परेशानियों के आसमान और भी हैं
अपने घाटे को कम करने के लिए एअर इंडिया कुछ खास पहल करने जा रहा है। हवाई अड्डों पर इस्तेमाल न होने वाले हैंगर स्पेस को छोड़ने के अलावा यहां पड़े कबाड़ को बेचने की बात भी कही गई है। ये तमाम कवायद उन्हीं...
अपने घाटे को कम करने के लिए एअर इंडिया कुछ खास पहल करने जा रहा है। हवाई अड्डों पर इस्तेमाल न होने वाले हैंगर स्पेस को छोड़ने के अलावा यहां पड़े कबाड़ को बेचने की बात भी कही गई है। ये तमाम कवायद उन्हीं प्रयासों की अगली कड़ी हैं, जो राजीव बंसल के नेतृत्व में एअर इंडिया प्रबंधन खुद को बेहतर बनाने के लिए पिछले एक महीने से कर रहा है। उल्लेखनीय है कि करीब एक माह पहले ही राजीव बंसल को एअर इंडिया की जिम्मेदारी दी गई है। उनसे पूर्व इस पद पर अश्विन लोहानी थे, जो करीब दो साल तक इसके चैयरमेन रहे। मगर उनकी छवि जुबानी जमा-खर्च में ज्यादा विश्वास करने वाले प्रबंधक की ही बनी। मगर अब ऐसा लग रहा है कि कुछ गंभीर कोशिशें हो रही हैं। हालांकि बंसल को भी यह जिम्मेदारी बतौर तीन महीने के अतिरिक्त प्रभार के रूप में दी गई है, यानी उनका यह पार्ट-टाइम असाइनमेंट है, पर उनके कदम सधे दिख रहे हैं।
अच्छी बात है कि एअर इंडिया अब सबसे ज्यादा जोर ‘ऑन टाइम परफॉरमेंस’ पर दे रहा है। इस परफॉरमेंस का अर्थ है, जहाजों का समय से उड़ान भरना। दरअसल, विमानन उद्योग में किसी हवाई सेवा की गुणवत्ता के दो मानक होते हैं- एक, ऑन टाइम परफॉरमेंस और दूसरा, हवाई जहाजों का रख-रखाव। जब ‘ऑन टाइम परफॉरमेंस’ बेहतर होता है, तो यात्रियों का रुझान उस हवाई सेवा की ओर बढ़ता है। आज दुनिया में जो भी एयरलाइंस बेहतर स्थिति में हैं, उसकी बड़ी वजह उनका बेहतर ‘ऑन टाइम परफॉरमेंस’ ही है। इससे उनमें यात्रियों का भरोसा बढ़ता है और जैसे-जैसे यह विश्वास बढ़ता जाता है, न सिर्फ उस हवाई सेवा की बुकिंग बढ़ती है, बल्कि वह प्रीमियम सेवा भी बनती जाती है।
एयरलाइंस के प्रीमियम में आने का कितना फायदा होता है, यह अपने यहां इंडिगो की अब तक की यात्रा को देखकर समझ सकते हैं। यह सही है कि अपेक्षाकृत कम किराये वाली एयर सेवा के बाजार में आने से ‘इन फ्लाइट सर्विस’ (हवाई जहाज के अंदर मुहैया कराई जाने वाली सेवाएं) का महत्व धीरे-धीरे खत्म हो गया है। मगर इंडिगो आज अगर सबसे महंगा यात्रा-टिकट बेच रही है, तो इसकी वजह यात्रियों की प्राथमिकता में हवाई जहाज की गुणवत्ता और ‘ऑन टाइम परफॉरमेंस’ का शामिल होना है। जबकि इंडिगो सेवा जब शुरू हुई थी, तो इसका टिकट अपेक्षाकृत सस्ता हुआ करता था। स्पष्ट है, ‘ऑन टाइम परफॉरमेंस’ हवाई सेवा को प्रीमियम बनाने में काफी कारगर है।
