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MOVIE REVIEW- सचिनः ए बिलियन ड्रीम्स, एक लिविंग लीजेंड का सफर

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की बायोपिक 'सचिनः ए बिलियन ड्रीम्स' रिलीज हो गई है। सचिन तेंदुलकर ने भारत के करोड़ों क्रिकेट फैन्स की उम्मीदों का भार उठाकर 200 टेस्ट मैच और 463 वनडे मैच खेले हैं।

Namita.shuklaराजीव रंजन,नई दिल्लीFri, 26 May 2017 05:30 PM

MOVIE REVIEW- सचिनः ए बिलियन ड्रीम्स, एक लिविंग लीजेंड का सफर

MOVIE REVIEW- सचिनः ए बिलियन ड्रीम्स, एक लिविंग लीजेंड का सफर1 / 2

कलाकार: सचिन तेंदुलकर, अंजलि तेंदुलकर आदि
निर्देशक: जेम्स अर्सकाइन
निर्माता: रवि भागचंदका
संगीत : ए आर रहमान

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

सिर्फ नया होना ही नए होने की एकमात्र शर्त नहीं है। नया वह भी होता है, जो कभी पुराना नहीं पड़ता। सचिन रमेश तेंदुलकर के बारे में तो यह निस्संदेह कहा जा सकता है। जब से सचिन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब से लेकर अब तक उनके बारे में हम कितनी बातें कितनी बार सुन, पढ़ और देख चुके हैं, लेकिन मन नहीं भरता। उन्हें एक बार फिर से देखने, सुनने और पढ़ने की इच्छा खत्म नहीं होती। सचिन को लेकर भारतीयों की इसी दीवानगी का परिणाम है ‘सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स’।

सबसे पहली बात, यह फीचर फिल्म नहीं है। यह थोड़ा बहुत डॉक्यू ड्रामा और मुख्य रूप से एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म है। इसमें सचिन अपने जीवन के अब तक के सफर, खासकर अपने क्रिकेट के सफर के बारे में खुद बताते हैं। दरअसल सचिन ने 15 साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू किया और ढाई दशक खेलते रहे। सचिन की जितनी उम्र है, उसका आधा से ज्यादा हिस्सा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हुए गुजारा है। 

जाहिर है, उनकी जिंदगी के सफर में क्रिकेट की हिस्सेदारी ज्यादा है। तो ये लाजिमी ही है कि इस डॉक्यूमेंटरी में क्रिकेटीय जीवन का उल्लेख ज्यादा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इसमें उनकी निजी जिंदगी बिल्कुल नहीं है। वह है, मगर उतना ही, जितना दाल में नमक होता है।

इसमें सचिन के जीवन के उस दौर को ड्रामा के रूप में दिखाया गया है, जिसका कोई वीडियो उपलब्ध नहीं है। जाहिर है, यह दौर तभी तक था, जब तक उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम नहीं रखा था। उनके बचपन के कुछ किस्से, कोच रमाकांत आचरेकर से ट्रेनिंग के दृश्य आदि कुछ सीन ही डॉक्यू ड्रामा के रूप में दिखाए गए हैं। बचपन के जो एकाध सीन हैं, वे रोचक हैं और इस तथ्य को स्थापित करते हैं कि सचिन बचपन में कितने शरारती थे। छोटे बच्चे, जो क्रिकेटर बनना चाहते हैं, उनके लिए शिवाजी पार्क, मुंबई में सचिन की ट्रेनिंग वाले दृश्य बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं। सचिन की बहन सविता तेंदुलकर उनके लिए कश्मीर से बैट लेकर आती हैं, उस सीन को भी निर्देशक ने अच्छे से पेश किया है। इसी बैट और कोच रमाकांत अचरेकर से मुलाकात ने सचिन की जिंदगी बदल दी और भारतीयों को एक नया महानायक दिया।
 

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इसमें कुछ भी नहीं नया नहीं है, सिवाए सचिन की एकाध निजी बातों और परिवार के साथ उनके बिताए कुछ क्षणों के वीडियो के अलावा। लेकिन सचिन की शख्सीयत ऐसी है कि एक क्षण के लिए भी निगाह पर्दे से नहीं हटती। सचिन अपनी कहानी बताते हैं और उससे जुड़े वास्तविक वीडियो पर्दे पर चलते रहते हैं। बीच-बीच में सचिन के समकालीन और जूनियर खिलाड़ियों सौरव गांगुली, वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह, विराट कोहली, शेन वॉर्न, रिकी पोटिंग, ब्रायन लारा आदि; वरिष्ठ खिलाड़ियों सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री आदि; भाई अजीत तेंदुलकर, मां व बहन; दोस्त और क्रिकेटर सुब्रत बनर्जी व समीर दीघे की बाइट आती है, जिसमें वे सचिन के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताते हैं। 

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और राजसिंह डुंगरपुर की बाइट भी है। अमिताभ बच्चन भी अपने विचार सचिन के बारे में व्यक्त करते हैं। अगर सचिन के बाद इस डॉक्यूमेंटरी में कोई सबसे ज्यादा है, तो वह हैं उनकी पत्नी अंजलि तेंदुलकर। उन्होंने सचिन की कहानी को अपने अनुभवों के माध्यम से बयां किया है।

इस डॉक्यूमेंटरी में सचिन के जीवन से जुड़ी हर अहम घटना और पहलू को समेटा गया है। चाहे वह पिता और भाई से उनके रिश्ते हों, अपनी मां और बहन के प्रति प्रेम हो, पत्नी अंजलि से परिचय, प्रेम और परिणय की कहानी हो या फिर पहली बार कप्तानी छीने जाने का दर्द या दूसरी बार कप्तानी मिलने और उसे छोड़ने की बात हो। इसमें मैच फिक्सिंग का प्रकरण भी है, लेकिन डॉक्यूमेंटरी उसके के बारे में ज्यादा बात नहीं करती। बस ईशारा करके निकल जाती है। एक और चीज थोड़ी-सी खलती है कि सचिन के बाल सखा रहे विनोद कांबली इस डॉक्यूमेंटरी में कहीं नहीं है, जिनके साथ साझेदारी कर सचिन ने विश्व रिकॉर्ड बनाया था। बस एक जगह सचिन उनका जिक्र करते हैं।

इस डॉक्यूमेंटरी को देख कर यह बात शिद्दत से महसूस होती है कि सचिन की कहानी बताने के लिए डॉक्यूमेंटरी ज्यादा मुफीद माध्यम है। सचिन ऐसे लीजेंड हैं, जिनके किरदार में किसी अभिनेता को देखना शायद वह एहसास नहीं दे पाता, जो सचिन के नाम से पैदा होता है। यह डॉक्यूमेंटरी रोमांचित करती है, भावुक करती है और प्रेरित भी करती है। 

अगर आप सचिन के प्रशंसक हैं तो यह डॉक्यूमेंटरी आपके लिए बहुत कीमती चीज की तरह होगी। अगर आप खिलाड़ी बनने की इच्छा रखते हैं, खेलों से प्यार करते हैं तो आपको यह डॉक्यूमेंटरी जरूर देखनी चाहिए। अगर आप सचिन के प्रशंसक नहीं है, आपकी खेलों में भी कोई रुचि नहीं है, तो भी आपको यह डॉक्यूमेंटरी देखनी चाहिए। यह आपमें जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण भरेगी। आपको यह दृष्टि देगी कि महान लोग भी दुख और निराशा में डूबते है, लेकिन उसमें डूब नहीं जाते, उससे उबरते हैं और फिर इतिहास की रचना करते हैं।