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एक अपमान की टीस ने रिक्शा चालक के बेटे को बनाया IAS, लोगों की बोलती बंद

एक रिक्शा चालक ने अपने अपमान का बदला बेटे को आईएएस बनाकर लिया। यह कहानी बनारस के एक रिक्शा चाल

Alakhaलाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीSun, 24 Sep 2017 03:48 PM

दिल पर लगी तो बना आईएएस

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दिल पर लगेगी, तभी बात बनेगी। आपने लोगों को ऐसा कहते हुए सुना होगा। लेकिन यह सच है कि जब कोई बात दिल मे चुभ जाती है तो इंसान खुद को साबित करने के लिए डट जाता है कि उसके बारे में जो बोला जा रहा है वह वैसा नहीं है। दिल पर जब कोई बात चुभती है तो इससे व्यक्ति खुद को अपमानित महसूस करता है और सकारात्मक सोच के लोग इस अपमान का बदला लेने के लिए खुद को साबित करके लोगों की बोलती बंद करते हैं।

ऐसे ही एक रिक्शा चालक ने अपने अपमान का बदला बेटे को आईएएस बनाकर लिया। यह कहानी बनारस के एक रिक्शा चालक की है। खबरों के मुताबिक रिक्शा चालक नारायण जायसवाल की आर्थिक स्थिति काफी ज्यादा खराब थी तो उन्होंने रिक्शा चलाकर अपने परिवार को पेट भरने लगे।

उन्होंने खुद ही रिक्शे में बेटे को बैठाकर स्कूल छोड़ने जाने लगे। लेकिन लोगों ने जब देखा कि रिक्शावाला अपने बेटे को स्कूल भेज रहा है तो उसका मजाक उड़ाने लगे। मजाक उड़ाने वालों में कई लोग ऐसे भी थे जो कहा करते थे कि देखो ये अपने बेटे को आईएएस बनाने ले जा रहा है। नारायण के बेटे गोविंद जायसवाल को ये बात चुभ गई। उन्हें अपने पिता का संघर्ष और लोगों को मजाक उड़ाना बहुत बुरा लगता था। यह सब देखकर उन्होंने अपने मे मन मे ठान लिया था कि वह अपने परिवार को अब एक सम्मानजनक जीवन देंगे। लेकिन उन घर में और आसपास जो माहौल था उसे देखते हुए सिविल सर्विस की तैयारी करना बहुत कठिन था।

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घर वालों ने जमीन बेचकर दिए पैसे

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इन सब के बावजूद उन्होंने ठान लिया था कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी करेंगे और इसी में कुछ करके दिखाएंगे। उनके पास पैसे नहीं थे कि जिससे वह कोई बिजनेस या काम धंधा कर सकें ऐसे में उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प था कि खूब पढ़ाई करें और यूपीएससी की परीक्षा पास करें।

गोंविद के लिए सपनों को पूरा करना बेदह मुश्किल था। वह जिस एक कमरे के घर में रहते उसमें उनका पूरा परिवार रहता था। उनका घर शहर से कुछ दूरी पर था और यहां पर लाइट की कटौती भी खूब होती। लिहाजा रात में उन्हें ढिबरी या मोमबत्ती के सहारे पढ़ाई करनी पड़ती।

गोविंद को कोचिंग के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी तो उनके पिता ने अपनी पुश्तैनी जमीन 30000 रुपए में बेच दी थी। लेकिन इससे भी उनका काम नहीं चला तो गोविंद पार्ट टाइम कुछ बच्चों को मैथ का ट्यूशन देने लगे।

गोविंद अपने मुश्किल दिनों को याद करते हुए मीडिया से बताया कि वह एक बार कुछ बच्चों के साथ खेल रहे थे तभी एक शख्स और चिल्लाने लगा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे बच्चों के साथ खेलने की। तुम एक रिक्शेवाले के बच्चे हो। तुम्हें भी आगे चलकर रिक्शा चलाना है। ऐसा सुनकर गोविंद को बहुत बुरा लगा और उन्होंने सोचा कि अब वह ऐसा काम करेंगे जिसके लिए उन्हें सभी लोग सम्मान से देखेंगे।

इसके बाद गोविंद ने किसी प्रकार से बीए की पढ़ाई पूरी कर दिल्ली की ओर निकल पड़े। उनका एक ही लक्ष्य था आईएएस बनना। इस दौरान गोविंद के घरवालों ने उन्हें हर संभव मदद और हौसला दिया।  इसके बाद 2006 में यूपीएसएसी का जब फाइनल्स का रिजल्ट आया तो वह 474 सफल होने वाले अभ्यर्थियों में उन्हें 48वां स्थान मिला।