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एक हमला और एकजुट हुआ समाज

ब्रिटेन के समय के मुताबिक सोमवार रात करीब 10.45 में हमें यह सूचना मिली कि मैनचेस्टर में धमाके जैसी कोई घटना हुई है। मगर उस समय यह पता नहीं चल सका कि धमाका है किस तरह का? रात 11.30 तक हम यह कंफर्म...

एक हमला और एकजुट हुआ समाज
नरेश कौशिक, बीबीसी, लंदनTue, 23 May 2017 10:58 PM
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ब्रिटेन के समय के मुताबिक सोमवार रात करीब 10.45 में हमें यह सूचना मिली कि मैनचेस्टर में धमाके जैसी कोई घटना हुई है। मगर उस समय यह पता नहीं चल सका कि धमाका है किस तरह का? रात 11.30 तक हम यह कंफर्म करते रहे। बाद में पुलिस सूत्रों से पता चला कि इस धमाके में कुछ लोग मारे गए हैं। तब हमें इसका एहसास हुआ कि यह कुछ गंभीर मामला है। चूंकि तब तक पुलिस की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था, इसलिए इसके आतंकी पहलू से हम तब अनजान ही थे। वाकई यह गौर करने लायक है कि पुलिस ने इस कदर सूचनाओं के प्रवाह पर नियंत्रण रखा। इस बीच मौका-ए-वारदात से लोगों को हटाने का काम जारी रहा। यह धमाका वहां हुआ था, जहां अमेरिकी पॉप स्टार अरियाना ग्रैंडे का शो चल रहा था। अरियाना बच्चों व किशारों में काफी लोकप्रिय हैं। संभवत: इसीलिए मरने वालों में इनकी तादाद ज्यादा है।

रात में करीब दो बजे पुलिस ने कैमरे के सामने पहला बयान दिया। उस वक्त उसने भी ज्यादा जानकारियां साझा नहीं कीं। बस यही बताया कि 50 से ज्यादा लोगों का शहर के आठ अस्पतालों में इलाज चल रहा है। उसने आम लोगों से धमाके की तमाम जानकारियां उन तक पहुंचाने की अपील की और कहा कि एक आतंकवादी घटना के तौर पर हम इसकी जांच कर रहे हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री इस घटना की निंदा करते हुए एक बयान जारी करती हैं। उल्लेखनीय है कि सारी जानकारियां सिर्फ पुलिस बता रही हैं- कोई मंत्री, नेता या जनप्रतिनिधि नहीं। ऐसे लोगों के बयान अगर आ भी रहे हैं, तो सिर्फ निंदा करते हुए। 
इस समय ब्रिटेन में आम चुनाव के प्रचार का अंतिम चरण चल रहा है। सबसे पहले कंजरवेटिव पार्टी ने यह एलान किया कि वह अपना चुनाव प्रचार स्थगित कर रही है। फिर ऐसी ही घोषणा तमाम दलों ने की। विपक्ष ने इस घटना के लिए सरकार की कोई आलोचना नहीं की। किसी पर निशाना नहीं साधा। किसी ने सरकार को घेरते हुए नहीं कहा कि यह उसकी सुरक्षा-व्यवस्था में चूक का नतीजा है। यहां तक कि मीडिया ने भी खुफिया विभाग की विफलता का शोर नहीं मचाया। सब वही बता रहे हैं, जो पुलिस कह रही है। 

