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उम्मीद: सिलिकॉन से बनाया गया असली जैसा धड़कने वाला दिल 

स्विस वैज्ञानिकों ने 3डी प्रिंटिंग तकनीक के जरिये सिलिकॉन का ऐसा एक दिल बनाया है जो बिल्कुल असली दिल की तरह धड़कता है। उनका दावा है कि यह कृत्रिम दिल अपने ‘रूप और कार्य में’ वास्तविक...

उम्मीद: सिलिकॉन से बनाया गया असली जैसा धड़कने वाला दिल 
लंदन, एजेंसियांTue, 18 Jul 2017 10:16 PM
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स्विस वैज्ञानिकों ने 3डी प्रिंटिंग तकनीक के जरिये सिलिकॉन का ऐसा एक दिल बनाया है जो बिल्कुल असली दिल की तरह धड़कता है। उनका दावा है कि यह कृत्रिम दिल अपने ‘रूप और कार्य में’ वास्तविक इनसानी दिल के समान है। इससे उम्मीद बढ़ गई है कि आने वाले दिनों में हृदय प्रत्यारोपण के लिए किसी दाता की जरूरत नहीं रह जाएगी।  दिल की बीमारी दुनिया में मौतों के सबसे बड़ा कारण है। हर साल 1.73 करोड़ लोग दिल की बीमारी का शिकार बन जाते हैं। 

दिल दान करने वालों की कमी भी मौतों की इतनी बड़ी तादाद के लिए जिम्मेदार है। ऐसे में अगर यह कृत्रिम दिल कारगर रहता है तो अनगिनत लोगों को बचाया जा सकेगा। हालांकि फिलहाल इसमें एक समस्या बरकरार है। वैज्ञानिकों ने जो नमूना बनाया वह केवल तीन हजार बार धड़कने के बाद बंद हो गया अर्थात यह 35 से 45 मिनट तक ही धड़कता रह सका। 

स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख स्थित ईटीएच के शोधकर्ता अब अपने इस आविष्कार के प्रदर्शन को उन्नत बनाने में जुटे हुए हैं। शोधकर्ता निकोलस कोर्ह्स ने कहा, हम ऐसा कृत्रिम दिल विकसित करना चाहते हैं जो मोटे तौर पर मरीज के असली दिल के आकार का हो। जहां तक संभव हो वह मानव दिल के समान हो और उसी की तरह कार्य करे। 

कृत्रिम दिल का वजन 90 ग्राम है। इसलिए असली मानव दिल से आकार में करीब करीब बराबर होने के बावजूद यह उससे थोड़ा वजनी है। असली मानव दिल की तरह इसमें दाएं और बाएं दो कोष्ठक हैं। एक अतिरिक्त कोष्ठक भी है जो बाहरी पंप को संचालित करता है। यह असल दिल की संकुचित मांसपेशियों के बदले काम आता है। इसकी रूपरेखा इस तरह बनाई गई है कि यह कोष्ठकों के जरिये रक्त प्रवाहित कर सके। 

परीक्षण के दौरान इसके जरिये रक्त की गति से एक तरल को प्रवाहित कराया गया। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह कृत्रिम दिल एक दिन कृत्रिम पंप की जगह ले लेगा। यह दिल की नाकामी से उबरे या प्रत्यारोपण के लिए दाता से दिल मिलने का इंतजार कर रहे लोगों के काम आएगा और अंतत: किसी दाता से दिल पाने की जरूरत को खत्म कर देगा।  यह अध्ययन ‘आर्टिफिशियल ऑगर्न्स’ जर्नल में छपा है।
 

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