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महाकाव्य की विश्व परंपरा

इस पुस्तक में विविध भाषाओं के महाकाव्यों से चुनी हुई आठ कथाओं— यूनानी महाकाव्य ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’, लैटिन महाकाव्य ‘इनीद’,  स्कैंडिनेवियन महाकाव्य...

महाकाव्य की विश्व परंपरा
हिन्दुस्तानSun, 23 Jul 2017 12:33 AM
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इस पुस्तक में विविध भाषाओं के महाकाव्यों से चुनी हुई आठ कथाओं— यूनानी महाकाव्य ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’, लैटिन महाकाव्य ‘इनीद’,  स्कैंडिनेवियन महाकाव्य ‘वाल्संग सागा’, जर्मन महाकाव्य ‘निबलुंगेनलीद’, इटैलियन महाकाव्य ‘डिवाइना कामेडिया’, अरबी और फारसी महाकाव्य ‘शाहनामा’ और अंग्रेजी महाकाव्य ‘पैराडाइज लॉस्ट’ के हिन्दी अनुवाद संकलित हैं। ये कथाएं किस आधार पर चुनी गईं— रोचकता, भाषा की सरलता या किसी अन्य कारण? अत्यंत ही चर्चित एवं विश्व काव्यों में महत्त्वपूर्ण माना जाने वाला मेसोपोटामिया का महाकाव्य ‘गिलगमेश’ क्यों छोड़ दिया गया? पुस्तक की भूमिका से इसका कोई उत्तर नहीं मिलता। फिर भी कह सकते हैं कि संकलित सभी कथाएं इस प्रकार अत्यंत रोचक हैं कि कोई भी कथा पूरी पढ़े बिना रहा नहीं जाता, महत्त्वपूर्ण तो हैं ही। 

यह पुस्तक लेखिका एच.ए. गुएर की पुस्तक ‘दि बुक ऑफ एपिक’ से चुनी गई कथाओं का अनुवाद है। पुस्तक की विशेषता यह है कि आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व बीस वर्ष के एक भारतीय युवक ने अंग्रेजी से इसका अनुवाद किया है। औसत भारतीय युवक इस उम्र में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करता है और उस समय तक अधिकांश लोगों का अंग्रेजी ज्ञान ऐसा नहीं होता कि वे किसी साधारण वाक्य का भी हिन्दी में ठीक-ठाक अनुवाद कर सकें। ऐसी स्थिति में यह मानना गलत न होगा कि या तो मूल अंग्रेजी की पुस्तक की भाषा इतनी सरल रही होगी कि उसका अनुवाद आसानी से किया जा सके या अनुवादक भाषा-ज्ञान के मामले में विलक्षण प्रतिभा का था। फिर भी अनुवाद कार्य करने में उसे निश्चय ही तरह-तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा होगा, जैसा कि उसने स्वयं भूमिका में भी लिखा है— कहीं-कहीं कई वाक्यों को एक ही वाक्य में गूंथ देना पड़ा और कहीं-कहीं एक ही वाक्य के लिए कई वाक्यों की रचना करनी पड़ी। 

जो कुछ भी हो, इन बातों के लिए अनुवादक को दोष नहीं दिया जा सकता और न ही इनके कारण कथाओं में रोचकता की कमी हुई है। 
विदेशों के महाकाव्य, अनुवादक: गोपीकृष्ण गोपेश, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, मूल्य : 600 रुपये
महेंद्र राजा जैन 

आंखों देखे प्रेमचंद 
प्रेमचंद के साहित्य से लोगों का जितना परिचय है, उनके जीवन और व्यक्तित्व से शायद उतना नहीं है। इस संदर्भ में यह पुस्तक काफी महत्वपूर्ण है, जिसमें उन लोगों के संस्मरण हैं, जिन्होंने प्रेमचंद को अपनी आंखों से देखा था और उनका सान्निध्य पाया था। संस्मरण के साथ-साथ इसमें मूल्यांकन की छौंक भी है, जिससे पुस्तक और भी विशिष्ट हो गई है। प्रेमचंद : कुछ संस्मरण, संपादक : कमलकिशोर गोयनका, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य : 400 रुपये 

वीरेन-स्मरण
वीरेन डंगवाल कवि, प्राध्यापक व संपादक तमाम रूपों में अनन्य थे। आधारशिला पत्रिका के प्रस्तुत अंक में वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी ने उन्हें ‘जीवन का जयगान करने वाला कवि’ कहा है, जबकि कवि मंगलेश डबराल ने वीरेन के व्यक्तित्व-कृतित्व को ‘मानी पैदा करता जीवन’ कहकर याद किया है। ऐसी अनेक रचनाएं इस अंक में संकलित हैं। आधारशिला (वीरेन डंगवाल पर विशेष) अंक 158-159, संपा. : दिवाकर भट्ट, नैनीताल, मूल्य : 100 रुपये

दर्शन विचार
भारतीय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने वाली और इससे इतर धारणा रखने वाली, दोनों तरह की धाराएं रही हैं। सांख्य, बौद्ध, जैन दूसरी धारा के दर्शन हैं। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने भारतीय दर्शन की इस विशिष्टता की विवेचना की है। प्रसंगवश उन्होंने पश्चिमी दर्शन 
का उल्लेख भी किया है। भारतीय जीवन दर्शन, डॉ. दिनेश मिश्र, अकादमिक बुक्स इंडिया, नई दिल्ली, मूल्य : 595 रुपये
धर्मेन्द्र सुशांत

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