जर्मनी के चुनाव में शरणार्थी विरोधियों की शिकस्त
जर्मनी के चुनाव में शरणार्थी विरोधियों की शिकस्तएंजला मर्केल की फिर से जीत से किस विचारधारा की सबसे बड़ी हार हुई है? यह सवाल इस समय मुखर है। सवालों की सूई उन नेताओं को चुभोने की कोशिश ज्यादा हो रही...
जर्मनी के चुनाव में शरणार्थी विरोधियों की शिकस्तएंजला मर्केल की फिर से जीत से किस विचारधारा की सबसे बड़ी हार हुई है? यह सवाल इस समय मुखर है। सवालों की सूई उन नेताओं को चुभोने की कोशिश ज्यादा हो रही है, जिन्होंने शरणार्थी विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाने की चेष्टा की थी। सितंबर 2015 में जर्मन चांसलर एंजला मर्केल ने यह निर्णय लिया था कि सीरिया युद्ध से प्रभावित आठ लाख शरणार्थियों को जर्मनी में बसाया जाएगा। दो साल की इस अवधि में जर्मनी में छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं, अपराध, अव्यवस्था का ठीकरा मर्केल के सिर ही फोड़ा गया था। वह चुनाव हारतों, तो उसकी मुख्य वजह उनकी शरणार्थी नीति ही मानी जाती।
मर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी गठबंधन साथी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) को 32.8 प्रतिशत वोट मिले हैं। जर्मनी की प्रमुख विपक्षी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) को 20.7 फीसद वोट मिले हैं। बहुत पीछे न जाएं, तो एसपीडी 1999 से 2004 तक जर्मनी की सत्ता में थी, उस समय गेरहार्ड श्रोएडर चांसलर थे। एसपीडी की कमान इस समय मार्टिन शुल्त्स के हाथों में है। यूरोपीय संसद के अध्यक्ष रह चुके शुल्त्स इतने ‘ओवर कॉन्फिडेंट’ थे कि उन्होंने यहां तक एलान कर दिया था कि इस बार चांसलर नहीं बना, तो ‘लीडर ऑफ द पार्टी’ भी नहीं रहूंगा। चौबे से छब्बे बनने के सपने देखने वाले मार्टिन शुल्त्स को अब दुबे बनना पड़ सकता है।
यूं तो वोट प्रतिशत की दृष्टि से देखें, तो इस चुनाव परिणाम से सत्ताधारी सीडीयू-सीएसयू और प्रमुख प्रतिपक्ष एसपीडी, तीनों को नुकसान हुआ है। सीडीयू-सीएसयू को 8.7 प्रतिशत का, और एसपीडी को पांच प्रतिशत मतों का नुकसान हुआ है। एंजला मर्केल भले ही चौथी बार चांसलर बन जाएं, मगर पार्टी के भीतर उनके नेतृत्व पर सवाल उठेंगे ही। संभव है कि सीडीयू आगे की राजनीति के वास्ते वैसे चेहरे की तलाश शुरू करे, जिसमें मर्केल से बड़ी लकीर खींच पाने का माद्दा हो।
साल 2013 के चुनाव में 71 फीसदी मतदाताओं ने हिस्सा लिया था। चार साल बाद 77 प्रतिशत वोटरों का बढ़ना इस बात का सुबूत है कि जर्मन राजनीति में लोग दिलचस्पी ले रहे हैं। सीडीयू-सीएसयू गठबंधन को कम वोट मिलने की वजह क्या पकी उम्र के मतदाता हैं? जर्मन सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, इस बार मतदाताओं की औसत आयु 52 से 60 साल रही है, जिससे यह पता चलता है कि वोट देने वाले ज्यादातर परिपक्व लोग थे। चुनाव परिणाम को देखकर नहीं लगता कि नौ फीसद वोट पाने वाले जर्मन वामपंथियों को कोई फायदा पहुंचा है। 0.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी से वामपंथ को पसंद करने वालों में निराशा है। ग्रीन को 9़1 फीसदी, एफडीपी को 10.4, एएफडी को 13.2 और अन्य पार्टियों को 4.8 प्रतिशत मत मिले हैं। शरणार्थी व इस्लाम विरोधी एजेंडे के साथ मैदान में उतरने वाली दक्षिणपंथी पार्टी ‘एएफडी’ को डबल डिजिट फायदा अवश्य मिला है। एएफडी (अल्टरनेटिव फ्यूर डॉयचलांड) को 2013 में 4.7 प्रतिशत मत मिले थे। इस बार 13.2 फीसद वोट मिलने से यह पार्टी अपने राष्ट्रवादी धार को और तेज करेगी। इसके नेता फ्राउक पेट्रे, और योर्क म्यूथेन इस बात से उत्साहित हैं कि जर्मनी की 16 प्रांतीय विधानसभाओं में से 13 में एएफडी का प्रवेश हो चुका है। इस बार छोटी पार्टियों को जर्मन संसद ‘बुंडेस्टाग’ को देखने का अवसर मिल रहा है। पिछली बार जर्मन वामपंथी ‘डी लिंके’ और ग्रीन पार्टी संसद में प्रवेश कर पाई थी। इस दफा, एफडीपी के साथ धुर दक्षिणपंथी एएफडी ‘बुंडेस्टाग’ पहुंची है। 2013 में एएफडी को मात्र 4.7 फीसदी मत मिले थे, जिस वजह से संसद का द्वार उसे बंद मिला।
एंजला मर्केल ने सिर्फ एक बाधा दौड़ पार की है। आगे की राजनीति और सरकार चलाने के लिए गठबंधन बनाना एक बड़ी चुनौती है। सात पार्टियों में से किसके तार किससे मिलते हैं, दो-एक दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा। सीडीयू, सीएसयू, एफडीपी, और ग्रीन, ये चारों अनुदार पार्टियां हैं। इनके बीच अंतर्विरोध पैदा करने वाले इतने मुद्दे हैं कि इनको जोड़कर चार साल सरकार चलाना आसान नहीं है। दक्षिणपंथी एएफडी के आने का मतलब है फ्रांको और मर्केल की नीतियों को यूरोप भर में चुनौती।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)