पनामागेट मामले में हमारी चाल इतनी सुस्त क्यों
हमारे देश में हरेक व्यक्ति के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर जिस पनामा पेपर लीक मामले में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुरसी जाते-जाते बची, उस मामले में हमारे यहां अब तक क्या हुआ? सवाल...
हमारे देश में हरेक व्यक्ति के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर जिस पनामा पेपर लीक मामले में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुरसी जाते-जाते बची, उस मामले में हमारे यहां अब तक क्या हुआ? सवाल वाजिब है। मियां साहब की कुरसी पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय की कृपा से फिलहाल बच गई है, लेकिन उनके व उनके परिजनों के खिलाफ जांच जारी है और कुछ भी हो सकता है। फिर भारत में इस मामले में खामोशी क्यों?
पिछले साल चार अप्रैल को जब अचानक यह मामला सुर्खियों में आया, तो लगा कि फिर से विदेश में काले धन और भ्रष्टाचार का कोई बड़ा दस्तावेज हाथ लगा है, जिस पर कार्रवाई होगी और बहुत कुछ सामने आएगा। पनामा पेपर्स के नाम से लीक हुुए इन दस्तावेजों को सामने लाने में मुख्य भूमिका अमेरिका स्थित एक एनजीओ व खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय महासंघ आईसीआईजे की थी। आईसीआईजे ने उन दस्तावेजों की गहरी छानबीन के बाद दावा किया था कि इसमें ढेरों फिल्मी और खेल जगत की हस्तियों के अलावा दुनिया भर के करीब 140 राजनेताओं और अरबपतियों की छिपे धन का पता चला है। जांच में जो डेटा सामने आए, वे 1977 से लेकर 2015 तक लगभग 40 वर्षों के हैं। इस संगठन के मुताबिक, उसे करीब एक करोड़, 15 लाख दस्तावेज मिले थे। पनामा स्थित लॉ फर्म मोसैक फोन्सेका से लीक हुए इन दस्तावेजों को लेकर दावा किया गया कि इनमें जिन 500 भारतीय हस्तियों के नामों का जिक्र है, उनमें से 300 नामों की पुष्टि भी की जा चुकी है।
इस लॉ फर्म के 35 से भी अधिक देशों में दफ्तर हैं। जाहिर है, इतने सारे डेटा को खंगालना और उसमें से एक-एक व्यक्ति, कंपनी तथा उनके लेन-देन को सामने लाना आसान काम नहीं था। इसके लिए जिन-जिन देशों के लोगों के नाम सामने आए, उन सबकी एजेंसियों को लगने की जरूरत थी। दावा किया गया है कि इन दस्तावेजों की जांच दुनिया के 100 से भी ज्यादा मीडिया समूहों ने की। इस जांच में करीब 140 राजनेताओं की संपत्ति से जुड़ी गुप्त सौदेबाजी को उजागर किया गया। इन सियासी हस्तियों में 12 मौजूदा व पूर्व राष्ट्र प्रमुख शामिल थे।
हम यहां विदेशी नामों में विस्तार से जाना नहीं चाहेंगे। उन सब देशों में कार्रवाइयां अपने अनुसार हुई हैं या हो रही हैं। किंतु भारत में? जैसा कि हमने ऊपर कहा है, इस सूची में 500 भारतीयों और कंपनियों के नाम हैं। इनमें बड़े-बड़े अभिनेता, अभिनेत्री, उद्योगपति के नाम शामिल हैं। हम यह नहीं कहते कि जिनके नाम सामने आए, वे सारे भ्रष्ट हैं या भारत में कर बचाने के लिए उन्होंने विदेश में कंपनियां खोलकर निवेश किया। किंतु उनके बारे में देश के सामने एक मुकम्मल जांच के बाद सही स्थिति रखी जानी चाहिए थी। गौरतलब है कि इस खुलासे में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के परिवार का भी विदेशी कंपनियों से संबंध सामने आया है। शी ने फौरन इसे भी जांच में शामिल करने का आदेश दिया, वहीं इस खुलासे के बाद आइसलैंड के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा।
भारत में पनामागेट को लेकर कोई तूफान क्यों नहीं आया या आ रहा है? इस संबंध में हमारे पास तीन ही खबरें हैं। एक यह कि पनाना पेपर लीक मामले में सरकार ने स्पेशल टास्क फोर्स बनाई थी, जिसे काले धन पर बनी एसआईटी ने सूचना मुहैया कराई। इसके बाद क्या हुआ, इसकी विस्तृत जानकारी नहीं है। दूसरी खबर 15 नवंबर, 2016 की है, जिसमें कहा गया है कि पनामा मामला सामने आने के सात महीने बाद कर चोरी के आरोपों को लेकर देश में भारतीयों के खिलाफ सबसे बड़ी छानबीन जारी है। पनामा पेपर्स जांच से जुड़े फिलहाल 415 भारतीय आयकर विभाग की जांच के घेरे में हैं।
तीसरी खबर, सात मार्च 2017 की है। पनामा लीक मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से मामले से संबंधित छह एजेंसियों की रिपोर्ट तलब की है। केंद्र इन एजेंसियों की सीलबंद लिफाफे वाली रिपोर्ट अदालत में जमा करेगी। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि रिपोर्ट मिलने के बाद ही इस मामले की जांच का फैसला लिया जाएगा। जाहिर है, अब तक पनामा लीक मामले में हमारे यहां जो कुछ हुआ, वह असंतोषप्रद है। इसकी जांच में तेजी लाकर देश के सामने पूरा सच रखा जाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)