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बिचौलियों से मुक्ति का प्रयास

अठारह मार्च को शपथ लेने के फौरन बाद ही मुझे चुनौतियों के पहाड़ दिख गए थे। सबसे पहले मुझे गांव याद आया, जहां खेती खत्म हो रही थी। कमाने के अवसर बेहद सीमित हो गए थे। पढ़ाई और इलाज के उचित इंतजाम नहीं थे।...

बिचौलियों से मुक्ति का प्रयास
त्रिवेन्द्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंडWed, 26 Jul 2017 11:37 PM
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अठारह मार्च को शपथ लेने के फौरन बाद ही मुझे चुनौतियों के पहाड़ दिख गए थे। सबसे पहले मुझे गांव याद आया, जहां खेती खत्म हो रही थी। कमाने के अवसर बेहद सीमित हो गए थे। पढ़ाई और इलाज के उचित इंतजाम नहीं थे। दुकान से राशन का बोझ पीठ पर लादकर पहाड़ चढ़ने वाले आम आदमी की औलादें हारकर पलायन कर रही थीं। सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार थी, जिसने विकास को खोखला करके रख दिया। इस सबके साथ ही अवसर न मिलने से मेधावियों का टूटता मनोबल और नतीजे में प्रतिभा पलायन हमारी चिंता बढ़ा रहे थे।   

महसूस हुआ कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए दो तरह की योजनाएं बनानी होंगी। एक त्वरित और दूसरी दीर्घकालिक। शिक्षा, चिकित्सा और सड़क जैसी दिक्कतें तो चुटकी बजाते ही दूर नहीं होंगी। ऐसे में, इनके लिए दीर्घकालिक उपाय करने की जरूरत है, लेकिन भ्रष्टाचार के दीमक का उपचार तो तुरंत शुरू करना होगा, क्योंकि इसके बिना विकास की बात करना बेमानी है। सरकार के सामने एनएच 74 के मुआवजे का मामला चुनौती की तरह था। शुरुआती जांच में ही मुआवजे के नाम पर करीब 200 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी सामने आई, तो सीबीआई जांच ही विकल्प दिखा। छह पीसीएस अफसर सस्पेंड हुए। एसआईटी भी जांच कर रही है। वादा है कि कोई कितना ही बड़ा क्यों न हो, जांच में यदि पकड़ा गया, तो जेल जाएगा। सरकारी तंत्र को भी ऐसे मामलों में सख्त निर्देश दिए गए हैं।

राज्य में अवैध खनन की शिकायतें आम थीं, लेकिन कोई हाथ डालने को तैयार नहीं था। हमने न सिर्फ इस पर रोक लगाई, बल्कि नियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। नतीजा यह कि राजस्व में भारी वृद्धि तो हुई ही, ओवरलोडिंग पर नकेल कसने से सड़क हादसे भी कम हुए हैं। उत्तराखंड में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक उद्योग बन चुका था और इसमें बिचौलिए चांदी काटते थे, लेकिन बेहद पारदर्शी और गोपनीय तरीके से अफसरों का रिकॉर्ड देखकर तबादले किए गए, तो सारी शिकायतें खत्म हो गईं। सच तो यह है कि आज उत्तराखंड के सरकारी सिस्टम से बिचौलियों की भूमिका पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। राजनीति में ऐसे फैसले आसान नहीं होते, लेकिन जो फैसले दवा का काम करें, उनकी कड़वाहट सरकार और जनता, दोनों को ही बर्दाश्त करनी चाहिए। 

