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शुरू किया है तो पूरा भी करें

कुछ लोग काम तो बहुत करते हैं, पर पूरा कोई नहीं करते। उनके पास अधूरे कामों का एक ढेर होता है। शुुरुआत का जोश, बीच में आते-आते कहीं गायब हो जाता है। हम अपने कामों को ही अधूरा नहीं छोड़ते, हमारी जिंदगी...

शुरू किया है तो पूरा भी करें
पूनम जैनTue, 13 Jun 2017 11:34 PM
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कुछ लोग काम तो बहुत करते हैं, पर पूरा कोई नहीं करते। उनके पास अधूरे कामों का एक ढेर होता है। शुुरुआत का जोश, बीच में आते-आते कहीं गायब हो जाता है। हम अपने कामों को ही अधूरा नहीं छोड़ते, हमारी जिंदगी भी आधी-अधूरी रह जाती है। 

कल्पना कीजिए कि आप सो रहे हों और नींद में आपके सारे अधूरे काम जाग जाएं। शिकायत करें कि आपने उन्हें क्यों अधूरा छोड़ा? क्यों उन्हें मंजिल तक नहीं पहुंचाया? दूसरे लोगों के काम कहां-कहां नहीं पहंुच गए हैं। एक वे हैं, जो आपकी किसी मेज, किसी फाइल, किसी अलमारी में रखे बैग में यूं ही अटके और लटके रह गए हैं। क्यों किया आपने उनके साथ ऐसा?

आप कह सकते हैं कि ऐसा सोचें ही क्यों? ये कल्पना ही फिजूल है। पर सच यही है कि हमारे अधूरे काम आसानी से पीछा नहीं छोड़ते। मनोविज्ञान कहता है कि हमारे काम और उनसे जुड़े अनुभव, चेतन और अवचेतन मन में कब्जा किए रहते हैं। काम को पूरा करना हमें खुशी देता है। हम दूसरे कामों को भी करने के लिए प्रेरित होते हैं। वहीं अधूरे काम रात-बेरात बेचैनी, हताशा, अनिद्रा, आलस और हीन विचारों के रूप में उठ खड़े होते हैं। हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। 

अधूरा छोड़ना है एक आदत 
आधी पढ़ी हुई किताबें, अधूरे में छोड़ी रचनाएं, पढ़ाई, प्रोजेक्ट या फिर दूसरे और काम... सचमुच कामों को बीच में छोड़ने पर बुरा लगता है। क्यों? क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट मैथ्यू विल्हेम कहते हैं,‘हम चीजों को पूर्णता में देखने के आदी हैं। इसी वजह से हम उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित रहते हैं। कामों को अधूरा छोड़ना हमें बेचैन कर देता है।  लेखक डॉड एलेन का तो मानना है कि तनाव , ज्यादा काम करने से नहीं कामों को अधूरा छोड़ दिए जाने से होता है।’ काम समय पर पूरा करना एक आदत है तो उन्हें अधूरा छोड़ देना भी।  

अधूरे कामों का चक्र 
हम काम बड़े जोश से शुरू करते हैं। लेकिन मिड वे यानी बीच रास्ते में आते-आते सुस्त पड़ जाते हैं। कुछ देर ठहरना या सुस्ताना ठीक है। पर साथ में खुद को काम पूरा करने के लिए भी प्रेरित करना होता है। हम काम कई वजह से अधूरे छोड़ते हैं। कई बार जानते ही नहीं कि काम क्यों कर रहे हैं या उसे पूरा कैसे करेंगे? परफेक्ट किए जाने के चक्कर में भी कई बार कुछ नहीं कर पाते। कुछ में डर, आलस, लगन की कमी और जिम्मेदारी का अभाव भी होता है।

हमारे अधूरे काम हमारे साथ दूसरों के काम पर भी असर डालते हैं।  डेविड ऐलन ने अधूरे कामों की बेचैनी को कम करने के विषय पर एक किताब लिखी है।  ‘गेटिंग थिंग्स डन’ में वह लिखते हैं ‘घर हो या ऑफिस, असमय हुआ काम कहीं पसंद नहीं किया जाता। हमें नुकसान पहुंचाता है। काम बेहतर हो और समय पर भी, इसके लिए संतुलन जरूरी होता है।’

हालांकि यह जरूरी नहीं कि आप हर काम पूरा ही करें। काम अच्छा नहीं लग रहा है तो उसे छोड़ने में भी बुराई नहीं है। पर ऐसा अगर हर काम के साथ होता है तो इसे ठीक किया जाना जरूरी है। यह देखने की भी जरूरत है कि काम को अधूरा छोड़कर आप खुश होते हैं या दुखी। जो अपने ‘क्यों’ को जानते हैं, वे ‘कैसे’ तक भी पहुंच जाते हैं।

यूं करें कामों को पूरा  
किसी काम को आप क्यों कर रहे हैं और कैसे करेंगे, इसकी पूरी योजना बनाएं।
आप किसी काम को क्यों छोड़ रहे हैं, इसकी सही वजह जानें।
एक समय सीमा तय करें। 
ऐसे काम जिनके साथ दूसरे लोग जुड़े हैं, उन्हें पहले पूरा करें।  
काम से जुड़े फायदों के बारे में लगातार खुद को बताते रहें। 
जिन कामों पर काफी समय और पैसा लगाया है, उन्हें अवश्य पूरा करें। 
अनावश्यक कामों को ना कहें।

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