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एक फायदेमंद कारोबार की खोज

भारत के लिए मौजूदा दशक, जिसके खत्म होने में अभी तीन वर्ष बाकी हैं, 1990 और 2000 के दशक से बिल्कुल अलग होगा। दरअसल, पिछले दोनों दशकों के बीच के वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी थी, फिर दशक...

एक फायदेमंद कारोबार की खोज
आर सुकुमारThu, 13 Jul 2017 06:53 PM
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भारत के लिए मौजूदा दशक, जिसके खत्म होने में अभी तीन वर्ष बाकी हैं, 1990 और 2000 के दशक से बिल्कुल अलग होगा। दरअसल, पिछले दोनों दशकों के बीच के वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी थी, फिर दशक खत्म होते-होते वह सुस्त हो गई। दुर्भाग्य से, यह मध्यवर्ती उछाल मौजूदा दशक में नहीं दिखी। ऐसा न होने की कुछ वजहें हैं, जो भारत से भी जुड़ी हैं और बाकी दुनिया से भी। इन वजहों की पड़ताल करके मैं विषय से भटकना नहीं चाहता। अभी के लिए बस यही जान लीजिए कि वह मध्यवर्ती उछाल इस दशक में संभव न हो सकी। अलबत्ता, 2010 का दशक कुछ और मामलों में भी पिछले दो दशकों से बिल्कुल अलग साबित हो रहा है। मसलन, पिछले दो दशकों में हमने देखा है कि कैसे एक, शायद दो, संभवत: तीन उद्योगों का जन्म हुआ और फिर उन्होंने अपना विस्तार किया। इन कारोबारों से जुड़ी कंपनियां अपेक्षाकृत नई थीं, जिनकी कामयाबी को दशक की शुरुआत में संदेह की नजरों से देखा गया, मगर समय बीतते-बीतते उन्हें भरपूर सफलता मिली।

1990 का दशक आईटी कंपनियों और दवा उद्योगों का माना जाएगा। इस दशक में विप्रो लिमिटेड, इंफोसिस लिमिडेट, टाटा कंसल्टेंसी सर्विस लिमिटेड जैसी भारत की आईटी कंपनियां न सिर्फ अपने पांव पर खड़ी हुईं, बल्कि  मजबूती के साथ आगे बढ़ीं। इस दौरान शेयर-धारकों के हिस्से बढ़े, पूंजी बढ़ी और रोजगार का सृजन हुआ।

