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Hindi News ओपिनियन नश्तरएक इस्तीफे का ही तो सवाल है

एक इस्तीफे का ही तो सवाल है

जिनकी सुबह अखबार और शाम टीवी के अखाड़े में भिड़ते पैनलिस्ट पहलवानों की तू-तू मैं-मैं के बगैर खत्म नहीं होती, उनके लिए उर्दू जुबान का लफ्ज ‘इस्तीफा’ बेचैनी का सबब बना हुआ है इन दिनों...।...

एक इस्तीफे का ही तो सवाल है
अशोक संड,नई दिल्लीFri, 21 Jul 2017 12:50 AM
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जिनकी सुबह अखबार और शाम टीवी के अखाड़े में भिड़ते पैनलिस्ट पहलवानों की तू-तू मैं-मैं के बगैर खत्म नहीं होती, उनके लिए उर्दू जुबान का लफ्ज ‘इस्तीफा’ बेचैनी का सबब बना हुआ है इन दिनों...। हिंदी के त्यागपत्र में वह प्रभाव और फोर्स नहीं, जो उर्दू के इस्तीफे में है। सामान्यत: त्यागपत्र में स्वेच्छा का भाव होता है। राजनीति में त्यागपत्र के अवसर प्राय: तभी आते हैं, जब मंत्रिमंडल से निकाल राज्यपाल अथवा अन्य किसी पद को मंडित करना हो। याचक वाली स्थितियां नहीं बनतीं। त्यागपत्र नौकरी घराने का ‘वाद्य’ है, जिसमें शालीनता के सुर लगते हैं। अच्छा पैकेज और बेहतर पद नजर आते ही ‘त्यागमूर्ति’ बन छटक लेता है बंदा। इसके बरक्स इस्तीफा राजपाट से बेदखल करने की चाहत है। इस्तीफा शब्द में राजनीति करने या होने की ध्वनि निकलती है।

इस्तीफा के तुकांत में एक शब्द है वजीफा। राजनीति की पाठशाला में मंत्री पद वजीफा सरीखा ही होता है। बावजूद इसके एक कठोर स्वर वाला नरम-मुलायम नेता मुखर हुआ कि इस्तीफा वह भी अबला नारियों से, बहुत नाइंसाफी है ये। पिछले कई दिनों इस्तीफे के ओढ़ने, बिछाने और लपेटने से बंदे को भी ‘इस्तीफाइटीस’ हो गया है...। ताजा इस्तीफा एक दलित की बेटी का है, जो उसने स्वयं दिया। उधर एक राज्य के मुख्यमंत्री और एक राज्य के उप-मुख्यमंत्री से मांगने पर भी नहीं मिल रहा। इसी राजनीति में कभी इस्तीफे की एक ‘शास्त्रीय’शैली हुआ करती थी। इस्तीफा देने वाले के चेहरे पर तेजस्विता और ओज होता था। ऐसी विभूति के बारे में सोचना आज के युग में भूंसे के ढेर में सुई खोजना है। मांगते रहो इस्तीफा, मचाते रहो फैक्टरी मजदूरों की तरह हल्ला। 

वे लगातार चिल्ला रहे हैं कि इस्तीफा दो। ये तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे रहे हैं कि नहीं देंगे। वे परेशान कर रहे हैं, ये काम नहीं कर पा रहे हैं। विपक्ष के मुंह में फंसा इस्तीफा न जाने क्यों सांप-छछूंदर वाली कहावत याद दिला रहा है। न निगला जा रहा है, न उगला जा रहा है। विरोध और िडफेन्स का यह ऊंट किस करवट बैठेगा, राम भी नहीं जानते होंगे।

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