दृढ़ प्रण
वह अपने मित्र से पूछ रहे थे कि कुछ वर्ष पूर्व तक तुम्हारा व्यवसाय नुकसान में जा रहा था, फिर अचानक सफलता की ऊंचाइयों को यूं छू लेना, आखिर तुम्हारी कामयाबी का राज क्या है? मित्र ने कहा- दृढ़ प्रण। आज...
वह अपने मित्र से पूछ रहे थे कि कुछ वर्ष पूर्व तक तुम्हारा व्यवसाय नुकसान में जा रहा था, फिर अचानक सफलता की ऊंचाइयों को यूं छू लेना, आखिर तुम्हारी कामयाबी का राज क्या है? मित्र ने कहा- दृढ़ प्रण। आज अधिकतर लोग ऐसे ही हैं, जो असफल होकर भाग्य को कोसते हैं या परिस्थितियों को दोषी ठहराते हैं। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो दृढ़ता के साथ यह कह सकें कि यहां पर मेरी कमी है और इसे मैं दूर करके ही रहूंगा।
12 सितंबर, 1862 को अब्राहम लिंकन ने जिस समय स्वाधीनता का घोषणापत्र तैयार किया, उस समय अपनी डायरी में यह प्रतिज्ञा लिखी थी कि ‘मैं ईश्वर के सम्मुख प्रण करता हूं कि स्वाधीनता की घोषणा करके ही रहूंगा।’
इतिहास साक्षी है कि अनेक मुश्किलों के उपरांत भी वह अपना प्रण पूरा करने में सफल हुए। कोई किसी चीज को पाने का दृढ़ प्रण करता है, तो सर्वप्रथम किंतु-परंतु-यदि जैसे शब्दों को एक तरफ रख देता है, क्योंकि ये शब्द व्यक्ति को कमजोर करते हैं। इसके विपरीत अपने दृढ़ प्रण को बीच-बीच में दृढ़ता के साथ दोहराते रहें। ऐसा करने से उस कार्य को करने की शक्ति जागृत रखने का आभास जीवित रहता है। प्रसिद्ध अमेरिकी उद्योगपति साइरस डब्ल्यू फील्ड ने समुद्र को नापने का कार्य किया। इसी प्रकार, रॉबर्ट फुलटॉन ने सागर के पार पहुंचने के लिए भाप से चलने वाले जहाज के लिए प्रयत्न किए और ग्राहम बेल ने अपनी जेब का अंतिम डॉलर तक खर्च करके टेलीफोन का आविष्कार किया। पहले जो दुनिया इन्हें सनकी कहती थी, वही आज इन इतिहास पुरुषों के गुणगान करती है। कारण यही कि ये अपने प्रण पर दृढ़ता से अड़े रहे।