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दुर्गा पूजा: मां की मूर्ति के लिए वैश्याओं से भीख मांगकर लाई जाती है मिट्टी

आज महाषष्ठी है। यानी शारदीय दुर्गा पूजा का शुभ आगाज़ आज से हो गया। आज मां पंडालों में आ चुकी हैं।वैसे तो पंचमी के दिन ही मां थान पर बैठ जाती हैं,  लेकिन आज उनके दर्शन होते हैं। मूर्तियों के...

दुर्गा पूजा: मां की मूर्ति के लिए वैश्याओं से भीख मांगकर लाई जाती है मिट्टी
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तानTue, 26 Sep 2017 01:41 PM
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आज महाषष्ठी है। यानी शारदीय दुर्गा पूजा का शुभ आगाज़ आज से हो गया। आज मां पंडालों में आ चुकी हैं।वैसे तो पंचमी के दिन ही मां थान पर बैठ जाती हैं,  लेकिन आज उनके दर्शन होते हैं। मूर्तियों के चेहरे षष्टी पूजन होने के बाद ही खोले जाते हैं। सभी दुर्गा प्रतिमाओं के साथ-साथ भगवान कार्तिक, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और मां सरस्वती भी होती हैं। 

क्या आपको पता है कि दुर्गा की मूर्ति किस मिट्टी से बनाई जाती है। दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए पुण्य मिट्टी की भी आवश्यकता होती है। पुण्य माटी (बांग्ला ) / मिटटी को वैश्याओं के आंगन से ही लाना पड़ता है। मिटटी के इस थोड़े से भाग के लिए भीख मांगकर लाने की परंपरा है। पुरोहित के मंत्रोच्चार के साथ ही यह मिटटी मां दुर्गा के मूर्ति में सजने के लिए तैयार हो जाती है।

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ये है दुर्गा पूजा का इतिहास

शरद दुर्गा पूजा यानी शरद उत्सव असल में एक सामाजिक-सांस्कृतिक उत्सव है। हर तरफ एक से बढ़कर एक पंडाल, देवी दुर्गा की अलग अलग शैली में बनी मूर्तियां इस त्योहार में कला के मौजूदगी को दिखाती है। पर ये महा उत्सव असल में आज की दौर में कब और कैसे शुरू हुआ। तथ्यों की मानें तो पहला दुर्गा पूजा साल 1606 में नदिया ज़िले में हुआ था। बड़े बड़े ज़मींदारों के घर में ही मां दुर्गा के लिए यह महा आयोजन किया जाता था।

यह घरेलु पूजाएं आज भी कई जगह बहुत बड़े स्तर पर मौजूद है, जहां देवी दुर्गा को आज भी अपने घर की बेटी मानकर, निष्ठा से पूजते हैं लोग। फिर एक दौर आया जब यह दुर्गा पूजा महोत्सव घरों की चार दीवारी को तोड़कर सार्वजनिक रूप में बाहर आई। कहते हैं हुगली में एक घर के दुर्गा पूजा में 12 लोगों को घुसने से वर्जित किया गया था। और इन 12 लोगों ने एक समिति बनाकर पहली बार बरॉयारी यानी बारह यारों ने मिलकर सार्वजनीन दुर्गा पूजा का आरम्भ किया।


आज भी सार्वजनीन दुर्गा पूजा को बंगाली बहुल समाज में बारोयारी कहते हैं। 1910 में पहला सार्वजनीन दुर्गा पूजा कोलकाता में आयोजित हुआ, और तब से लेकर आज तक यह उत्सव हर लिंग, हर धर्म, हर जात, हर किसीके लिए सुगम है।

प्रस्तुति- स्निग्धा भट्टाचार्य

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