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बात सरलता की

सरल होना मुश्किल है पर उतना भी नहीं। इसके लिए आपको अपने बनाए खोल से निकलना होगा। मन में जो है उसे अबाध रुप से प्रकट करना होगा। कैसे? इसका जवाब एक फिल्म- द सांग ऑफ स्पैरो  से मिल सकता है। ईरानी...

बात सरलता की
प्रवीण कुमार Thu, 03 Aug 2017 10:22 PM
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सरल होना मुश्किल है पर उतना भी नहीं। इसके लिए आपको अपने बनाए खोल से निकलना होगा। मन में जो है उसे अबाध रुप से प्रकट करना होगा। कैसे? इसका जवाब एक फिल्म- द सांग ऑफ स्पैरो  से मिल सकता है। ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी इसमें बताते हैं कि हम जब अपने घर से और अपने गांव से बाहर निकलते हैं तो किस तरह अपनी सरलता खो देते हैं। फिल्म के मुख्य पात्र करीम को जब इसके खोने का अहसास होता है तो वह फिर से इसे पाने की जद्दोजहद में जुट जाता है। 

ऐसा नहीं कि घर से निकलना जटिल हो जाना है, लेकिन तब आपको अपनी सरलता को बचाने का अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है। यहां रूमी का सवाल याद करें- ‘तुम मन की जेल में क्यों रहते हो, जबकि दरवाजा तो पूरी तरह खुला है?’ वे प्रकृति से सीखने की ताकीद करते हैं, जहां बड़े से बड़े बदलाव भी इतनी सरलता से हो जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। नदियां सरलता से बहती रहती हैं, फूलों को खिलने में कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना होता, न ही बादल को बरसने में। हमें बार-बार यह भ्रम होता है कि लीक से हटकर चलना है तो जटिल चीजों को अपनाना होगा। बौद्धिकता के लिए भी ये जरुरी जान पड़ती है। पर, हम यह भूल जाते हैं कि कबीर अपने सरल सपाट दोहों से जितने लोकप्रिय हुए शायद ही दूसरा हुआ हो। अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत आम लोगों के लिए विज्ञान के सबसे जटिलतम सिद्धांत समझ जाते हैं पर आइंस्टीन की बातों पर गौर करें। उन्होंने कहा- ‘यदि तुम अपनी बात को छह साल के बच्चे को समझा नहीं सकते, तो इसका मतलब यह है कि तुमने स्वयं उसको समझा नहीं है।’
                                                 

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