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विचारों का सम्मान

अपनी सोच पर सवाल उठते ही हमारा घबरा जाना हमारे विकास का एक आंतरिक अवरोध है। सवाल उठना समस्या नहीं, हमारे विकास की सीढ़ी है। नोबेल पुरस्कार विजेता इम्रे कोर्टेश कहते हैं कि मैं अपने विचारों के साथ तब...

विचारों का सम्मान
प्रवीण कुमारThu, 07 Sep 2017 10:45 PM
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अपनी सोच पर सवाल उठते ही हमारा घबरा जाना हमारे विकास का एक आंतरिक अवरोध है। सवाल उठना समस्या नहीं, हमारे विकास की सीढ़ी है। नोबेल पुरस्कार विजेता इम्रे कोर्टेश कहते हैं कि मैं अपने विचारों के साथ तब तक अधूरा हूं, जब तक विचारों के बरक्स कोई विचार न उठे। हम किसी से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि हम जैसा सोचते हैं, सामने से भी चीजें उसी रूप में सामने आएंगी। ऐसा हुआ, तो विचारों की एकरूपता के सिवा कुछ नहीं होगा।

किसी भी नए नजरिये या सवाल उठाने वालों का विरोध तो होना ही नहीं चाहिए। जरूरी तो यह है कि उन प्रश्नों से जुड़ी बहस अथवा विचारों को आगे बढ़ाया जाए। विचारों का विरोध ज्यादातर धर्म और संस्कृति के मसले पर होता है, जबकि हमें समझना चाहिए कि धर्म और संस्कृति स्थाई व रूढ़ वस्तु नहीं हैं। बुनियादी मूल्य व तत्व भले न बदलें, पर नई बौद्धिक व्याख्या व अंवेषण चलता रहता है। अभिव्यक्ति की आजादी के जरिये ही धर्म और संस्कृति का नया रूप सामने आता है। इसे मूल विचार का पूरक समझा जाना चाहिए। अगर हर आदमी एक ही बिंदु पर सहमत हो, तो जीवन और संस्कृति सब ठहर जाएगी।

गौर करने वाली बात यह है कि सवाल उठाने वालों का असम्मान विचारों की दुनिया में ही नहीं, सामान्य जीवन में भी होता है। हमें परिवार में भी वही लोग पसंद आते हैं, जो हमारी बातों को सहजता से स्वीकार करते हैं। अ मिथिक लाइफ के लेखक जेन ह्यूस्टन कहते हैं- दूसरों के नजरिये को आप जितनी सहजता से अपना पाएंगे, उतनी ही सरलता से आगे बढ़ेंगे, वरना आगे बढ़ने का मतलब आपके लिए सरकना से ज्यादा नहीं रह जाएगा।

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