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अब बिजली से विमान उड़ाने की तैयारी

विमानों में पारंपरिक ईंधन से संचालित होने वाले इंजन बहुत जल्द एक अतीत बनकर रह जाएंगे। दरअसल, वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ‘प्लाज्मा जेट इंजन’ विकसित किया है जो इंधन की बजाए विद्युत...

अब बिजली से विमान उड़ाने की तैयारी
लाइव हिन्दुस्तान नई दिल्लीFri, 26 May 2017 04:06 PM
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विमानों में पारंपरिक ईंधन से संचालित होने वाले इंजन बहुत जल्द एक अतीत बनकर रह जाएंगे। दरअसल, वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ‘प्लाज्मा जेट इंजन’ विकसित किया है जो इंधन की बजाए विद्युत (इलेक्ट्रिसिटी) से संचालित होगा। इस नव निर्मित सस्ती और टिकाऊ टेक्नोलॉजी को विमानन उद्योग के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति माना जा रहा है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

विमानों और रॉकेट में लगे पारपंरिक जेट इंजन को जहां उड़ान भरने के लिए एविएशन गैसोलीन,  रॉकेट प्रोपेलेंट आदि ईंधन से ऊर्जा प्राप्त होती है। वहीं, नए प्लाज्मा जेट इंजन को बिजली से ऊर्जा मिलेगी। उड़ान भरने के लिए विमान जो ‘इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड’ बनाते हैं, वह प्लाज्मा जेट इंजन को बिजली और हवा के दवाब से ही प्राप्त हो जाएगी। 

रॉकेट के बाद विमानों में लगेगा इंजन
करीब एक दशक से प्लाज्मा इंजन का प्रयोग केवल सेटेलाइट प्रक्षेपित करने वाले रॉकेटों तक ही सीमित था। लेकिन टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन के वैज्ञानिक बर्कंत गोक्सेल और उनकी टीम के कड़े प्रयासों के बाद बहुत जल्द इसका प्रयोग सार्वजनिक विमानों में भी संभव हो पाएगा। उनका कहना है कि प्लाज्मा जेट इंजन की ऐसी प्रणाली विकसित तैयार कर रहे हैं जो अंतरिक्ष में 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर विमान को ले जाने में सक्षम होगा। इस ऊंचाई पर पहुंचना सामान्य इंजन वाले किसी भी विमान के लिए संभव नहीं है।

20 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार
वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा जेट इंजन को इस प्रकार से डिजाइन किया है कि वो निश्चित ऊंचाई पर ‘वैक्यूम’ या कम दबाव में आसानी से काम कर सकता है। गोक्सेल और उनकी टीम इस पर आधारित एक सफल प्रयोग करके देख चुकी है। उनका मानना है कि यह एक तेज और बेहद शक्तिशाली जेट इंजन है जो किसी भी विमान की गति को 20 किलोमीटर प्रति सेकेंड की दर से बढ़ा सकता है। ईंधन से संचालित सामान्य इंजनों जैसी जान फूंकने के लिए इसमें ‘पल्स डेटोनेशन कंबंशन इंजन’ से मिलती-जुलती तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बामा के जेसन कैसिब्री के अनुसार इस प्रकार का इंजन विमानों में आने वाले खर्च को काफी हद तक कम करने में मददगार होगा।

पर्याप्त बिजली की समस्या
इजराइल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी डैन लेव का कहना है कि विमान को ऊर्जा देने वाले प्लाज्मा जेट इंजन को संचालित करने के लिए पर्याप्त बिजली की समस्या आड़े आ सकती है। उनका कहना है कि प्लाज्मा को ज्यादा मात्रा में बिजली देने के लिए कई हल्की बैटरियों की आवश्यक्ता होती है। इसके लिए हवाई अड्डों पर कई इलेक्ट्रिकल पावर प्लांट बनाने होंगे। प्लाज्मा इंजन की बिजली जरूरतों को पावर प्लांट के बिना पूरा कर पाना असंभव है। ऐसे में प्रत्येक विमान की बिजली संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए कई फ्लाइटों को निरस्त करना पड़ सकता है।
सोलर पैनल हो सकते हैं सहायक बर्कंत गोक्सेल के मुताबिक इस समस्या का हल निकालने के लिए सोलर पैनल काफी मददगार साबित हो सकते हैं। बैटरी और पावर प्लांट की बजाय प्लाज्मा इंजन को सौर ऊर्जा से संचालित करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसमें खर्चा भी कम होगा और विमानों में लगे प्लाज्मा जेट इंजन को पर्याप्त बिजली भी मिल पाएगी।

30 फीसदी ईंधन बचाने वाला इंजन
यह कोई पहला ऐसा अवसर नहीं है जब इस प्रकार का अत्याधुनिक इंजन विकसित हुआ है। इससे पहले भी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ मिलकर टेक्नोलॉजी फर्म ‘आर्का लैब’ के वैज्ञानिकों ने ‘हास 2सीए’ नाम के रॉकेट का निर्माण किया था। ‘हास 2सीए’ एक ‘सिंगल स्टेज टू ऑर्बिट’ रॉकेट है जिसमें ‘एरोस्पाइक’ इंजन लगा है जो जमीन से प्रक्षेपित होने के बाद उपग्रहों को सीधे अंतरिक्ष में स्थापित कर देता है। एरोस्पाइक इंजन से लैस ‘हास 2सीए’ रॉकेट अधिक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद खुद को स्वत: अंतरिक्षीय दबाव के अनुकूल ढाल लेता है। इस रॉकेट की गति उपग्रह प्रक्षेपण के सभी चरणों में एकदम सटीक रहती है। इससे उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले अन्य रॉकेट की तुलना में ईंधन की खपत 30 फीसदी कम होती है। साथ ही अन्य रॉकेट से इसकी गति भी अधिक तेज हो जाती है।

आमतौर पर उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित करने में दस से तीस मिनट तक का समय लगता है। लेकिन यह रॉकेट उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा में सिर्फ 5 मिनट में स्थापित कर देगा। जिसके कारण यह उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम दुनिया का सबसे तेज रॉकेट बन जाएगा। इस रॉकेट की खासियत है कि यदि कोई देश उपग्रह प्रक्षेपित करने का फैसला करता है तो यह उसके 24 घंटे के भीतर ही उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित कर सकता है, जिसकी अन्य रॉकेट से तैयारी में वैज्ञानिकों को महीनों लग जाते हैं। 
 

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