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खुद भी बदल गया है हमें बदलने वाला योग

योग आखिर क्या है? यह कला है, विज्ञान है या फिर हिंदू धर्म का आचरण? आज के दौर में इसे सिर्फ एक खास धर्म से जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि दूसरी तरफ इसे राजनीतिक रूप देने का प्रयास भी हो रहा है। हजारों साल...

खुद भी बदल गया है हमें बदलने वाला योग
त्रिलोक चन्द, पूर्व प्रोफेसर, गुरुकुल कांगड़ीTue, 20 Jun 2017 11:28 PM
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योग आखिर क्या है? यह कला है, विज्ञान है या फिर हिंदू धर्म का आचरण? आज के दौर में इसे सिर्फ एक खास धर्म से जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि दूसरी तरफ इसे राजनीतिक रूप देने का प्रयास भी हो रहा है। हजारों साल पहले जब धर्म अपनी अवधारणा में भी नहीं आया था, तब भी योग इस धरा पर था। योग सीधे तौर पर विज्ञान है, जो हमारे मन, शरीर और आत्मा को कलात्मक ढंग से एक लय में काम करने का रास्ता दिखाता है। जैसे चिकित्सा विज्ञान सबके लिए है, सारे विश्व के लिए है, इसी तरह योग विज्ञान भी सभी के लिए है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भौतिक विज्ञानों की तरह योग एक व्यावहारिक विज्ञान है। जिस तरह अन्य प्रकार के विज्ञान अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान करके मानव जाति की सेवा कर रहे हैं, उसी प्रकार योग विज्ञान भी विभिन्न स्तरों पर मानव जाति की सेवा करने में समर्थ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जहां चिकित्सा विज्ञान रोगों की चिकित्सा करके उन्हें समाप्त करता है, वहां योग विज्ञान रोगों को होने ही नहीं देता। यह योग विज्ञान की विशेषता है।

योग का प्राचीन लक्ष्य तो मोक्ष की प्राप्ति है। इसी के लिए साधक इसकी साधना किया करते थे। इसे ही निर्वाण, कैवल्य आदि नाम दिए जाते हैं। इसे प्राप्त करके जीवात्मा समस्त दुखों से दूर हो जाती है। वह समस्त क्लेशों, बंधनों, वासनाओं से मुक्त हो जाती है। भारतीय चिंतन परंपरा के अनुसार, यही मानव जीवन का परम लक्ष्य है। परम पुरुषार्थ है। 

योग का दूसरा उपयोग, जिसे हम आधुनिक लक्ष्य भी कह सकते हैं, इस जीवन के उत्थान के लिए है। कोई आवश्यक नहीं कि मुक्ति को प्राप्त किया जाए, बल्कि अपने जीवन को उच्चतर बनाने के लिए जिसे जितना आवश्यक हो, वह उतना ही करे। अगर कोई केवल यह चाहता है कि उसका अमुक रोग दूर हो जाए, तो उसके लिए योग में जो बतलाया गया है, वह उसे करे। इस दृष्टिकोण से योग का महत्व अनेक क्षेत्रों में है। 

शारीरिक स्तर पर योगाभ्यास से मनुष्य निरोग हो सकता है। वह ऐसी स्थिति में जा सकता है कि भविष्य में कभी कोई रोग ही न हो। योग से शारीरिक बल में वृद्धि होती है। प्राणायाम तो शारीरिक बल की वृद्धि का बहुत ही प्रबल साधन है। विश्व प्रसिद्ध पहलवान राममूर्ति जी से जब उनके अथाह बल का कारण पूछा गया था, तो उन्होंने प्राणायाम बतलाया था। इसके अतिरिक्त योग से आयु बढ़ती है और शारीरिक सौंदर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही योग से प्राण-शक्ति की वृद्धि होने लगती है। इसी से इंद्रियों की शक्ति भी बढ़ती है और उनके दोष दूर होते हैं। मानसिक स्तर पर योग करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है और ज्यों-ज्यों मन एकाग्र होता जाता है, त्यों-त्यों मन की शक्ति बढ़ती जाती है। यह योग विज्ञान का एक सिद्धांत है।

बौद्धिक स्तर पर मनुष्य योगाभ्यास से अपनी मानसिक क्षमता की वृद्धि कर सकता है। विशेष स्तर पर योग करने पर मनुष्य की बुद्धि तीव्र, सूक्ष्म, पवित्र और प्रतिभाशाली बन जाती है, जो कि कठिन और सूक्ष्म विषयों को शीघ्र ग्रहण करती है। श्री अरविंद ने कहा है कि प्राणायाम करने से मेरी कविता लिखने की क्षमता बेहद बढ़ गई थी। पहले जहां महीने में दो सौ पंक्तियां लिख पाता था। वहां अब उतनी पंक्तियां आधे घंटे में लिखने लगा। सामाजिक स्तर पर अष्टांग योग के प्रथम अंग यम के पालन से समाज में सुख और शांति की वृद्धि होती है। 

लेकिन योग को लेकर सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि उसका रूप बिगड़ते-बिगड़ते इतना विकृत हो गया है कि उसकी वास्तविकता को पहचानना कठिन हो चुका है। जैसे बंगाल में गंगा के जल को देखकर गंगोत्री के गंगाजल की निर्मलता का अनुमान लगाना ही कठिन है। इसलिए सबसे पहले जरूरत है कि हम योग के वास्तविक स्वरूप को समझें और तब उसे क्रियात्मक रूप में करें। जब तक योग को जीवनशैली में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक काम नहीं चलने वाला। इसे एक आंदोलन का रूप देना होगा, जो कि धीरे-धीरे पैदा हो रही जागरूकता को देखते हुए असंभव भी नहीं है। आज जब हम अपनी जड़ों से पूरी तरह कटते जा रहे हैं, तो ऐसे में योग हमें रास्ता दिखा सकता है कि हमारे लक्ष्य क्या हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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