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रजत पट के स्वर्णिम युग की यादों का खाक हो जाना

दसेक दिन पहले जिस स्टूडियो के प्रांगण में गणेश पूजा की धूम थी, पूरा कपूर परिवार गणपति बप्पा की दस दिन की पूजा के बाद गाजे-बाजे सहित विसर्जन को निकला था, वह अब भीषण आग से खंडहर और राख के ढेर में...

रजत पट के स्वर्णिम युग की यादों का खाक हो जाना
जयंती रंगनाथन सीनियर फीचर एडीटर, हिन्दुस्तानMon, 18 Sep 2017 10:45 PM
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दसेक दिन पहले जिस स्टूडियो के प्रांगण में गणेश पूजा की धूम थी, पूरा कपूर परिवार गणपति बप्पा की दस दिन की पूजा के बाद गाजे-बाजे सहित विसर्जन को निकला था, वह अब भीषण आग से खंडहर और राख के ढेर में तब्दील हो गया है। आसपास बनी बहुमंजिली बिल्डिंग की खिड़कियों से झांकती आंखें रणबीर कपूर, ऋषि कपूर और रणधीर कपूर को देखकर हाथ हिला रही थीं, आज वे खिड़कियां बंद हैं। धुंध और धुएं की लपटों से खाक हो रहे आरके स्टूडियो ने वक्त के साथ वैसे भी अपनी पुरानी भव्यता खो दी है। बीमा कंपनी जरूर इस नुकसान की भरपाई कर देगी, लेकिन आरके स्टुडियो को हुआ नुकसान इससे कहीं अधिक है। 

मायानगरी मुंबई के फिल्मी गलियारों में घूमते-फिरते कभी किसी मेकअप मैन से, तो कभी किसी कैंटीन के वेटर से अनसुने-अनजाने, गुदगुदाने वाले प्रसंग सुनने को मिलते हैं। आरके स्टुडियो के कैंटीन में कई सालों तक काम करने वाले बाबू ने कभी रस ले-लेकर बताया था कि कैसे साठ के दशक में शो मैन राज कपूर कैंटीन में बना इडली-वड़ा, मिर्च भजिया शौक से खाया करते थे। कैसे जब चिंटू बाबा (ऋषि कपूर) पैदा हुए, तो राज साहब अपने नन्हे से बच्चे को सबसे मिलाने के लिए आरके स्टूडियो लेकर आए थे। कैसे हर बरस होली में राज कपूर इस स्टूडियो में काम करने वाले हर व्यक्ति को अपने हाथ से गुलाल लगाकर मिठाई खिलाते थे। कैसे अपनी हर फिल्म की प्रीमियर के बाद राज साहब थियेटर से सीधे आरके स्टूडियो आते और रात भर अकेले चांद तले जाम पीते रहते। आरके स्टूडियो के बारे में बात करते समय बाबू की आंखें ही नम नहीं हुईं, दरअसल वह अंदर तक भीग गया था- वे भी क्या दिन थे? 

कुछ ऐसा ही कहा था राज साहब के बड़े बेटे रणधीर कपूर ने हिना  फिल्म की शूटिंग के दौरान, 1990 में। राज कपूर के बाद रणधीर ने उनकी फिल्म हिना  को बनाने का जिम्मा संभाला। हिना  के बाद भी आरके बैनर तले दो फिल्में बनीं, आ अब लौट चलें  और प्रेम गं्रथ, पर दोनों फिल्में इस बैनर की भव्यता को कायम नहीं रख पाईं। इसके बाद तो आरके स्टूडियो लगातार अपनी चमक खोता गया। बाबू के शब्दों में- जादू खत्म हो गया साब। रणधीर तब महज एक साल के थे, जब उनके 24 साल के पापा राज कपूर ने 1948 में मुंबई के एक सुदूर उपनगर चेंबूर में आरके स्टूडियो बनाया था। माना जाता था कि आरके स्टूडियो के बाद मुंबई शहर खत्म हो जाता है। शहर से दूर, जहां आसपास बस जंगल ही जंगल था, रात-बेरात जाने में बड़े-बड़े सितारे भी डरा करते थे। युवा राज कपूर ने पहले स्टूडियो बनाया, फिर फिल्में। वह सुनहरा समय था राज कपूर का भी और आरके स्टूडियो का भी। राज कपूर का सपना था कि वह हॉलीवुड के चंद बेहतरीन स्टूडियो की तरह अपना स्टूडियो बनाएं, जो बाद के समय में बनते-बनते रह गया।

हिना  फिल्म की शूटिंग के दौरान रणधीर कपूर आरके स्टूडियो के थियेटर में बैठकर बता रहे थे कि कैसे राज साहब ने अपनी हर फिल्म का कॉस्ट्यूम आज भी यहां सहेजकर रखा है। विशालकाय स्टोर में बड़़े-बड़े ट्रंक में बरसात, आग, श्री चार सौ बीस, आवारा, संगम, मेरा नाम जोकर, कल आज और कल, बॉबी, सत्यम शिवं सुंदरम जैसी नायाब फिल्मों में इस्तेमाल हुई चीजें, कपड़े, प्रॉप्स आदि थे। ऐसा लग रहा था, जैसे उस स्टोर रूम में समय अपनी पूरी रूह व लिबास के साथ कैद हो गया हो। और भी बहुत कुछ वक्त के साथ पीछे रह गया। मुंबई के कई बड़े स्टूडियो में अब पहले की तरह बड़ी फिल्में नहीं बन रहीं। राज कपूर के बेटों रणधीर, ऋषि व राजीव ने इस स्टुडियो को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली। पिछले कुछ साल से यहां टीवी धारावाहिकों की शूटिंग होती है। स्टूडियो के कई पुराने ऐतिहासिक सेट तो कबाड़ बन गए हैं। वह प्रसिद्ध पुल, जहां राज साहब के रहने तक हर साल होली मनाई जाती थी, उसका कोई नामलेवा नहीं रहा। धारावाहिकों के लिए नए सेट बनते हैं और उसके नीचे कोई पुरानी कहानी दब जाती है। आरके स्टुडियो में लगी भीषण आग में एक रियलिटी डांस शो का सेट जलकर खाक हो गया। लेकिन उससे कहीं भयावह है कई पुरानी धरोहर, बेशकीमती और बरसों से सहेजी गई यादों का स्वाहा हो जाना। 

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