हार जो जीत का असर रखती है
पूरे टूर्नामेंट में टीम इंडिया चैंपियंस की तरह खेली। ऐसा लगा ही नहीं कि वह सातवें पायदान की अपनी रैंकिंग के अनुरूप खेल रही है। लीग मैचों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मिली एक बड़ी हार को छोड़ दिया जाए, तो...
पूरे टूर्नामेंट में टीम इंडिया चैंपियंस की तरह खेली। ऐसा लगा ही नहीं कि वह सातवें पायदान की अपनी रैंकिंग के अनुरूप खेल रही है। लीग मैचों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मिली एक बड़ी हार को छोड़ दिया जाए, तो पूरे टूर्नामेंट में भारतीय लड़कियों ने बड़ी-बड़ी टीमों को चौंकाया। जिस ऑस्ट्रेलिया ने उसे लीग मैच में हराया था, उसी ऑस्ट्रेलिया को सेमीफाइनल के बडे़ मुकाबले में टीम इंडिया ने धोया। जिस इंग्लैंड ने फाइनल में भारत को मात दी, उसे लीग मैच में भारतीय टीम 35 रनों के अंतर से हरा चुकी थी। फाइनल में भी कहीं से ऐसा नहीं लगा कि भारतीय टीम इंग्लैंड से उन्नीस है। 50 ओवर के पूरे मैच में टीम इंडिया सिर्फ आखिरी के कुछ ओवरों में अच्छा नहीं खेली, वरना जिस तरह की अनुशासित गेंदबाजी भारतीय टीम की तरफ से हुई, वैसा कम ही देखने को मिलता है। बल्लेबाजी में भी तीन विकेट गिरने तक मैच पूरी तरह भारत के काबू में था। अब टूर्नामेंट के खत्म होने के बाद इस बात पर बात करने का वक्त है कि टीम इंडिया के इस करिश्माई प्रदर्शन के पीछे कौन है? कौन है वह प्रेरणा देने वाली ताकत, जो भारत के अलग-अलग हिस्से से आई लड़कियों को मैदान में शेर की तरह दहाड़ने की ताकत देती है। दरअसल, इसके पीछे कोई और नहीं, टीम इंडिया की ही दो खिलाड़ी हैं, जिन्होंने तमाम चुनौतियों के बीच महिलाओं की टीम को इस मुकाम तक पहुंचाया। ये दोनों हैं- टीम इंडिया की कप्तान मिताली राज और तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी।
अफसोस यही है कि इतना कुछ करने के बाद भी इन दोनों खिलाड़ियों को अपना करियर बिना विश्व कप के ही खत्म करना पड़ेगा। अगले विश्व कप में इन दोनों खिलाड़ियों के नजर आने का कोई संभावना नहीं है। फाइनल के बाद कप्तान मिताली राज जब मीडिया से मुखातिब हुईं, तो उन्होंने इस बात को कहा भी कि अगला विश्व कप उनके और झूलन के लिए नहीं है। मिताली और झूलन ने करीब दो दशक से टीम इंडिया को संभाला है। एक की बल्लेबाजी, तो दूसरे की गेंदबाजी बाकी खिलाड़ियों के लिए प्रेरणादायी रही है। झूलन भी टीम की कप्तानी संभाल चुकी हैं। मिताली ने 1999 में अपने वनडे करियर की शुरुआत की थी। झूलन को यह मौका 2002 में मिला। मिताली राज ने इसी वर्ल्ड कप में दुनिया में सबसे ज्यादा वनडे रन बनाने का कीर्तिमान अपने नाम किया। इससे पहले यह रिकॉर्ड इंग्लैंड की शालेर्ट एडवर्ड्स के नाम था। मिताली 6,000 से ज्यादा वनडे रन बनाने वाली दुनिया की पहली और इकलौती महिला क्रिकेटर हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इस विश्व कप में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाजों की फेहरिस्त में वह दूसरे पायदान पर रहीं। मिताली ने विश्व कप में 409 रन बनाए। अगर