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हर कैद से आजाद

हर कैद से आजाद असगर वजाहत हमारे समय के एक महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। सातवें दशक में उन्होंने एक विशिष्ट कहानीकार के रूप में अपनी पहचान बनाई, जब नई कहानी आंदोलन की सफलता के बाद हिंदी कहानी में तरह-तरह...

हर कैद से आजाद
हिन्दुस्तानSat, 17 Jun 2017 11:34 PM
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हर कैद से आजाद
असगर वजाहत हमारे समय के एक महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। सातवें दशक में उन्होंने एक विशिष्ट कहानीकार के रूप में अपनी पहचान बनाई, जब नई कहानी आंदोलन की सफलता के बाद हिंदी कहानी में तरह-तरह के आंदोलन शुरू हो गए थे, जिनसे कहीं न कहीं भ्रम या अवरोध की स्थिति बन रही थी। तब से आज तक वजाहत की कलम कभी नहीं थमी और उनकी कृतियों ने हमेशा पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। आज उन्हें ‘सात आसमान’ जैसे उपन्यास, ‘जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ’ जैसे नाटक, ‘शाह आलम कैंप की रूहें’ जैसी कहानी, ‘चलते तो अच्छा था’ जैसे संस्मरण के लेखक के रूप में जाना जाता है। कहना न होगा कि उनकी ये कृतियां काफी चर्चित रही हैं और इन्हें समकालीन हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण कृतियों में शुमार किया गया है। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि वजाहत का लेखन इन्हीं कृतियों तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा संस्मरण, लेख आदि काफी कुछ लिखा है, जिसकी चर्चा भी हुई है-होती रही है। 

वजाहत एक ऐसे लेखक के रूप मेंे हमारी सामने आते हैं, जो अपने समय की जटिलताओं से लगातार जूझता है।  उनकी आरंभिक दौर की कहानियों में आपातकाल के दौर की घुटन को पहचानना कठिन नहीं है। इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में आई उनकी कहानियों में सांप्रदायिकता के बढ़ते खतरे की अचूक शिनाख्त को आसानी से देखा जा सकता है। उनके उपन्यासों व नाटकों में भी अपने समय के संकटों की पड़ताल करते हुए मानवीयता की तरफदारी की यह कोशिश दिखती है। यात्रा संस्मरणों में भी उन्होंने जगहों के नजारे दिखाने से ज्यादा वहां के जनजीवन को परखने की कोशिश की है। वस्तुत: वे ऐसे रचनाकार हैं, जिसके लिए लेखन अपने समय और समाज की चिंताओं से रूबरू होने का ही दूसरा नाम है। ‘बनास जन’ ने वजाहत के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित कर ऐसी अनेक बातें पाठकों को सुलभ कराई हैं, जो निश्चय ही उल्लेखनीय हैं। यह न केवल रचनाकार के अवदान का स्वीकार है, बल्कि उसका सम्मान भी है। 
बनास जन (विशेषांक), संपादक: पल्लव, दिल्ली, मूल्य- 150 रुपये

संगीतकारों की दास्तान
हमारी सांस्कृतिक विरासत में संगीत की समृद्ध परंपरा अपरिहार्य रूप से शामिल है। लेकिन दुर्भाग्य से जन सामान्य अपने महान संगीतकारों के बारे में कम जानता है। इस संदर्भ में यह पुस्तक उल्लेखनीय है। यह उस्ताद बड़े गुलाम अली खां, पं. मल्लिकार्जुन मंसूर, गंगूबाई हंगल, बेगम अख्तर और कुमार गंधर्व सरीखे दिग्गज संगीतकारों के बारे में किस्सागोई के अंदाज में जानकारी देती है। संगीत के पांच सितारे, संजीव ठाकुर, प्रखर प्रकाशन, दिल्ली, मूल्य-150 रुपये

चंपारण की याद
2017 चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी का साल है। इसे ध्यान में रखते हुए ‘अंतिम जन’ ने ‘सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह’ विशेषांक निकाला है। इसमें महात्मा गांधी, राजकुमार शुक्ल, राजेंद्र प्रसाद के चंपारण सत्याग्रह से जुड़े दस्तावेजों के अलावा एक दर्जन लेख प्रकाशित हैं, जिनमें इस ऐतिहासिक आंदोलन के इतिहास व उसकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया गया है। अंतिम जन, संपा.: दीपंकर श्रीज्ञान, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली, मूल्य- नि:शुल्क            

परिवर्तन का आह्वान
युवा कवि तेज प्रताप नारायण का यह चौथा कविता संग्रह है। शुरू से ही वे सामाजिक व राजनीतिक विसंगतियों के प्रतिकार में उपजी भावनाओं को अपनी कविताओं में मूर्त करते रहे हैं। उनकी यह विशेषता इस संग्रह में और पुख्ता हुई है, जिसकी अधिकतर कविताएं परिवर्तन का आह्वान करती हैं। किंतु-परंतु, तेज प्रताप नारायण, परिवर्तन प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 150 रुपये

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