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सीखने की सही प्रक्रिया क्या हो

हम अकादमिक क्षेत्र में हों या व्यावसायिक क्षेत्र में, जानने और सीखने की प्रक्रिया हमारी रुचियों और मानसिक प्रवृत्तियों से प्रभावित रहती हैं। इस तरह जो हम जानते या सीखते हैं, वह वास्तविकता का एक पक्ष...

सीखने की सही प्रक्रिया क्या हो
अभिषेकThu, 20 Jul 2017 01:05 AM
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हम अकादमिक क्षेत्र में हों या व्यावसायिक क्षेत्र में, जानने और सीखने की प्रक्रिया हमारी रुचियों और मानसिक प्रवृत्तियों से प्रभावित रहती हैं। इस तरह जो हम जानते या सीखते हैं, वह वास्तविकता का एक पक्ष होता है। यहां माइकल पेट्रिक लिंच, जो एक लेखक और अमेरिका के कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक हैं, इससे जुड़ी समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं। वे कहते हैं कि इससे समस्या यह पैदा हुई है कि जो हम जान या समझ रहे हैं, उसे ही पूरा सच मान बैठे हैं।

आज तकनीक ने हमारी इसी प्रवृत्ति को पोषित करने का काम किया है। डाटा एनालेटिक्स की मदद से फेसबुक वही जानकारियां व प्रचार सामग्री हमें दिखाती है, जिससे हमारी रुचियां पोषित होती हैं। इससे हम सीखने की सही प्रक्रिया से भटक गए हैं। सूचनाएं हमें ऐसा प्रतीत कराती है कि हम जानते तो बहुत कुछ हैं, पर क्या जानते हैं यह हमें स्पष्ट नहीं।

क्या है हल
माइकल कहते हैं कि हमें दर्शन के एक मूलभूत सिद्धांत को जानना चाहिए। दर्शन यह कि हम सभी एक ही वास्तविक स्थिति में जीते हैं। इसे व्यवहार में लाने के लिए तीन चीजें करनी होंगी। 

हमें इस सिद्धांत पर विश्वास करना होगा। यह हमें दी जा रही जानकारियों पर संदेह करने के लिए प्रेरित करता है। अगर हम यह मान लें कि जो कुछ भी इंटरनेट पर बताया जा रहा है वह सही है, और सच भी वही है, जो वहां बताया जा रहा है। तब आलोचना करना हमारे लिए नामुमकिन हो जाता है। सच को जानने और सीखने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है।

वास्तविकता को जानने का प्रयास करना होगा। किसी जानकारी को इंटरनेट से डाउनलोड करने और यह समझने में कि कोई जानकारी या तथ्य ऐसे क्यों है, दोनों में अंतर है। कोई बीमारी कैसे फैलती है? गणित कैसे किसी घटना को समझाता है? यह जानने में डाउनलोडिंग से ज्यादा कुछ लगता है। वह है तुम्हारी रचनात्मकता। यानी हमें लोगों के  बीच जाकर खोज करनी होगी। कुछ जानने के लिए इंटरनेट पर ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं।

यह मानना होगा कि हम सब कुछ नहीं जानते, हमें दूसरी की जानकारियों को स्वीकार करने के लिए तैयार करता है। हम तब दूसरों के अनुभव और कार्यों को समझ कर अपने ज्ञान के दायरे को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

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