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वर्षों से लटके हैं सर्टिफिकेट केस के 12 हजार मामले

सरकार के 285 करोड़ 72 लाख रुपये खराब नीयत वाले लोगों के पास फंसे हैं। आज इनलोगों की स्थिति बकाया चुकाने लायक नहीं है। इस रकम की वूसली के लिए पूर्वी सिंहभूम जिले में 11,823 सर्टिफिकेट केस दायर हैं।...

वर्षों से लटके हैं सर्टिफिकेट केस के 12 हजार मामले
Center,JamshedpurFri, 26 May 2017 03:55 PM
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सरकार के 285 करोड़ 72 लाख रुपये खराब नीयत वाले लोगों के पास फंसे हैं। आज इनलोगों की स्थिति बकाया चुकाने लायक नहीं है। इस रकम की वूसली के लिए पूर्वी सिंहभूम जिले में 11,823 सर्टिफिकेट केस दायर हैं। इनमें हर साल नए मामले जुड़ते जाते हैं। हालांकि इन मामलों में से अधिकांश वर्षों से चल रहे हैं। इसके बावजूद पैसे की वसूली की रफ्तार बेहद धीमी है। इसी वजह से बीते माह जब उपायुक्त अमित कुमार ने राजस्व विभागों की सालाना समीक्षा बैठक की थी, तो केसों की संख्या और उसमें फंसी रकम पर नाराजगी जताई थी। बीते वित्तीय वर्ष के दौरान मात्र 543 मामलों का निपटारा हुआ था और नौ करोड़ साठ लाख रुपये की वसूली हुई थी। सरकारी विभागों का बकाया नहीं चुकाने पर नीलाम पत्रवाद : जब कोई व्यक्ति, बैंक का लोन, बिजली बिल, मालगुजारी या लगान, सैरात का पैसा, कृषि ऋण, रोड टैक्स जैसी रकम बार-बार तकादे के बावजूद नहीं चुकाता तो विभाग द्वारा ऐसे देनदारों के खिलाफ सर्टिफिकेट केस किया जाता है। बैंकों के 10 लाख से अधिक बकाया के मामले रांची स्थित डीआरटी में चले जाते हैं। सिर्फ बैंकों के बड़े बकाये के मामले में उपायुक्त सरफेसी एक्ट के तहत बकायेदार की संपत्ति जब्त करने का आदेश पारित करते हैं। विभाग के एक अफसर को मिलता है दायित्व : राजस्व से जुड़े विभागों के अफसरों या कार्यपालक दंडाधिकारियों को सर्टिफिकेट अफसर के रूप में दायित्व सौंपा जाता है। उपायुक्त की अनुशंसा पर यह अधिकार आयुक्त सौंपते हैं। संबंधित अधिकारी के नाम से इसके लिए पत्र जारी होता है। एक तरह से यह पद न्यायिक होता है और इसी कारण सर्टिफिकेट अफसर हर मामले की बाजाप्ता सुनवाई करता है। वादी के वकील पेश होते हैं और अपना तर्क रखते हैं। फिर अफसर विभाग से पक्ष मांगते हैं और अगर सहमत होते हैं तो रकम में संशोधन भी होता है। कई बार सर्टिफिकेट अफसर की पहल से दोनों पक्षों में समझौता भी होता है। या फिर बकाएदार के अनुरोध पर किस्तों में भुगतान की सुविधा दी जाती है।

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