लव जिहाद मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विवाह को रिट के तहत रद्द नहीं कर सकते
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हाईकोर्ट रिट के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर विवाह को रद्द नहीं कर सकता है। वह सोमवार को इस सवाल पर विचार करेगा कि क्या हाईकोर्ट ऐसा कर सकता है। केरल हाईकोर्ट...
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हाईकोर्ट रिट के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर विवाह को रद्द नहीं कर सकता है। वह सोमवार को इस सवाल पर विचार करेगा कि क्या हाईकोर्ट ऐसा कर सकता है। केरल हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम युवक की हिंदू महिला से विवाह को अमान्य घोषित कर दिया था। निकाह से पहले महिला ने इस्लाम धर्म कबूल किया था।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की एनआईए जांच का विरोध करने वाली याचिका पर 9 अक्तूबर को सुनवाई करेगा। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि वह इसकी समीक्षा करेगा कि क्या हाईकोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत अपने रिट अधिकारों का प्रयोग कर किसी विवाह को रद्द कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि हमारी प्रथमदृष्टया राय है कि हाईकोर्ट यह काम नहीं कर सकता।
कोर्ट ने लड़की के पिता की ओर से पेश वकील से भी कि आप उसकी कस्टडी कैसे ले सकते हैं। वह 24 वर्ष की वयस्क महिला है। उसके लिए हम वैकल्पिक संरक्षक नयुक्त कर सकते हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में विवाह को रद्द कर कहा था कि यह लव जिहाद का मामला हो सकता है और इसमें विस्तृत जांच की जरूरत है। लड़की के वकील ने कहा कि इस मामले कोर्ट ने कुछ ज्यादा ही कड़ा फैसला दिया है। इस मामले में न तो लड़की कोर्ट आई थी और न ही केरल सरकार। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ लड़के ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। उन्होंने कहा कि कोर्ट एनआईए की जांच का आदेश वापस ले।
सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों को सुनकर ही आदेश दिया था। इस पर उनकी सहमति थी और उन्होंने इसका विरोध नहीं किया था। कोर्ट ने 18 अगस्त को इस मामले में एनआईए को जांच का आदेश दिया था।