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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैवादियोें से निकली बुलंदी की राह

वादियोें से निकली बुलंदी की राह

लद्दाख केएक छोटे से गांव टकमाचिक में जन्मी थिनलास ने होश संभालते ही दुश्वारियों का सामना किया। बचपन में ही मां चल बसीं। पापा ने दूसरी शादी कर ली। नई मां को उनसे खास लगाव नहीं था। पापा पूरे दिन खेतों...

वादियोें से निकली बुलंदी की राह
थिनलास कोरल सामाजिक उद्यमी, लद्दाखSat, 11 Nov 2017 11:31 PM
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लद्दाख केएक छोटे से गांव टकमाचिक में जन्मी थिनलास ने होश संभालते ही दुश्वारियों का सामना किया। बचपन में ही मां चल बसीं। पापा ने दूसरी शादी कर ली। नई मां को उनसे खास लगाव नहीं था। पापा पूरे दिन खेतों और पशुओं के बीच व्यस्त रहते। अकेलेपन के दर्द ने उनके अंदर असुरक्षा की भावना पैदा कर दी।
हर वक्त पापा की फिक्र लगी रहती। खासकर जब वह दूर पहाड़ियों पर भेड़ चराने जाते। लगता, कहीं मां की तरह उन्हें भी कुछ न हो जाए। इसलिए जब भी पापा पहाड़ी पर जाते, वह चल पड़तीं उनके संग। गांववालों का जीवन खेती या पशुपालन पर निर्भर था। गांव में एक स्कूल था, जहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। थिनलास स्कूल जाने लगीं। स्कूल से लौटते ही पापा के संग निकल पड़तीं भेड़ चराने। थिनलास कहती हैं, मैं हर समय साये की तरह पापा के संग रहती थी। पापा को भी अच्छा लगता था, क्योंकि मैं भेड़-बकरियां संभालने में उनकी मदद करती थी। पहले तो पहाड़ियों पर जाने का सिलसिला पापा की मदद के लिए शुरू हुआ, पर बाद में उन्हें खूबसूरत वादियों में सैर का मजा आने लगा। वहां जब पर्यटक उनसे रास्ता पूछते, तो वह बड़े चाव से उन्हें समझातीं कि वे कहां जाएं, कहां रुकें और किन खूबसूरत स्थलों का दौरा जरूर करें। कई बार पर्यटक खुश होकर उनको कुछ पैसे दे देते। 

प्राइमरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे पढ़ने की इच्छा हुई। पड़ोस के गांव में 12वीं तक का स्कूल था। अब वह समझ चुकी थीं कि गरीबी से छुटकारा पाने के लिए पढ़ना जरूरी है, लिहाजा उनका पूरा ध्यान पढ़ाई पर था। 12वीं के बाद पत्राचार के जरिये बीए पास किया। थिनलास बताती हैं, मेरे सात भाई-बहन थे। घर के हालात अच्छे नहीं थे। मैं नौकरी करना चाहती थी। मैंने पर्वतारोहण का कोर्स किया। कई जगह नौकरी की तलाश में भटकी, पर कहीं काम नहीं मिला।
इस बीच उन्हें लेह के स्टूडेंट्स एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख में ट्रेनिंग का मौका मिला। इस दौरान वह विदेशी स्वयंसेवकों के संग ट्रैकिंग पर गईं। सैलानियों से बात करने लिए उन्होंने अंग्रेजी सीखने की कोशिश की। यह दौरा काफी मजेदार रहा। कई नई चीजें सीखने को मिलीं। ट्रैकिंग के दौरान सैलानियों को गाइड की जरूरत पड़ती है। उन्हें लगा कि गाइड का काम तो वह बहुत अच्छे से कर सकती हैं। इस ट्रिप से लौटने के बाद उन्होंने कई ट्रैवल एजेंसियों में नौकरी तलाशी। थिनलास बताती हैं, कंपनियों ने पूछा कि भला एक लड़की कैसे गाइड बन सकती है? उनकी बेरुखी देखकर बड़ा दुख हुआ।

मगर थिनलास हार मानने वाली नहीं थीं। अकेले गाइड का काम करने लगीं। वह लद्दाख आने वाले सैलानियों से खुद संपर्क करतीं और उन्हें ट्रैकिंग पर ले जाती। रास्ते में वह सैलानियों का खूब ख्याल भी रखतीं। जान-पहचान वाले गांवों में उनके खाने-पीने और रहने का इंतजाम करवातीं। बहुत से सैलानी  गांव के माहौल में रहना पसंद करते थे। वह गांववालों के हाथों से बने खाने की फरमाइश करते। थिनलास ग्रामीणों से आग्रह करके उनकी इच्छा पूरी करती। इससे सैलानी खुश हो जाते और ग्रामीणों की कमाई भी हो जाती। सैलानियों के बीच उनकी पहचान बनने लगी। पर्यटक तलाशते हुए उनके घर पहुंच जाते। जाहिर है, वह हर पर्यटक के संग ट्रैकिंग पर नहीं जा सकती थीं, इसलिए उन्होंने कुछ और महिलाओं को इस काम के लिए राजी किया।

महिलाओं को गाइड का काम मिलने लगा। धीरे-धीरे महिला गाइड की मांग बढ़ने लगी। तब उन्होंने सोचा कि क्यों न इस काम को प्रोफेशनल तरीके से किया जाए? इसी मकसद से उन्होंने 2009 में लद्दाख वुमेन ट्रैवल कंपनी बनाई। एक ऐसी ट्रैवल कंपनी, जहां सिर्फ महिलाएं काम करती हैं। गांव की लड़कियों को ट्रैकिंग, सामान ढोने, गाइड की ट्रेनिंग दी गई। नतीजे अच्छे निकले। लड़कियों को काम मिलने लगा। थिनलास कहती हैं, पर्यटन क्षेत्र में महिलाओं के लिए भारी संभावनाएं हैं। पहाड़ की महिलाएं बहुत मेहतनी होती हैं। उनके लिए पहाड़ों पर चढ़ना, सामान ढोना, मेहमानों के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाना आम बात है। अगर उन्हें प्रोफेशनल तरीके से प्रशिक्षित किया जाए, तो रोजमर्रा के ये काम उनके लिए रोजगार के मौके दे सकते हैं।

ट्रैकिंग के दौरान उन्होंने देखा कि सैलानियों को गांव के खूबसूरत कच्चे घर पसंद आते हैं। इसलिए सोचा, क्यों न घरों को बतौर गेस्टहाउस इस्तेमाल किया जाए। थिनलास बताती हैं, हमने घरों को सैलानियों की सुविधा के मुताबिक व्यवस्थित किया। इसमें खास निवेश नहीं करना पड़ा। सैलानी ग्रामीण परिवेश का मजा लेते हैं। इस तरह गांववालों को रोजगार मिल रहा है। ट्रैवल कंपनी चलाने के साथ ही वह अखबारों और पत्रिकाओं में लद्दाख में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लेख लिखने लगीं। साल 2014 में इंडियन मर्चेंट चैंबर ने उन्हें सम्मानित किया। वह लद्दाख की पहली महिला हैं, जिन्हें यह अवार्ड मिला। इसी वर्ष उन्होंने लद्दाखी महिला वेलफेयर नेटवर्क बनाया। इसका मकसद लड़कियों को पढ़ाना व हिंसा पीड़ित औरतों को न्याय दिलाना है। 2015 में एक न्यूज वेबसाइट ने उन्हें ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड दिया।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
 

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