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एक दिन काफी है

हर रोज कामों की लंबी फेहरिस्त हमारे सामने होती है। हम वामन की तरह दो-तीन पगों में सारी दुनिया नाप लेना चाहते हैं, समुद्र की थाह लेते हैं, ग्रहों-उपग्रहों की यात्राएं कर आते हैं। कई तो ऐसे हैं, जो...

एक दिन काफी है
महेंद्र मधुकरSun, 03 Sep 2017 10:58 PM
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हर रोज कामों की लंबी फेहरिस्त हमारे सामने होती है। हम वामन की तरह दो-तीन पगों में सारी दुनिया नाप लेना चाहते हैं, समुद्र की थाह लेते हैं, ग्रहों-उपग्रहों की यात्राएं कर आते हैं। कई तो ऐसे हैं, जो जिंदगी का एक पल भी नहीं गंवाते, हर काम तालिकाबद्ध, व्यस्त दिन। पर यदि सब कुछ हमारी इच्छा के अनुसार नहीं होता, तो हम स्वयं को अधूरा अनुभव करते हैं। जिंदगी बहुत बड़ी नहीं, पर भरपूर जरूर है। संसार स्थाई नहीं, पर जितना है मोहक और आदर योग्य है। हमें जो भी मिलता है, उसका हम कितना उपभोग करते हैं, इससे भी बड़ी बात यह है कि हम उसका कैसे उपयोग करते हैं? हमारे जीवन जीने की शैली ही हमारे सच्चे सुख-दुख का निर्धारण करती है। बाइबिल में कहा गया है- सफिशिएंट अनटु द डे, यानी एक दिन काफी है। जब हम जीवन को एक दिन का उपहार समझेंगे, तभी इसका पूरा रसास्वादन कर सकेंगे।

गीता में कृष्ण कहते हैं- मैं वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूं। गीता ने सृष्टि को भी अश्वत्थ कहा है। ‘अश्वत्थ’ का मतलब है, जो कल न टिके अर्थात् एक दिन टिकने वाली। क्षणभंगुर का मतलब क्षण भर में नष्ट होना नहीं, क्षण-क्षण परिवर्तनशील होना ही समझें। यह प्रसिद्ध है कि नारद कुछ घड़ी ही कहीं पर टिकते थे। संतों के बारे में भी प्रसिद्धि है कि वे निरंतर गतिशील रहते हैं- रमता जोगी बहता पानी। इसलिए परिपूर्णता में जिया गया एक क्षण पूरे जीवन से अधिक मूल्यवान होता है।

शेक्सपीयर के किंग लियर  में युद्ध के दौरान जब नायक चिल्लाता है- ‘ए हॉर्स, ए हॉर्स, माई किंगडम फॉर ए हॉर्स’- राज्य जीतने के लिए एक घोड़ा चाहिए, केवल एक घोड़ा। तो वह एक पल निर्णायक हो जाता है।

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