उत्तराखंड के सामने चुनौतियां कम नहीं थीं, लेकिन तमाम बड़ी चुनौतियों पर काबू पाने में सफलता भी मिली है। शिक्षा में सुधार और देवभूमि के हर आदमी तक चिकित्सा-सुविधा पहुंचाने के लिए दीर्घकालीन उपाय किए जा रहे हैं। उत्तराखंड देश में प्रति वर्ष, प्रति बच्चे पर 16,881 रुपये से ज्यादा खर्च करने वाला अकेला राज्य है। अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए फौज से रिटायर चिकित्सकों की तैनाती की योजना है, जिसके लिए 120 चिकित्सक तैयार भी हो गए हैं। इससे सुदूर क्षेत्रों में बेहतर-गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवा का लक्ष्य पूरा करने में सहूलियत होगी।
रोजगार के नए अवसर पलायन रोकने का कारगर जरिया हैं, पर नए पर्यटक स्थल विकसित करने पर कभी सोचा ही नहीं गया। पर्यटन अकेला ऐसा क्षेत्र है, जिसके सहारे उत्तराखंड से पलायन रोका जा सकता है। इसके लिए ‘13 डिस्ट्रिक्स, 13 न्यू डेस्टीनेशन’ अभियान के तहत हर जिले में एक नया पर्यटक-स्थल विकसित करने की योजना है। अंग्रेजों द्वारा नैनीताल और मसूरी बसाने के बाद पहली बार 13 जिलों में 13 आधुनिक उप-नगर बसाने की योजना पर काम हो रहा है। खेती, बागवानी, पशुपालन और मत्स्य-पालन के लिए एक लाख तक का कर्ज दो फीसदी ब्याज दर पर देने का फैसला किसानों की हालत में सुधार करने वाला साबित होगा।  किसानों से जुड़े विभागों का एकीकरण करने की योजना के साथ ही नर्सरी ऐक्ट बनाने की तैयारी है, जो नर्सरी से बिकने वाले पौधे की गुणवत्ता की जवाबदेही नर्सरी संचालक पर तय करेगी। जैविक खेती को बढ़ावा देकर किसानों की आय बढ़ाने और केंद्र सरकार के 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य पर काम तेज हुआ है। उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल को खुले में शौच से मुक्त होने का श्रेय भी मिला है, ऐसा करने वाला वह सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और केरल के बाद चौथा राज्य बन गया है। 

किसी भी राज्य के विकास को गति देने के लिए बुनियादी ढांचे का मजबूत होना जरूरी है। खासकर रोड, रेल और एयर कनेक्टिविटी बेहतर होनी चाहिए। उत्तराखंड जैसे प्रदेश में चार धाम यात्रा सबसे महत्वपूर्ण यात्रा है और लाखों पर्यटक हर साल चार धाम के दर्शन के लिए आते हैं। मौसम के कारण वर्ष के चार-पांच महीने यह बंद रहती है, लेकिन 12 हजार करोड़ की ऑल वेदर रोड परियोजना साल के 365 दिन यात्रा का संचालन सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। वर्ष भर चार धाम यात्रा का संचालन राज्य में रोजगार के अवसर तो बढ़ाएगा ही, राजस्व बढ़ाने वाला भी साबित होगा। केंद्र सरकार के उदार रुख के कारण अगर इन योजनाओं को पंख लगे हैं, तो देहरादून और पंतनगर में आईटी पार्क समेत सेंट्रल इंस्टीट्यूट प्लास्टिक इंजीनियरिंग ऐंड एडवांस टेक्नोलॉजी (सीपैट) जैसे संस्थान स्थापित करने के प्रयास को भी गति मिली है। हॉस्पिटेलिटी यूनिवर्सिटी के साथ साइबर सुरक्षा के लिए फॉरेंसिक सेंटर राज्य की महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं। 

सीमावर्ती राज्य होने के कारण उत्तराखंड के सामने एक और चुनौती रही है। इसका 45 फीसदी यानी 6,500 किलोमीटर क्षेत्र चीन और नेपाल से लगा है। इन इलाकों से हो रहा पलायन रणनीतिक तौर पर भी हमारे लिए चिंता का विषय है। सीमा पर आधारभूत संरचना का विकास रातों-रात तो नहीं हो सकता। सड़कों की लागत भी मैदान के मुकाबले दोगुनी पड़ती है। हर साल कई सौ किलोमीटर सड़कें प्राकृतिक आपदा का शिकार बनती हैं। ऐसे में, चुनौतियां बड़ी हैं। लेकिन संकल्प-शक्ति के बल पर इन चुनौतियों को जीतना आसान होगा। अभी जितना वक्त मिला है, वह ठोस नींव रखने का वक्त था। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का मंत्र इस नींव पर बुलंद इमारत खड़ी कर पाएगा, ऐसा भरोसा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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