उन्होंने दो रन और बनाए होते, तो वह पहले पायदान पर होतीं। पहले नंबर पर इंग्लैंड की टैमी ब्यूमोंट हैं, जिन्होंने 410 रन बनाए। फाइनल में झूलन की गेंदबाजी उनकी काबिलियत बताती है। रविवार को ऐसा लगा कि जैसे झूलन ने अपने पूरे टूर्नामेंट का अनुभव अपनी गेंदबाजी में डाल दिया। उनकी सटीक लाइन-लेंथ का ही नतीजा था कि उन्होंने दस ओवर में सिर्फ 23 रन देकर तीन अहम विकेट झटके। विश्व कप में झूलन ने 10 विकेट लिए। 2007 में आईसीसी प्लेयर ऑफ द ईयर का खिताब, इसके बाद अर्जुन अवॉर्ड और फिर पद्मश्री, ये उपलब्धियां बताती हैं कि उनका योगदान कितना बड़ा है।
मिताली राज और झूलन गोस्वामी, दोनों ही खिलाड़ी करीब 35 साल की हो गई हैं। दोनों की उम्र में बस आठ-दस दिनों का फर्क है। आदर्श स्थिति तो यही होती कि इतनी मेहनत के बाद भारतीय टीम विश्व कप पर कब्जा करती और अपने इतिहास की इन दो सबसे बड़ी खिलाड़ियों को अलविदा कहती, मगर ऐसा हुआ नहीं। बावजूद इसके इन दोनों खिलाड़ियों के पास गर्व करने के तमाम कारण हैं। इन दोनों ने आज टीम इंडिया को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां एक से बढ़कर एक दिग्गज उनके प्रदर्शन पर नजरें गड़ाए बैठे हैं। 2011 विश्व कप की एक घटना याद आ रही है। फाइनल में जीत के बाद जब भारतीय टीम ‘विक्ट्री लैप’ ले रही थी, तो खिलाड़ियों ने सचिन तेंदुलकर को कंधे पर बिठा रखा था। सचिन के हाथ में तिरंगा था। बाद में विराट कोहली ने कहा था कि जिस खिलाड़ी ने इतने लंबे समय तक पूरे देश की उम्मीदों के बोझ को अपने कंधों पर ढोया, हमने उसे कंधे पर बिठाकर यह भरोसा दिलाना चाहा कि अब भारतीय टीम के खिलाड़ियों के कंधे मजबूत हो गए हैं।
मिताली राज व झूलन गोस्वामी को भले ही कभी न भूलने वाला वह लम्हा या वैसी विदाई नहीं मिल पाई, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इन दोनों ने भी अपनी प्रेरणा से इस देश को कई ऐसी खिलाड़ी दिए हैं, जिनके कंधे आगे की जिम्मेदारियों को मजबूती से उठाएंगे। लीग मैच से लेकर फाइनल तक के सफर में खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर डालिए, आपको लगभग हर मैच में एक नया स्टार मिलेगा।वह हरमनप्रीत कौर थीं, जिन्होंने अचानक क्रिकेट के मैदान में रनों का तूफान ला दिया, जिसके सामने ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम टिक नहीं पाई। स्मृति मंधाना ने शुरुआती मैचों में शतक लगाकर टीम की अच्छी शुरुआत कराई। पूनम राउत ने एक शतक लगाया। फाइनल में भी उन्होंने काफी देर तक टीम को संभाला। गेंदबाजी में पूनम यादव, दीप्ति शर्मा जैसी स्टार खिलाड़ी सामने आईं।
सच्चाई यह है कि आने वाले कुछ दिनों में मिताली व झूलन मैदान में नहीं दिखाई देंगी, पर उन्होंने जाते-जाते कम से कम आधा दर्जन ऐसी खिलाड़ी तैयार कर दिए हैं, जो अब घर-घर चर्चित रहेंगी। बीसीसीआई से लंबे समय से इस बात को लेकर बहस चलती रही है कि महिला क्रिकेट को और ज्यादा सहूलियतें मिलनी चाहिए, शायद इसकी जमीन इन दोनों खिलाड़ियों ने तैयार कर दी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)