एअर इंडिया के नए प्रबंधन ने दूसरा अच्छा फैसला यह लिया है कि जिन लोगों की उम्र सेवानिवृत्त-आयु को पार कर चुकी है, उन्हें बाकायदा सेवा से मुक्त कर रहा है। पहले होता यह था कि रिटायर के बाद भी कर्मियों को फिर से नियुक्त किया जाता था। इससे संगठन में एकरसता आ गई थी। नए लोगों की भर्ती होने से नई स्फूर्ति तो आती ही है, नया जोश भी दिखता है। एअर इंडिया में फिलहाल ऐसा ही जोश दिख रहा है। तीसरा प्रयास ‘रूट कॉस्ट’ (यात्रा व्यय) को कम करने पर ध्यान देना है, जिसमें फिलहाल समय लगेगा। हालांकि यदि ‘ऑन टाइम परफॉरमेंस’ को ही बेहतर बना लिया जाए, तो मेरा मानना है कि मुनाफा कमाने और लागत में बचत करने जैसे मोर्चे पर पांच से दस प्रतिशत का फायदा एअर इंडिया को हो सकता है। इसका एक गणित यह भी है कि देर से चलने वाली फ्लाइट में तमाम तरह की दूसरी लागत बढ़ जाती है। यात्रियों को न सिर्फ अतिरिक्त सुविधाएं दी जाती हैं, बल्कि फ्लाइट को दोबारा ‘शिड्यूल’ भी करना होता है।
लिहाजा एअर इंडिया को उबारने के मौजूदा प्रयास सही दिशा में हैं। मगर इसकी लागत और खर्च का अंतर काफी बड़ा है, इसलिए इसे महज दो-चार दिनों के प्रयास से नहीं पाटा जा सकता। इसके लिए अनवरत काम करना होगा। अभी एअर इंडिया को सबसे अधिक प्रयास अपने राजस्व को बढ़ाने की दिशा में करना होगा। मेरा मानना है कि खर्च में कटौती की कोशिशें ज्यादा प्रभावी नहीं होने वालीं। दिक्कत यह भी है कि अब तक एअर इंडिया का प्रबंधन जिन लोगों के हाथों में रहा है, उन्होंने खर्च में कटौती पर ही ज्यादा जोर दिया। इसके मुख्यत: दो तरह के बड़े खर्च हैं- एक, कर्ज पर चुकाया जाने वाला ब्याज और दूसरा, ईंधन पर आने वाला खर्च। और इन दोनों पर प्रबंधन का कोई बस नहीं है, क्योंकि ब्याज की दर नियत है और ईंधन के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से तय होते हैं। इसलिए खर्च में कटौती एक सीमा तक ही हो सकती है। अलबत्ता, इससे बाजार में भी गलत संदेश जाता है। असल में, खर्च बचाने वाले कुशल प्रबंधन का होना और खर्च में कटौती करना, दोनों अलग स्थिति है। हमें दोनों में फर्क को समझना होगा।
फिलहाल यह कहना जल्दबाजी है कि जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे किस हद तक कारगर होंगे। मगर अच्छी बात यह है कि ये तमाम कदम एअर इंडिया प्रबंधन अपने तईं उठा रहा है, सरकार का इसमें कोई दखल नहीं है। वैसे भी, सरकार इसे बेचने की बात ही कहती रही है; इसे बचाने की कोई ठोस रणनीति उसके पास नहीं दिखती। बेशक वह भी एक सीमा तक ही प्रयास कर सकती है, पर सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों को उबारने के सीमित प्रयास भी करती सरकार नहीं दिख रही।
कुल मिलाकर, एअर इंडिया अपनी सेवा-गुणवत्ता को सुधारे और अपनी छवि निखारे। प्रतिस्पद्र्धा का एक पहलू टिकटों को अपेक्षाकृत कम दामों में बेचना जरूर है, पर यह किसी एयरलाइंस की मजबूरी नहीं होनी चाहिए। कम मूल्य के टिकट के आधार पर यात्रियों को आकर्षित करना एक अलग बात है और अपनी गुणवत्ता के आधार पर यात्रियों को अपनी ओर खींचना बिल्कुल अलग। उम्मीद है कि एअर इंडिया अपनी गुणवत्ता के आधार पर यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर सकेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)