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पंजाब में आतंकवाद की कमर तोड़ने वाले ‘सुपरकॉप’

दिल्ली के एक अस्पताल में शुक्रवार को अंतिम सांस लेने वाले 82 वर्षीय केपीएस गिल के प्रयासों की बदौलत ही 80 और 90 के दशक में पंजाब से आतंकवाद का सफाया हो पाया था। अलग खालिस्तान देश की मांग को लेकर पूरा...

पंजाब में आतंकवाद की कमर तोड़ने वाले ‘सुपरकॉप’
हिन्दुस्तानFri, 26 May 2017 11:05 PM
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दिल्ली के एक अस्पताल में शुक्रवार को अंतिम सांस लेने वाले 82 वर्षीय केपीएस गिल के प्रयासों की बदौलत ही 80 और 90 के दशक में पंजाब से आतंकवाद का सफाया हो पाया था। अलग खालिस्तान देश की मांग को लेकर पूरा पंजाब हिंसा की आग में जल रहा था। ऐसे में करीब 30 साल तक असम में सेवा देने के बाद 1988 में केपीएस गिल को पंजाब का पुलिस महानिदेशक नियुक्त कर आतंकवाद का सफाया करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 

ब्लू स्टार से भी सफल ऑपरेशन
राज्य से आतंकवाद खत्म करने के लिए उन्होंने कई ऑपरेशन चलाए। इसमें ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ खास रहा। इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार से भी बेहतर बताया गया। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे से आतंकियों को बाहर निकालने के लिए इस ऑपरेशन में करीब 67 ने समर्पण किया और 43 मारे गए। उस समय  वर्तमान एनआईए चीफ अजित डोभाल एक रिक्शे वाले की भेष में अंदर गए थे। 1991 में राज्य में 5000 लोग मारे गए थे, जबकि 1993 में यह आंकड़ा 500 तक पहुंच गया था। 

गुजरात दंगों पर मोदी को क्लीन चिट
राहुल चंदन द्वारा लिखी गई उनकी जीवनी ‘द पैरामाउंट कॉप’ में केपीएस गिल ने 2002 के गुजरात दंगों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्लीन चिट दी थी। गिल 2002 में मोदी के सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किए गए थे। 

असम से करियर की शुरुआत
मूल रूप से पंजाब के रहने वाले केपीएस गिल ने आईपीएस असम-मेघालय कैडर को चुना था। उनका मानना था कि पूर्वोत्तर में वह खुलकर काम कर सकते हैं। जबकि पंजाब में उन्हें राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ेगा। 1958 में पहली र्पोंस्टग के तौर पर उनकी असम में ही तैनाती हुई। वह 28 साल तक यहां तैनात रहे। पहली तैनाती के दौरान ही अपने सख्त रवैये के चलते वह कई लोगों को नापसंद रहने लगे थे।

आतंक का एक भी मामला ‘महामारी’
गिल ने अपनी किताब ‘पंजाब नाइट्स ऑफ फाल्सहुड’ में लिखा है, ‘हाल में डल्ब्यूएचओ ने कहा था कि पोलियो का एक मामले को भी ‘महामारी’ माना जाएगा। यही परिभाषा आतंकवाद पर भी लागू होनी चाहिए। एक आतंकी घटना को भी अगर उचित जवाब नहीं दिया गया तो वह कई गुना बढ़ जाएगी।’

शख्सियत के अनजान पहलू
- केपीएस गिल समाज सेवा भी करत थे। हर महीने वृंदावन जाकर विधवाओं की संस्था को पैसा देते थे। 
- केपीएस गिल को पढ़ने-लिखने और शायरी का बहुत शौक था। खासतौर से उन्हें अंग्रेजी और उर्दू शायरी बहुत पसंद थी। 
- खिलाड़ियों की पैसों की जरूरत का ध्यान रखते थे। टीम के विदेशी दौरे पर भी फोन कर खिलाड़ियों की स्थिति का जायजा लेते रहते थे।

खिलाड़ियों को मैच फीस ‘रिश्वत’ समान
केपीएस गिल मैच फीस को तो वह ‘रिश्वत’ मानते थे। 1998 में एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने के बावजूद धनराज पिल्लै समेत कई खिलाड़ियों को बाहर इस वजह से बाहर कर दिया था। वर्ष 2008 में हॉकी टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई थी। बाद में कई लोग बैनर लेकर उतरे, ‘गिल ने पंजाब से आतंक खत्म किया, देश से हॉकी।’

विवादों से नाता
- पंजाब में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगे 
- असम में एक आंदोलनकारी की पिटाई के बाद मौत, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्लीन चिट दी
- महिला आईएएस रूपन देओल से यौन दुर्व्यवहार के दोषी
- भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष के तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे 
- भारतीय ओलंपिक संघ ने भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भारतीय हॉकी फेडरेशन की मान्यता रद्द की 
- 2008 में पहली बार भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई 
- हॉकी खिलाड़ियों के साथ भी मैच फीस को लेकर उनका विवाद चलता रहा।

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