सबक सीखें शरीफ
किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री का विवादास्पद हालात में न्यायिक निष्कासन देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने वाला हो सकता था। लेकिन अब जिस तरह नवाज शरीफ जीटी रोड से लाहौर लौटने की योजना बना रहे हैं,...
किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री का विवादास्पद हालात में न्यायिक निष्कासन देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने वाला हो सकता था। लेकिन अब जिस तरह नवाज शरीफ जीटी रोड से लाहौर लौटने की योजना बना रहे हैं, उसमें इमरान खान की पीटीआई और शरीफ की पीटीएम-एन के वाक-युद्ध के मद्देनजर राजनीतिक परिदृश्य में उथल-पुथल से इनकार नहीं किया जा सकता। सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि शरीफ इसमें कितना वक्त लगाते हैं? हालांकि वह देश की लोकतांत्रिक निरंतरता व स्थिरता की बात जरूर कर रहे हैं। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी किए बिना पीएमएल-एन सहित विपक्षी दलों से राजनीतिक संवाद की इच्छा जताई। उन्होंने 2006 के ‘चार्टर ऑफ डेमोक्रेसी’ की चर्चा भी की, जिस पर बेनजीर भुट्टो के साथ सहमति बनी थी। इन सबके बावजूद शरीफ की लाहौर वापसी को एक नए और बडे़ राजनीतिक घटनाक्रम की शुरुआत के रूप में लिया जा रहा है, जिसमें पीटीआई सड़कों पर आ सकती है। पंजाब में पीएमएल-एन की सरकार होने के कारण बड़ी हिंसा की आशंका तो कम है, लेकिन टकराव से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में, पीएमएल-एन नेतृत्व को अपने समर्थकों को सख्त और साफ संदेश देना होगा। पंजाब सरकार से भी अपेक्षा है कि वह विपक्ष के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को अनुमति देगी। माना जा रहा है कि जिस तरह अक्तूबर 2011 में इमरान खान की रैली चुनाव अभियान में तब्दील हो गई थी, ठीक उसी तरह शरीफ की रोड यात्रा उनके नए अभियान की शुरुआत बनेगी। जब सभी दल देश में लोकतंत्र और चुनाव के पक्ष में हैं, तो सभी के लिए संयम बरतना भी उतना ही जरूरी है। 1999 के सबक तो शरीफ को याद हैं, लेकिन उन्हें नए घटनाक्रम से भी कुछ सीखना होगा। हालांकि उनको एहसास है कि उनकी जरा सी नासमझी देश को किस ओर धकेल सकती है, इसलिए देखना होगा कि वह कितना संयम बरत पाते हैं? राजनीति हमेशा भविष्य की होनी चाहिए। शरीफ के पास अब भी यह अवसर है कि वह और उनकी पार्टी अपने व्यवहार से साबित कर सकें कि वे दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर देश को बेहतर व्यवस्था दे पाएंगे।