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ट्रेनों में तस्करी

टे्रनों के जरिए देश भर में ड्रग्स की तस्करी के मामले का सामने आना शर्मनाक है। रिपोर्ट बता रही है कि तमाम ट्रेनों में खुलेआम नशे के सामान की तस्करी हो रही है और इसमें रेलवे पुलिस से लेकर कर्मचारी तक...

ट्रेनों में तस्करी
द डेली स्टार, बांग्लादेशFri, 23 Jun 2017 10:41 PM
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टे्रनों के जरिए देश भर में ड्रग्स की तस्करी के मामले का सामने आना शर्मनाक है। रिपोर्ट बता रही है कि तमाम ट्रेनों में खुलेआम नशे के सामान की तस्करी हो रही है और इसमें रेलवे पुलिस से लेकर कर्मचारी तक शामिल हैं। एक उदाहरण ही काफी है कि किशोरगंज से तेजगांव होते हुए आगे जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन तेजगांव पहुंचने से एक किलोमीटर पहले ही इतनी धीमी हो जाती है कि उसमें से सिर पर पोटली लिए लोग आसानी से उतर जाते हैं। ट्रेन चालक इसके लिए अजीबोगरीब तर्क देते हैं कि यह सब तो उन लोगों को सहूलियत देने के लिए होता है, जो वहां उतरना चाहते हैं, क्योंकि तेजगांव में ट्रेन का स्टॉपेज नहीं है। लेकिन सच्चाई कुछ और है। दरअसल ढाका, ब्राह्मनबरिया और भैराब के बीच चलने वाली कम से कम 17 ट्रेनों के जरिए जमकर तस्करी हो रही है। ये ट्रेनें बिना ठहराव वाले स्टेशनों के आसपास धीमी हो जाती हैं और नशे के व्यापारी आराम से उतर लेते हैं। कोई शक नहीं कि यह सब रेलवे पुलिस और कर्मचारियों की मिलीभगत से हो रहा है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। 

यह तंत्र कितना व्यवस्थित है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तस्करों की गैर-मौजूदगी में भी माल आसानी से आता-जाता रहता है। ट्रेन की विभिन्न बोगियों में ऐसे बोरे और डब्बे लादकर सिर्फ उन पर गंतव्य का टैग लगा दिया जाता है, जिसे ट्रेन का स्टाफ इंगित स्थान पर उतार या गिरा देता है। यह महज सच्चाई से आंखें मूंद लेने का मामला नहीं है, बल्कि यह बाकायदा गलत काम को सुनियोजित तरीके से बढ़ावा देने का मामला भी है। अधिकारी भले ही इन सब बातों से इनकार कर पल्ला झाड़ने की कोशिश करें और यह बताएं कि उनकी सतर्कता से इस पर कितना काबू पाया गया है, लेकिन सच तो यही है कि यह सब बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है। ऐसे में, जरूरत सच्चाई पर परदा डालने की नहीं, इन आरोपों पर गंभीर रुख अपनाने की है। यदि ड्रग्स तस्करी पर अंकुश लगाना है, तो सबसे पहले इसकी जांच करके दोषियों को दंड दिया जाना चाहिए, चाहे वे पुलिस वाले हों या फिर रेलवे के कर्मचारी। 

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