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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैखिलाड़ी कभी रिटायर नहीं होता

खिलाड़ी कभी रिटायर नहीं होता

इंद्रजीत सिंह के पिताजी झारखंड के रांची शहर में स्पोट्र्स की दुकान चलाते थे, जिसमें खिलाड़ि़यों की ड्रेस समेत खेल के तमाम साजो-सामान बिकते थे। रांची आने से पहले पिताजी कोलकाता और पटना में एक बड़ी...

खिलाड़ी कभी रिटायर नहीं होता
इंद्रजीत सिंह, बुजुर्ग खिलाड़ी Sat, 02 Sep 2017 10:42 PM
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इंद्रजीत सिंह के पिताजी झारखंड के रांची शहर में स्पोट्र्स की दुकान चलाते थे, जिसमें खिलाड़ि़यों की ड्रेस समेत खेल के तमाम साजो-सामान बिकते थे। रांची आने से पहले पिताजी कोलकाता और पटना में एक बड़ी स्पोट्र्स कंपनी में काम करते थे। खेल की दुनिया से उनका लंबा नाता था, लेकिन अपने बेटों को खिलाड़ी बनाने का ख्याल कभी उनके मन में नहीं आया।

घर का माहौल संजीदा था। मां और पिताजी के मन में देश विभाजन की यादें ताजा थीं। अक्सर वे बेटों के संग अपने पुराने दर्द साझा करते थे। बच्चे आजादी और भारत-पाकिस्तान बंटवारे से जुड़े तमाम किस्से सुनकर बड़े हुए। इंद्रजीत बताते हैं, हमारे नाना रावलपिंडी में बडे़ जमींदार थे। हवेली थी, ढेरों नौकर-चाकर थे। विभाजन के समय नानाजी मारे गए। पूरा परिवार सब कुछ छोड़कर रावलपिंडी से अमृतसर पहुंचा।

इंद्रजीत तब 14 साल के थे। घर के पास एक जिम था। वहां हर रविवार छोटे बच्चों की दौड़ प्रतियोगिता होती थी। पूरे सप्ताह उन्हें रविवार का इंतजार रहता। एक दिन वह मैदान के किनारे खड़े होकर रेस शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। तभी किसी ने पूछा, क्या तुम भी दौड़ोगे? उन्होंने कहा, हां, जरूर। वह धावकों की लाइन में खड़े होकर सीटी बजने का इंतजार करने लगे। रेस शुरू हुई। वह खूब तेज भागे। इतनी तेज कि फस्र्ट आ गए। इनाम में मिली एक नोटबुक और एक सुंदर सी पेंसिल। फिर तो वह हर रविवार रेस में हिस्सा लेने लगे। अक्सर उनका पहला, दूसरा या तीसरा नंबर आता। हर बार कुछ न कुछ इनाम मिल जाता।

रेस खत्म होने के बाद वह जिम में लड़कों को कसरत करते और वजन उठाते देखते। एक दिन जिम के इंचार्ज ने पूछा- बेटा, क्या तुम भी इनकी तरह बनना चाहते हो? इंद्रजीत का जवाब था, हां। इस तरह उनकी ट्रेनिंग शुरू हो गई। नियमित वर्जिश और अनुशासित खान-पान से उनका प्रदर्शन निखरता गया। जल्द ही उन्हें जिले की वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का मौका मिला। पहला स्थान मिला। उन्होंने पिताजी से कहा- मैं पावर लिफ्टिंग सीखना चाहता हूं। अनुमति मिल गई। रांची में ट्रेनिंग की कोई सुविधा नहीं थी, इसलिए जमशेदपुर जाना पड़ता था। पूरे सप्ताह स्कूल में पढ़ाई करते और हर रविवार सुबह-सुबह निकल पड़ते जमशेदपुर के लिए। उन दिनों रांची से जमशेदपुर के बीच का रास्ता ठीक नहीं था। बस से पहुंचने में करीब चार घंटे लगते थे। इस सफर के बाद पूरे दिन ट्रेनिंग करते और फिर शाम को बस से लौट आते।

