aug 2017 09:15 AM
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तीन तलाक पर फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट आज नागरिकों के निजता के अधिकार पर एक अहम फैसला देगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आज यह साफ हो जाएगा कि व्यक्तिगत निजता का अधिकार संविधान की ओर से दिया गया मौलिक अधिकार है या नहीं। सुबह 10:30 बजे सुप्रीम कोर्ट का अपना फैसला सुना सकता है। सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यों वाली बेंच इस पर फैसला देगी और यह अपने आप में एक खास बात है। आधार कार्ड के अनिवार्य प्रयोग को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के तहत सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह फैसला सुनाया जाएगा। जानिए इस आने वाले फैसले से जुड़ी 10 खास बातें। 

  • सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया गया है कि संविधान किसी भी व्यक्ति की निजता की गारंटी मौलिक अधिकार के तौर पर नहीं देता है।
  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आधार का प्रयोग उन पर थोपना, उनकी निजता का हनन है। उन्होंने यह भी कहा है कि आधार डाटाबेस को असल में सिर्फ एक एच्छिक कार्यक्रम के तौर पर प्रस्तुत किया गया था जो हर नागरिक को एक पहचान पत्र की पेशकश करेगा। 
  • करोड़ों लोगों की आंखों की स्कैनिंग और फिंगरप्रिंट्स को आधार डाटाबेस से लिंक किया गया है। सुप्रीम कोर्ट आज जो फैसला देगा उसमें आधार की पहुंच से जुड़ा कोई मामला नहीं होगा बल्कि इस मामले को एक और बेंच तय करेगी। 
  • आलोचकों ने तर्क दिया है कि भले ही निजता का अधिकार संविधान में साफ तौर पर नहीं बताया गया है लेकिन फिर भी यह यर्थाथ रूप में है। एक याचिकाकर्ता वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि हमारा संविधान हमें जिंदगी की आजादी देता है। उनका कहना है कि आजादी संविधान के तैयार होने से पहले ही अस्तित्व में थी जिसमें निजता भी शामिल थी। ऐसे में इसे कम करने का तो सवाल ही नहीं है बल्कि इसे बढ़ाया जाना चाहिए। 
  • सरकार की मानें तो आधार सभी सेवाओं जिसमें टैक्स रिटर्न, बैंक अकाउंट खोलना और लोन लेने के अलावा, पेंशन और कैश ट्रांसफर समेत सभी वेलफेयर स्कीम के लिए जरूरी है। 
  • सरकार ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया है कि आधार नागरिक स्वतंत्रता का हनन है। आधार कार्यक्रम की शुरुआत साल 2009 में यूपीए सरकार की ओर से हुई थी। 
  • आलोचकों की मानें तो आधार से मिले डाटा के जरिए किसी की भी प्रोफाइलिंग की जा सकती है क्योंकि यह किसी व्यक्ति की खर्च करने की आदत, उनके मित्रों और करीबियों और उनकी संपत्तियों की जानकारी भी देता है। 
  • लोगों में इस बात का डर है कि सरकार डाटा का दुरुप्रयोग कर सकती है जिसके पीछे तर्क यह है कि भारतीयों को निजता का अधिकार नहीं है। कुछ रिपोर्ट्स ऐसी भी आई हैं जिसमें आधार से जुड़ी जानकारियां सरकारी वेबसाइट्स समेत कुछ और जगहों पर दुर्घटनावश रिलीज हो गई हैं। 
  • मई में सुरक्षा से जुड़े शोधकर्ताओं को इस बात का पता लगा था कि 135 मिलियन भारतीयों से जुड़ी आधार की जानकारियां ऑनलाइन लीक हो गई थीं। आधार कार्यक्रम की एजेंसी यूआईडीएआई की ओर से कहा गया था कि उसके पास सारा डाटा सुरक्षित है। 
  • याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि अगर कोर्ट निजता को उनका मौलिक अधिकार मानने से इनकार कर देती है तो फिर इससे राज्यों को ताकत मिल जाएगी कि लोगों की निगरानी की जा सके और उन पर ऐसे कानून लगाए जाएं जिससे उनकी व्यक्तिगत आजादी पर प्रभाव पड़ सकता है। 

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