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दिवाली 2017ः पढ़ें नज़ीर अकबराबादी की कविता 'दिवाली'

नजीर अकबराबादी, मीर तक़ी मीर के दौर के अग्रणी शायरों में से एक हैं। इन्होंने भारत से लेकर भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर नज्में लिखीं। उस दौर में ये होली, दिवाली से लेकर कृष्ण जनमाष्टमी तक की...

दिवाली 2017ः पढ़ें नज़ीर अकबराबादी की कविता 'दिवाली'
लाइव हिन्दुस्तान,दिल्लीThu, 19 Oct 2017 06:58 PM
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नजीर अकबराबादी, मीर तक़ी मीर के दौर के अग्रणी शायरों में से एक हैं। इन्होंने भारत से लेकर भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर नज्में लिखीं। उस दौर में ये होली, दिवाली से लेकर कृष्ण जनमाष्टमी तक की नज़्में लिख कर मशहूर हुए। इनकी कविता की सबसे खास बात थी कि ये किसी धर्म संप्रदाय से इतर अपने देश की खूबसूरत परंपरा को लेकर बेहद रोमांचित रहते थे। इन्होंने धर्म से परे हर त्योहार में देश की खूबसूरती देखी। दीवाली के मौके के लिए लिखि इनकी एक कविता बेहद ही मशहूर है। पढ़े दिवाली के लिए लिखि गई नजीर अकबराबादी की कविता livehindustan.com पर...

हमें अदाएँ दीवाली की ज़ोर भाती हैं।
कि लाखों झमकें हरएक घर में जगमगाती हैं।
चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं।
मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।1।

गुलाबी बर्फ़ियों के मुंह चमकते-फिरते हैं।
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं।
हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं।
इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।2।

मिठाईयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं।
तो उन पै क्या ही ख़रीदारों के झपट्टे हैं।
नबात, सेव, शकरकन्द, मिश्री गट्टे हैं।
तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे-बट्टे हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।3।

जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं।
तो लौंज खजले यही मसनद लगाए बैठे हैं।
इलायची दाने भी मोती लगाए बैठे हैं।
तिल अपनी रेबड़ी में ही समाए बैठे हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।4।

उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग।
यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग।
मगध का मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग।
दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।5।

दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है।
तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है।
कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है।
कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।6।

कोई खिलौनों की सूरत को देख हँसता है।
कोई बताशों और चिड़ों के ढेर कसता है।
बेचने वाले पुकारे हैं लो जी सस्ता है।
तमाम खीलों बताशों का मीना बरसता है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।7।

और चिरागों की दुहरी बँध रही कतारें हैं।
और हर सू कुमकुमे कन्दीले रंग मारे हैं।
हुजूम, भीड़ झमक, शोरोगुल पुकारे हैं।
अजब मज़ा है, अजब सैर है अजब बहारें हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।8।

अटारी, छज्जे दरो बाम पर बहाली है।
दिबाल एक नहीं लीपने से खाली है।
जिधर को देखो उधर रोशनी उजाली है।
गरज़ मैं क्या कहूँ ईंट-ईंट पर दीवाली है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।9।

जो गुलाब-रू हैं सो हैं उनके हाथ में छड़ियाँ।
निगाहें आशि‍कों की हार हो गले पड़ियाँ।
झमक-झमक की दिखावट से अँखड़ियाँ लड़ियाँ।
इधर चिराग उधर छूटती हैं फुलझड़ियाँ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।10।

क़लम कुम्हार की क्या-क्या हुनर जताती है।
कि हर तरह के खिलौने नए दिखाती है।
चूहा अटेरे है चर्खा चूही चलाती है।
गिलहरी तो नव रुई पोइयाँ बनाती हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।11।

कबूतरों को देखो तो गुट गुटाते हैं।
टटीरी बोले है और हँस मोती खाते हैं।
हिरन उछले हैं, चीते लपक दिखाते हैं।
भड़कते हाथी हैं और घोड़े हिनहिनाते हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।12।

किसी के कान्धे ऊपर गुजरियों का जोड़ा है।
किसी के हाथ में हाथी बग़ल में घोड़ा है।
किसी ने शेर की गर्दन को धर मरोड़ा है।
अजब दीवाली ने यारो यह लटका जोड़ा है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।13।

धरे हैं तोते अजब रंग के दुकान-दुकान।
गोया दरख़्त से ही उड़कर हैं बैठे आन।
मुसलमां कहते हैं ‘‘हक़ अल्लाह’’ बोलो मिट्ठू जान।
हनूद कहते हैं पढ़ें जी श्री भगवान।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।14।

कहीं तो कौड़ियों पैसों की खनख़नाहट है।
कहीं हनुमान पवन वीर की मनावट है।
कहीं कढ़ाइयों में घी की छनछनाहट है।
अजब मज़े की चखावट है और खिलावट है 

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।15।

‘नज़ीर’ इतनी जो अब सैर है अहा हा हा।
फ़क़्त दीवाली की सब सैर है अहा हा! हा।
निषात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा।
जिधर को देखो अज़ब सैर है अहा हा हा।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।16।

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