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कानून का मखौल

हम यह जानकर सचमुच हैरान हैं कि मीरपुर पुलिस एक ऐसे मुकदमे को लेकर अदालत में गई है, जिसमें गुंडागर्दी करने का आरोपी ग्यारह महीने के एक मासूम के साथ-साथ अरिफुर रहमान नाम के उस शख्स को बनाया गया था,...

कानून का मखौल
हिन्दुस्तानFri, 12 May 2017 12:21 AM
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हम यह जानकर सचमुच हैरान हैं कि मीरपुर पुलिस एक ऐसे मुकदमे को लेकर अदालत में गई है, जिसमें गुंडागर्दी करने का आरोपी ग्यारह महीने के एक मासूम के साथ-साथ अरिफुर रहमान नाम के उस शख्स को बनाया गया था, जिसकी मौत वारदात के तीन साल पहले ही हो चुकी थी! इस पूरे मामले की विडंबना देखिए कि मीरपुर पुलिस ने बाकायदा आठ महीनों की गहरी तफ्तीश के बाद इन दोनों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया था। यह पूरे मामले की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता, अगर ग्यारह महीने के मासूम रुबेल को उसके वालिद ने अदालत में हाजिर न किया होता। जाहिर है, यह पूरा वाकया हमें अपने मुल्क में पुलिस के काम-काज के तरीके पर कुछ गंभीर सवाल खड़े करने को प्रेरित करता है। यह सुकून की बात है कि अदालत ने इस गैर-मामूली मुकदमे का संज्ञान लिया है और जांच अधिकारी (आईओ) को आदेश दिया है कि वह अपनी पड़ताल की पूरी जानकारी अदालत में पेश करें। बहरहाल, हम जानना चाहेंगे कि आखिर इस मुकदमे से जुड़े पुलिस प्रशासन का क्या कहना है, जिसने एक शिशु और मरे हुए इंसान के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया? किसी भी मुकदमे की जांच-पड़ताल की एक तयशुदा प्रक्रिया होती है, जिसके पालन की उम्मीद हरेक जांच अधिकारी से की जाती है, और यह मुकदमा इस बात का सुबूत है कि हमारे मुल्क में कितनी लापरवाही से मुकदमों की तफ्तीश की जाती है। रुबेल की अम्मी ने अदालत से यह गुहार लगाई है कि उनके बच्चे के खिलाफ जांच करने वाले अफसर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और हम इस मांग को बिल्कुल जायज मानते हैं।

इस मुकदमे का इतना ही अहम पहलू यह भी है कि पुलिस इस तथ्य को नहीं जान पाई कि दूसरे आरोपी की मौत तीन साल पहले ही हो चुकी थी। आईओ को निश्चित रूप से अपने इस निर्मम और लापरवाह रवैये का जवाब देना होगा। इस मुकदमे को उन तमाम इदारों को भी एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए, जो पुलिस की जांच-पड़ताल के तरीके पर नजर रखते हैं। इस पूरे मामले में सिस्टम को मजाक बनाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी ही चाहिए।
द डेली स्टार, बांग्लादेश

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