यह सिर्फ अंडा खाने का फंडा है
सरकारों के लिए कोई नई चीज बनाने के मुकाबले किसी चलती हुई चीज पर रोक लगाना आसान होता है। हमारे देश में सरकार की किसी नई पहल में चाहे बरसों लग जाएं, पर यदि किसी चीज पर पाबंदी लगानी हो, तो वह रातोंरात...
सरकारों के लिए कोई नई चीज बनाने के मुकाबले किसी चलती हुई चीज पर रोक लगाना आसान होता है। हमारे देश में सरकार की किसी नई पहल में चाहे बरसों लग जाएं, पर यदि किसी चीज पर पाबंदी लगानी हो, तो वह रातोंरात आदेश प्रसारित कर देती है। अब मुझे लग रहा है कि सरकार ने तय किया है कि जनता की आर्थिक-सामाजिक स्थिति जैसी भी हो, उसका चरित्र उज्ज्वल होना चाहिए। आदमी के अंदर जान हो या न हो, नैतिकता उसमें जरूर होनी चाहिए। हमारे यहां नैतिकता की बुनियादी कसौटी शाकाहारी होना है। सरकार ने तय किया है कि सन 2022 तक ‘मोरैलिटी फॉर ऑल’ का लक्ष्य पूरा करना है। सो ‘सबका साथ, सबका नैतिक विकास’ के लिए मांसबंदी होने ही वाली है।
फिर भी लोकतांत्रिक अधिकारों की खातिर मांसाहारी लोगों के लिए मांसाहार का विशेष परमिट जारी किया जाएगा। मसलन आपको कभी ऑमलेट खाने के लिए अंडे चाहिए, तो एक ऑनलाइन फॉर्म भरना होगा। उसमें नाम, पता, पैन नंबर, आधार नंबर वगैरह भरने के बाद लिखना होगा कि आपको क्या मांसाहारी चीज चाहिए? जब आप ‘अंडा’ लिखेंगे, तो आगे आपको घोषित करना होगा कि यह अंडा गाय, भैंस या ऊंट का नहीं है, और पिछली सात पीढ़ियों तक अंडा देने वाली मुर्गी का गाय, भैंस या ऊंट से कोई रिश्ता नहीं था। उसके बाद यह शपथपत्र देना होगा कि आपके अंडा खाने से किसी की भावना के आहत होने का खतरा नहीं है। अगर किसी की भावना आहत होती है, तो उसे आपको पीटने का पूरा हक होगा। पिटाई की वजह से यदि आपकी मौत होती है, तो उसे बस एक दुर्घटना माना जाएगा।
इसके बाद, आपको कलेक्टरेट जाकर मूल दस्तावेज दिखाने होंगे, जिसके बाद एक पुलिस कांस्टेबल फिजिकल वेरिफिकेशन के लिए आपके घर आएगा और हजार रुपये रिश्वत लेकर आपको पास कर देगा। फिर एक डॉक्टर आपका और पशु चिकित्सक उस मुर्गी की जांच करेगा, जिसे अंडा देना है। बस, अब थोड़ी सी कार्रवाई बची है, लेकिन इस लेख की शब्द-सीमा खत्म हो गई है।