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आशंकाओं को गलत साबित करता ब्रिटेन का हिंदू स्कूल

यूरोप का पहला सरकारी सहायता प्राप्त हिंदू स्कूल लंदन के उपनगर हैरो में सितंबर 2008 में खुला था। हरे कृष्णा आंदोलन की पहल पर शुरू हुआ यह स्कूल लंदन के उस उपनगर में है, जहां ब्रिटेन के एक चौथाई हिंदू...

आशंकाओं को गलत साबित करता ब्रिटेन का हिंदू स्कूल
महेंद्र राजा जैन, वरिष्ठ हिंदी लेखकMon, 03 Jul 2017 08:56 PM
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यूरोप का पहला सरकारी सहायता प्राप्त हिंदू स्कूल लंदन के उपनगर हैरो में सितंबर 2008 में खुला था। हरे कृष्णा आंदोलन की पहल पर शुरू हुआ यह स्कूल लंदन के उस उपनगर में है, जहां ब्रिटेन के एक चौथाई हिंदू रहते हैं। शुरू में यहां सिर्फ 30 बच्चे थे, लेकिन 2014 का सत्र शुरू होने तक इसकी पूरी क्षमता यानी 236 बच्चों की जगह भर गई। आज यहां क्षमता से अधिक यानी चौगुने छात्रों की ‘वेटिंग लिस्ट’ है। इसे वहां बसे हिंदुओं के लिए ब्रिटेन सरकार का बड़ा योगदान मानते हुए इस स्कूल को ‘शांति का स्वर्ग’ कहा जाने लगा है। हिंदू धर्म में ‘शांति’ शब्द का विशेष महत्व है।

इसकी स्थापना के वक्त ब्रिटेन की धार्मिक संस्थाओं के संगठन ‘एकार्ड’ ने ब्रिटेन सरकार की नीति की आलोचना करते हुए कहा था कि ऐसे स्कूलों से लोगों में जातीय या अन्य धर्मावलंबी लोगों से अलग रहने की भावना को उभार मिलेगा, जो यहां उचित नहीं है। इससे बच्चों का भी सही विकास नहीं हो पाएगा। ‘एकार्ड’ के तत्कालीन अध्यक्ष रब्बी (यहूदी पादरी) जोनाथन रोमेन का कहना था कि ऐसे  स्कूल मां-बाप को भले ही संतोष दें कि उनके बच्चे ऐसे स्कूल में पढ़ रहे हैं, जहां उन्हें उनकी धार्मिक मान्यताओं व निष्ठा की शिक्षा मिलेगी, मगर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे उनका सीमित विकास ही होगा। वे दूसरे धमार्ें या लोगों के बारे में अनजान रहेंगे। इसी तरह, अन्य स्कूलों के बच्चे हिंदू धर्म के बारे में नहीं जान पाएंगे, जबकि बच्चों के साझा विकास के लिए यह जरूरी है कि धार्मिक आधार पर ऐसे विभेद खत्म किए जाएं। लेकिन धीरे-धीरे ऐसी सभी आशंकाएं गलत साबित  होती दिखीं। 

स्कूल का पाठ्यक्रम तैयार करते वक्त उन्हें अन्य धर्मों के बारे में कुछ बताने पर खास ध्यान रखा गया है। यह भी ध्यान रखा जाता है कि स्कूल की नियुक्तियां केवल योग्यता के आधार पर हों, न कि धर्म के आधार पर। इनमें किसी भी धर्म के बच्चे का प्रवेश वर्जित नहीं है, जैसा अन्य धर्मों के लिए सहायता प्राप्त स्कूलों में होता है। वैज्ञानिक रिचर्ड डाकिन्स का कहना है कि 15 वर्ष तक की उम्र तक यानी जब तक वे स्वयं कुछ समझने व निर्णय करने योग्य न हो जाएं, बच्चों से किसी भी धर्म के प्रति आग्रह नहीं किया जाना चाहिए। इसके विपरीत सरकार मानती है कि किसी क्षेत्र विशेष में किसी धर्मानुयायियों की पर्याप्त संख्या हो और वे अपने बच्चों के लिए विशेष स्कूल चाहतेे हैं, तो सरकार इस पर विचार करेगी।

ब्रिटेन में इस समय 6,852 धार्मिक स्कूल हैं, जिनमें से अधिकांश प्रोटेस्टेंट या कैथोलिक ईसाई स्कूल हैं। शेष स्कूलों में 37 यहूदी, 11 मुस्लिम और तीन सिख स्कूल हैं। इन स्कूलों में 17 लाख से भी अधिक बच्चे पढ़ते हैं। कृष्णा अवंति स्कूल में हैरो और निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले करीब चार हजार हिंदू परिवारों के अतिरिक्त अन्य धर्मावलंबियों के बच्चों को हिंदू धार्मिक पद्धति से शिक्षा दी जा रही है। पहले यह घोषणा की गई थी कि इस स्कूल में केवल उन्हीं बच्चों को प्रवेश मिलेगा, जिनके घरों में हिंदू धर्म के मुख्य सिद्धांतों (शाकाहार और मद्य निषेध) का पालन होता है, लेकिन बाद में कुछ हिंदू परिवारों के विरोध करने पर यह तय हुआ कि प्रवेश के समय नौ बातों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। उन बच्चों को प्रवेश में प्रमुखता दी जाती है, जिनके परिवारों में हिंदू धर्म की शिक्षाओं का पालन किया जाता है, उसके बाद उन बच्चों को, जिनके परिवार हिंदू धर्मानुयायी हैं और उसके बाद अन्य बच्चों को। 

स्कूल के गवर्नर चेयरमैन ने स्थापना दिवस पर अन्य धर्मावलंबियों की आशंकाओं को निराधार बताते हुए कहा था कि यह सोच गलत है कि ऐसे स्कूलों से अलगाववाद की भावना बढ़ती है। अन्य धमार्ें के स्कूल यहां वषार्ें से चल रहे हैं। और तो और, ईसाइयों में भी कैथोलिकों तथा अन्य लोगों के अलग-अलग स्कूल हैं और वहां से पढ़कर निकले कई छात्र अपने-अपने क्षेत्र में उच्च पदों पर हैं। उन स्कूलों में भी शिक्षा का स्तर काफी ऊंचा है। इन स्कूलों में बच्चों को अपने धर्म के प्रति निष्ठा रखते हुए और अपनी अलग पहचान रखते हुए इस बात की शक्षा दी जाती है कि वे समाज ही नहीं, देश में भी विविध क्षेत्रों में खुलकर भाग लें। इस स्कूल की भी यही नीति है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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