समय की दस्तक
समय तो हमेशा किसी न किसी रूप में गतिशील है, पर हम हैं, जो कहते-फिरते हैं कि क्या करें, समय का अभाव है। हम व्यस्तता को सक्रियता कहते हैं और चुप बैठने को निष्क्रियता। समय को भारतीय चिंतन में काल कहा...
समय तो हमेशा किसी न किसी रूप में गतिशील है, पर हम हैं, जो कहते-फिरते हैं कि क्या करें, समय का अभाव है। हम व्यस्तता को सक्रियता कहते हैं और चुप बैठने को निष्क्रियता। समय को भारतीय चिंतन में काल कहा गया है। यह महाकाल के अर्थ में शिव का वाचक है। ज्योतिष में ग्रह-दशा की सारी जोड़-तोड़ और परिकल्पना के मूल में समय ही है। तभी हम कहते हैं- ‘समय बड़ा बलवान’। मैंने एक ज्योतिषी से पूछा- जब सब कुछ ठीक चल रहा होता है, ग्रह गोचर अनुकूल होते हैं, तो दुर्घटना कैसे घट जाती है? उत्तर मिला- ‘मान लो कि एक ड्राइवर ट्रक चलाते समय आगे खाली रास्ता देखकर स्पीड बढ़ा ले और अचानक सड़क किनारे खेलता बच्चा कोई ग्रह बनकर बीच सड़क पर दौड़ जाए, तो दुर्घटना होगी ही’।
समय का एक पक्ष ‘अचानक’ है, जो कभी-कुछ भी दिखा सकता है। वैशेषिक दर्शन के नौ द्रव्यों में काल छठा द्रव्य है। तंत्र में काल का स्थान अंतरिक्ष है, यह समस्त तत्वों की गणना करता है, इसलिए काल है। इसके तीन रूप हैं- भूत, भविष्य और वर्तमान। विश्व की कल्पना को भी काल कहा गया है। भागवत में काल मृत्यु का वाचक है। समय एक अवसर है, जिसका सही उपयोग हमें किसी भी ऊंचाई तक ले जा सकता है। सिर्फ इसकी दस्तक को सुनने की जरूरत है। हम अपनी भूलों के बदले समय को दोष नहीं दें। रामकुमार वर्मा एकलव्य महाकाव्य में कहते हैं- ‘तुम नहीं वत्स, यह समय ही शूद्र है’। भवभूति ने समय को ‘निरवधि’ कहा है- कोई तो मेरे समान पैदा होगा, जो मेरी रचना को समझेगा, ऐसा अवश्य होगा, क्योंकि काल निरवधि है और पृथ्वी बड़ी- कालो हि अयं निरवधि: विपुला च पृथ्वी।