इसी तरह, ड्रग्स या जेनरिक दवा उद्योगों ने भी 1990 के दशक में फिर से रफ्तार पकड़ी। हालांकि यह तेजी कुछ समय के लिए ही बनी रही। रेनबैक्सी लेबोरेटरीज लिमिटेड, डॉ रेड्डीज लेबोरेटरीज लिमिटेड, सिप्ला लिमिटेड जैसी कंपनियां तो अच्छी स्थिति में रहीं ही, 1990 के दशक और 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में कुछ अपेक्षाकृत छोटी कंपनियों ने भी फायदा उठाया। अब ये दोनों कारोबार सुस्त पड़ गए हैं, जबकि 1990 के दशक का अंत और यहां तक कि 2000 के दशक का समापन भी इन दोनों ने बेहतर स्थिति में किया था।
अब बात 2000 के दशक की। इसमें बारी आई दूरसंचार और प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर की।
सरकार द्वारा राजस्व साझा करने से जुड़ी नई दूरसंचार नीति की घोषणा और साल 1999 में पिछली लाइसेंसी-व्यवस्था को खत्म करने के कारण भारत में दूरसंचार उद्योग काफी तेजी से बढ़ा। भारती एयरटेल लिमिटेड और वोडाफोन इंडिया लिमिटेड (दशक की शुरुआत में इसका नाम हचसन एस्सार था) इस दूरसंचार विस्तार की अगुवा कंपनियों में थीं। मोबाइल क्रांति इन्हीं की देन है, जिसने नई पूंजी और रोजगार पैदा करने के अलावा खुद से जुड़े कई नए कारोबार भी खड़े किए। आज बैंकिंग व वित्तीय कारोबार में नाम कमा रही पेटीएम तब एक तरह से मूल्य-वद्र्धित सेवाएं (वैल्यू एडेड सर्विस) देने वाली कंपनी हुआ करती थी। तब वह मांग पर क्रिकेट-स्कोर और दूसरे तमाम कंटेंट फोन मैसेज से मुहैया कराती थी।
निजी बैंकों की शुरुआत भी इसी दौर के आस-पास हुई, मगर 2000 का दशक उनके लिए काफी अनुकूल साबित हुआ। एचडीएफसी बैंक लिमिटेड और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड ने खूब तरक्की की। तब तो आलम यह था कि ये दोनों बैंक हर हफ्ते अपनी नई-नई शाखाएं खोला करते थे। 
मगर अब ये दोनों कारोबार भी दोराहे पर हैं। आक्रामक और भरपूर पूंजी से लैस एक नए खिलाड़ी के मैदान में उतरने से जहां मौजूदा दूरसंचार कंपनियां आर्थिक संकट में फंस गई हैं, वहीं बैंक ‘फिनटेक’ कंपनियों से स्पर्धा कर रहे हैं। फिनटेक यानी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी कंपनियां, जो अपने इनोवेशन के कारण देश के कोने-कोने में बैंकिंग सेवा पहुंचाने में मददगार साबित हो रही हैं। कुछ फिनटेक कंपनियां तो एक नए तरह का बैंक बन गई हैं, जैसे कि पेटीएम अब पेमेंट बैंक बन गई है। इतना ही नहीं, बैंक ‘बैड लोन’ का सामना भी कर रहे हैं, जो भारत की बैंकिंग प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकते हैं और बड़े संकट की वजह बन सकते हैं। 
बावजूद इसके दूरसंचार और निजी बैंकिंग, दोनों कारोबार पिछले दशक का अंत ठीक-ठाक स्थिति में करते हुए दिखे थे।
बहरहाल, यहां मूल विषय से हटकर कुछ और बातें आपसे साझा करना चाहता हूं। 2000 के दशक में देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में भी उभार आया, जिनमें से कई संयोगवश हैदराबाद में थीं। और फिर उनमें भी गिरावट दर्ज की गई। आईवीआरसीएल लिमिटेड और जीवीके इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी कंपनियों पर दशक की शुरुआत में नजर थी, हालांकि दशक के अंत में वे फिर से अपने शुरुआती स्तर पर आ गईं, मगर इसकी वजहें कुछ दूसरी थीं।
आप सुधी पाठक बखूबी समझ रहे होंगे कि इन तमाम प्रसंगों के बहाने मैं आपको क्या बताना चाहता हूं?
मेरा सवाल यह है कि आखिर वे कौन-कौन से कारोबार हैं, जिन्होंने मौजूदा दशक को परिभाषित किया है, और खास बात यह कि कौन इस दशक का अंत अपने शिखर या फायदे के साथ करेंगे? हम अब भी ऐसे उद्योगों की तलाश में हैं, जो इस दशक में तेजी से उभरे हों, जिन्होंने नए रोजगार का सृजन किया हो और जो मौजूदा दशक का अंत अत्यधिक लाभ कमाते हुए करेंगे। इसके साथ एक मापदंड यह भी होना चाहिए कि अपने शेयर-धारकों को उन्होंने कितना फायदा पहुंचाया?
इस दशक के खत्म होने में महज ढाई साल बचे हैं और हमारे पास फायदेमंद उद्योगों की सूची भी है, पर उनमें से कोई इन मापकों पर मजबूत दावेदारी पेश करता हुआ नहीं दिख रहा। जबकि पिछले दशकों में इस मोड़ पर ऐसे कारोबारों को ढूंढ़ना कहीं ज्यादा आसान था। मेरा मानना है कि जून, 1997 में दस में आठ लोग यह बखूबी बताने की स्थिति में होंगे कि आईटी व दवा उद्योग बेहतर स्थिति में हैं, जबकि जून, 2007 में सभी 
दस लोग दूरसंचार और निजी बैंकिंग का नाम लेते।
मौजूदा दशक में ई-कॉमर्स जरूर एक दावेदार है, मगर यह अब भी फायदेमंद कारोबार साबित नहीं हो सका है। और यदि इसके अर्थशास्त्र पर गौर करें, तो इसके जल्दी फायदेमंद बनने की उम्मीद भी नहीं है। यानी हमारी खोज जारी है- यह भी 2010 के दशक की किसी समस्या से कम नहीं।

(यह लेख 11 जुन 2017 को प्रकाशित हुआ है)

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