तमाम सियासी पार्टियां की यह एकता भारत जैसे देशों के लिए सबक है। भारत में जब भी कोई आतंकी हमला होता है, तो सबसे पहले बयानों से सरकार पर हमला बोला जाता है और फिर आतंकवाद पर। वैसे यहां के लोगों की पहल पर भी भारत गौर कर सकता है। जैसे, एक होटल की तरफ से कहा गया कि उसने लगभग 50 बच्चों को शरण दे रखी है और वे सभी सुरक्षित हैं। उसने होटल के नंबर भी सार्वजनिक किए। इसी तरह, कई लोगों ने ट्वीट किया कि उनकी कार से कोई भी लिफ्ट ले सकता है। किसी ने अपने घर में कमरे के खाली होने और रात भर ठहरने की बात कही। मैनचेस्टर में भारत और पाकिस्तान मूल के टैक्सी ड्राइवरों की संख्या ज्यादा है, उन्होंने भी मुफ्त सेवा की पेशकश की। गुरुद्वारे, मंदिर, मस्जिद जैसे तमाम धर्मस्थलों ने भी लोगों को शरण देने की बात कही। मैं यह नहीं कहता कि भारत में लोग मदद के लिए आगे नहीं आते, मगर यहां वह एक व्यवस्थित रूप में दिखता है। समाज खुलकर मदद के लिए आगे आता है। कोईभगदड़ नहीं मचती, कोई घबराहट नहीं होती, और न ही आतंकी की पहचान को लेकर कोई अटकल लगाई जाती है।
ब्रिटेन में आतंकी हमलों से बचने की तैयारी भी उल्लेखनीय है, खास तौर से लंदन धमाके (वर्ष 2005) के बाद इस पर खासा ध्यान दिया गया है। ऐसा लगता है कि पुलिस को इसका अंदेशा था कि यहां हमले हो सकते हैं। पुलिस अफसर कहा करते थे, ‘बाकी यूरोपीय देशों में जिस तरह के हमले हो रहे हैं, उससे यही लगता है कि यहां भी हमला होगा जरूर, मगर यह कब होगा, हमें नहीं पता।’ यह पुलिस की पूर्व-तैयारी ही थी कि मैनचेस्टर हमले से निपटना उसके लिए आसान रहा।

ऐसे किसी हमले से निपटने के लिए सुरक्षात्मक उपाय काफी महत्वपूर्ण होते हैं। यह सुनिश्चित किया जाता है कि पुलिस कैसे घटना पर काबू पाए, कैसे जान-माल की कम से कम क्षति हो, लोगों को जागरूक किस कदर बनाया जाए, अस्पतालों में किस तरह की व्यवस्था विकसित की जाए, आदि? भारत में ऐसे किसी हमले की सूरत में कुछ दिनों तक तो खूब चौकसी बरती जाती है, फिर बाद में सब ढीले पड़ जाते हैं। ब्रिटेन में ऐसा नहीं है। 

यहां के स्टेशनों पर आपको कूड़े के डिब्बे नहीं दिखेंगे। यह कदम लंदन हमलों के बाद उठाया गया है। यात्रियों से कहा जाता है कि वे कचरा अपने साथ घर ले जाएं। यानी छोटी से छोटी चीजों पर भी नजर रखी जाती है, ताकि आतंकियों के हाथ कोई मौका न लग जाए। मगर भारत में रेलवे स्टेशनों पर बाद के दिनों में इतनी शिथिलता आ जाती है कि ढंग से बैग तक की जांच नहीं होती। मुझे याद है कि 1980 के दशक में जब सिख अलगाववाद अपने चरम पर था, तो ऐसे कई हमले हुए, जब बम कूड़े के ढेर में रख दिए जाते थे या साइकिल से बांध दिए जाते थे। ब्रिटिश पुलिस दुनिया भर में होने वाली आतंकी घटनाओं का विश्लेषण करती है और उससे सबक लेती है। मुंबई हमलों के बाद से यहां भी ऐसे कदम उठाए गए हैं, ताकि कोई आतंकी नदी के रास्ते ब्रिटेन में दाखिल होकर अपनी मंशा में सफल न हो सके।

बहरहाल, मंगलवार की सुबह सात बजे पुलिस ने बताया कि मैनचेस्टर धमाके में 22 लोगों की मौत हुई है, जबकि 59  घायल हैं। हम दुआ यही करेंगे कि घायलों में से अब कोई और चिरनिद्रा में न सोए। मगर गौर कीजिए कि पुलिस ने घायलों की भी पूरी जानकारी दी है, जबकि भारत में घायलों की कुल संख्या तो घटना के काफी दिनों के बाद पता चलती है। 

अब पुलिस की जांच प्रक्रिया अपनी रफ्तार चलेगी और उसके जो भी नतीजे आएंगे, वे सार्वजनिक किए जाएंगे। मगर क्या ऐसे हमलों से हम भारतवासी सबक नहीं ले सकते? जब यह तय है कि आत्मघाती हमले कभी भी, कहीं भी हो सकते हैं, तो फिर क्यों न हम भी तमाम सुरक्षात्मक उपायों पर अमल करें?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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