आने दो बुरे ख्यालों को भी
यह क्या हो रहा है उन्हें? एक के बाद एक बुरे ख्याल आते चले जा रहे हैं। वह बहुत रोकना चाहते हैं, लेकिन... ‘अगर बुरे ख्याल आते हैं, तो आने दें। लेकिन उनको समझना जरूरी है।’ यह मानना है डॉ....
यह क्या हो रहा है उन्हें? एक के बाद एक बुरे ख्याल आते चले जा रहे हैं। वह बहुत रोकना चाहते हैं, लेकिन...
‘अगर बुरे ख्याल आते हैं, तो आने दें। लेकिन उनको समझना जरूरी है।’ यह मानना है डॉ. डगलस वान प्रैत का। वह मशहूर मार्केटिंग कंसल्टेंट हैं। न्यूरोसाइंस की गहरी समझ रखते हैं। डूयूश, लॉस एंजलीस के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे हैं। उनकी चर्चित किताब है, अनकॉन्शस ब्रैंडिंग: हाउ न्यूरोसाइंसेज कैन इम्पावर ऐंड इन्सपायर मार्केटिंग।
ख्याल तो ख्याल हैं। वह तो आएंगे ही। अच्छे भी आएंगे और बुरे भी। अच्छे ख्याल तो खैर अच्छे ही हैं। बुरे ख्यालों में भी कोई बुराई नहीं है। वह भी किसी वजह से ही आते हैं। हम उन्हें आने से नहीं रोक सकते। हां, उन पर कितना अमल करना है। यह हम कर सकते हैं। और यह हमें करना ही चाहिए। दिक्कत तब होती है, जब हम उसमें बह जाते हैं। एक समय में अगर बह भी जाएं, तो कोई परेशानी नहीं। लेकिन ज्यादा देर तक उसमें बहना अच्छा नहीं है। बुरे ख्याल अगर आते हैं, तो हमें उन पर भरपूर नजर रखनी चाहिए। उनका आकलन करना चाहिए। गंभीरता से उन पर विचार करना चाहिए। यह नहीं होना चाहिए कि हम उन ख्यालों के पीछे-पीछे चल दें। और कोई गलत फैसला ले बैठें।
दरअसल, कोई फैसला करते हुए उनकी पूरी छानबीन जरूरी है। बुरे ख्याल आएं और चुपचाप चले जाएं। वे हमें बहुत दूर तक परेशान न करें। अगर हम उन पर ठीक से कार्रवाई करते हैं, तो वे भी हमें आगे ले जाते हैं। हम अगर होश में हैं, तो वे हमारे लिए अच्छे हैं। और अगर नहीं हैं, तो वही हमारे लिए बुरे हैं।