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ज्यादा कीमती है जान

टेक्सास की भयावह घटना के बाद बहस यह नहीं है कि हत्याकांड क्यों हुआ? बड़ा सवाल यह है कि हत्यारे के पास ऐसी खतरनाक बंदूक थी कैसे, वह भी तब, जब वह मानसिक रूप से असामान्य और विवादास्पद अतीत वाला था?...

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न्यूयार्क टाइम्स, अमेरिकाTue, 07 Nov 2017 11:49 PM
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टेक्सास की भयावह घटना के बाद बहस यह नहीं है कि हत्याकांड क्यों हुआ? बड़ा सवाल यह है कि हत्यारे के पास ऐसी खतरनाक बंदूक थी कैसे, वह भी तब, जब वह मानसिक रूप से असामान्य और विवादास्पद अतीत वाला था? राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में जिस तरह असल मुद्दे से ध्यान बंटाने की कोशिश हुई, उससे तय हो गया है ‘बंदूक संस्कृति’ उनकी चिंता में नहीं है और खतरनाक हथियारों तक आम पहुंच पर रोक नहीं लगने जा रही। यानी बंदूक उद्योग पर कोई संकट नहीं है। राष्ट्रपति ट्रंप ने भी इस मामले को ‘बंदूक संस्कृति से उपजे हालात’ नहीं, वरन देश के लोगों में पनपते ‘मानसिक विकार का मामला’ बताकर अपना रुख जता ही दिया है। यह उस नेशनल राइफल एसोसिएशन की चिर-परिचित बकवास पर मुहर है, जिसके समर्थन से आज वह यहां तक पहुंचे हैं। इस लॉबी की पहुंच से सभी वाकिफ हैं। ट्रंप तो फरवरी में ही ओबामा प्रशासन के उस कानून को खत्म कर चुके हैं, जो हथियारों की आम पहुंच रोकता था। ट्रंप तो यहां तक कह गए कि अगर एक अन्य आदमी ने गोली न चलाई होती, तो कुछ और जानें जातीं।

यानी वह मानते हैं कि काश, कुछ और बंदूकें चलतीं, तो बेहतर होता। यानी उन्हें ‘बंदूक हिंसा की इस बीमारी में ही इसका इलाज’ दिख रहा है। यह फंतासी भले हो, पर इसे तार्किक तो नहीं कहा जा सकता है। ऐसे देश में तो बिल्कुल नहीं, जो प्रति व्यक्ति बंदूक की उपलब्धता और प्रति बंदूक से होने वाली मौत का आंकड़ा विश्व में सबसे ऊपर रखता हो। सच है कि अमेरिका में जिस राज्य में बंदूकें ज्यादा हैं, वहां बंदूक से होने वाली मौतें भी अन्य मौतों के अनुपात में ज्यादा हैं। कम ही घटनाएं होंगी, जहां आत्मरक्षा में चली गोली से मौत हुई हो। बंदूकों से होने वाली आत्महत्याएं और हत्याओं की संख्या जरूर कहीं ज्यादा है। ऐसे हालात में नए सिरे से बहस की जरूरत तो है ही, देश के नेतृत्व को भी अपना नजरिया बदलना होगा। ऐसे कानूनों के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है, जो आम आदमी की जान की नहीं, बल्कि बंदूक लॉबी के हितों की हिफाजत ज्यादा करते हैं। 

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