जल्द ही वह राज्य स्तरीय टीम में खेलने लगे। बात 1971 की है। तब वह 17 साल के थे। पटना में राष्ट्रीय पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में 207 किलोग्राम वजन उठाने के दौरान इंद्रजीत की कूल्हे की हड्डी अचानक टूट गई। इंद्रजीत बताते हैं- मैंने 207 किलोग्राम वजन उठाने की तैयारी नहीं की थी। दोस्तों के जोश दिलाने पर यह करने की कोशिश की। डॉक्टरों ने जब कहा कि अब मैं कभी पावर लिफ्टिंग नहीं कर पाऊंगा, तो सन्न रह गया। घरवालों ने भी पावर लिफ्टिंग छोड़ने की सलाह दी। घायल हालत में ही उन्होंने बीए की परीक्षा दी। इंद्रजीत कहते हैं- कुरसी पर तीन घंटे बैठकर पर्चा देना बहुत मुश्किल था, पर मैं अपना साल खराब नहीं करना चाहता था।

लेकिन अस्तपाल से घर आने के बाद उनका खिलाड़ी मन बेचैन था। पावर लिफ्टिंग उनकी जिंदगी थी। छह महीने के बाद उन्होंने एथलेटिक्स में शॉटपुट और डिस्कस थ्रो का अभ्यास शुरू किया। जल्द ही राज्य टीम में जगह मिल गई। लेकिन मन तो पावर लिफ्टिंग में बसा था। तीन साल बाद वह फिर से जिम पहुंच गए। सब हैरान थे। एक साल के अभ्यास के बाद कोच ने कहा, अब तुम पावर लिफ्टिंग कर सकते हो। इसके बाद पीछे मुड़कर देखने की नौबत नहीं आई। साल 1975 में वह राष्ट्रीय चैंपियन बने। 1975 से लेकर लगातार 11 साल तक इंद्रजीत ने राष्ट्रीय पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। साल 1984 परिवार के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आया। 84 के दंगों में पिताजी की दुकान जला दी गई। परिवार के मन में एक बार फिर विभाजन की यादें ताजा हो गईं। इंद्रजीत बताते हैं- हम डरे हुए थे। रिश्तेदारों ने कहा, पंजाब आ जाओ। हम तीनों भाइयों का जन्म रांची में हुआ था। इसकी मिट्टी से बड़ा लगाव था, इसलिए हम यहीं रहे।
इंद्रजीत विश्व चैंपियनशिप में दो स्वर्ण और एशियन चैंपियनशिप में चार गोल्ड जीत चुके हैं। अब वह वेटरन वर्ग में देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। 1978 में ‘स्ट्रॉन्गेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ और 1986 में ‘आउटस्टैंडिंग यंग पर्सन ऑफ इंडिया’ का खिताब मिला। वह 2006 में ‘हक्र्यूलिस ऑफ इंडिया’ और 2016 में ‘बेस्ट लिफ्टर ऑफ इंडिया’ अवार्ड से सम्मानित किए गए। पिछले 42 वर्षों से खेल में सक्रिय इंद्रजीत इन दिनों दक्षिण अफ्रीका में होने वाली कॉमनवेल्थ पावर लिफ्टिंग ऐंड बेंचप्रेस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे हैं। 64 साल के इस खिलाड़ी पर उम्र का दबाव कोई मायने नहीं रखता। इंद्रजीत बताते हैं- मैं रोजाना सुबह तीन बजे उठता हूं। चार बजे से सात बजे तक प्रैक्टिस करता हूं। नाश्ता करने के बाद स्पोट्र्स की दुकान पर बैठता हूं। शाम को फिर प्रैक्टिस करता हूं। मैं रिटायर नहीं होने वाला।
प्रस्तुति : मीना त्रिवेदी

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