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छलक रहा अमृत-कुंभ

सबसे पहले धन की खोज समुद्र मंथन की कथा से शुरू हुई। महालक्ष्मी भी निकलीं और हाथ में अमृत कलश लिए देवताओं के वैद्य धन्वंतरि भी प्रकट हुए। वह दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का था, वही त्रयोदशी धनतेरस का...

छलक रहा अमृत-कुंभ
महेंद्र मधुकरMon, 16 Oct 2017 11:08 PM
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सबसे पहले धन की खोज समुद्र मंथन की कथा से शुरू हुई। महालक्ष्मी भी निकलीं और हाथ में अमृत कलश लिए देवताओं के वैद्य धन्वंतरि भी प्रकट हुए। वह दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का था, वही त्रयोदशी धनतेरस का पर्व बन गई। धन्वंतरि विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक गिने गए। वह आयुर्वेद के प्रवर्तक माने गए। ब्रह्मा ने एक हजार अध्यायों में एक लाख श्लोकों का आयुर्वेद शास्त्र रचा। प्रजापति से वह ज्ञान अश्विनी कुमारों तक और फिर इंद्र से वह ज्ञान धन्वंतरि तक पहुंचा और फिर प्रसिद्ध वैद्यक ग्रंथ सुश्रुत संहिता  की रचना हुई।

धन त्रयोदशी ही धनतेरस है, आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि का जन्मदिन। धन्वंतरि का कलश अब बाजार  में चमकदार बर्तन का रूप ले चुका है और उसका अमृत अब सुख की खोज में जहां-तहां बह निकला है। सुख और जीवन जीने का आनंद सोने-चांदी की चमक में बदल गया है। धन्वंतरि समुद्र से निकले 14 रत्नों में से एक थे। इसी समुद्र मंथन से लक्ष्मी आविर्भूत हुईं। संसार धन-संपत्ति, हीरे, मोती, सोने-चांदी की चमक की चकाचौंध में पड़ गया और आयुर्वेद या स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि केवल वैद्यों द्वारा पूजित होते रहे। जबकि आयु और स्वास्थ्य ही हमारे लिए सोना-चांदी हैं। भारत का एक सिद्धांत यह भी था कि शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्- शरीर है, तभी धर्म है, जीवन है।  

हमारे स्वास्थ्य की चिंता हमें नहीं, जैसे बाजार को है। इस बाजारवाद से निकलकर हमें धन्वंतरि के अमृत-कुंभ से छलकते अमृत की खोज करनी है। वह खोज है हमारा स्वास्थ्य, हमारी लालिमा, हमारा प्रबल उत्साह। इसी में हमारे अर्थ की सार्थकता है। यही हमारा सच्चा धन है।

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