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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैलड़का हो या लड़की मकसद होता है हराना

लड़का हो या लड़की मकसद होता है हराना

असम के शोणितपुर जिले में छोटा सा गांव है बेलसिरि।  यह ब्रहमपुत्र नदी के किनारा बसा आदिवासी इलाका है। घने जंगलों और प्राकृतिक नजारों से भरपूर इस इलाके में रोजगार के नाम पर लोगों को मेहनत-मजदूरी...

लड़का हो या लड़की मकसद होता है हराना
जमुना बोडो महिला बॉक्सर Sat, 01 Jul 2017 07:09 PM
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असम के शोणितपुर जिले में छोटा सा गांव है बेलसिरि।  यह ब्रहमपुत्र नदी के किनारा बसा आदिवासी इलाका है। घने जंगलों और प्राकृतिक नजारों से भरपूर इस इलाके में रोजगार के नाम पर लोगों को मेहनत-मजदूरी का काम ही मिल पाता है। कुछ लोग फल-सब्जी बेचकर भी जीवन गुजारते हैं। आर्थिक बदहाली के बावजूद पिछले कुछ साल में यहां के युवाओं में खेल के प्रति रुझान बढ़ा है। जमुना दस साल थीं जब पापा गुजर गए। बड़ी बेटी की शादी करनी थी। छोटी को पढ़ाना था। बेटे को नौकरी दिलवानी थी। सब कुछ बीच में ही छूट गया। बच्चे सदमे में थे। मां बेहाल थीं। अब बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उन पर थी। जमुना बताती हैं, मां पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर उनमें गजब का हौसला था। समझ में नहीं आ रहा था घर कैसे चलेगा? फिर मां ने घर चलाने के लिये सब्जी बेचने का फैसला किया। 

मां बेलसिरी गांव के रेलवे स्टेशन के बाहर सब्जियां बेचने लगीं। इस तरह जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश शुरु हो गई। जमुना स्कूल जाने लगीं। कुछ समय बाद मां ने दीदी की शादी कर दी। वो ससुराल चली गईं। उन दिनों देश में मणिपुर की बॉक्सर मेरीकॉम की वजह से महिला बाक्सिंग सुर्खियों में थी, पर जमुना के गांव में वुशू गेम का बुखार चढ़ रहा था। स्कूल से लौटते वक्त अक्सर वो खेल मैदान के किनारे रुककर गेम देखने लगतीं। दरअसल वुशु जूडो कराटे और टाइकाइंडो की तरह एक मार्शल आर्ट है। वुश गेम में लड़कों को पंच, थ्रो और किक लगाते देख जमुना को खूब मजा आता। यह खेल उन्हें इतना रोमांचकारी लगता था कि वो खुद को रोक नहीं पाईं। जमुना बताती हैं, सारे वुशु खिलाड़ी मेरे गांव के थे। वो सब मेरे भाई जैसे थे। मैं उन्हें भईया कहती थी। मेरा उत्साह देखकर उन्होंने मुझे अपने साथ खेलने का मौका दिया।  
उन दिनों गांव की कोई लड़की वुशु नहीं खेलती थी। लोग महिला बाक्सिंग से तो परिचित थे पर महिला वुशु खिलाड़ी की कहीं कोई चर्चा नहीं थी। तब जमुना यह तो नहीं जानती थीं कि खेल में उनका भविष्य है या नहीं, पर उन्हें वुशु खेल अच्छा लगता था इसलिये वो खेलने लगीं। स्थानीय कोच बिना फीस के उन्हें ट्रेनिंग देने लगे। जल्द ही गांव में यह बात फैल गई कि एक लड़की वुशु गेम सीख रही है।  

सबसे अच्छी बात यह थी कि मां ने उन्हें खेलने से नहीं रोका। पर जल्द ही जमुना को इस बात एहसास हुआ कि वुशू गेम में उनके लिये कोई खास संभावना नहीं है। उन्होंने बॉक्सर मेरीकॉम के बारे में काफी सुन रखा था। वो बाक्सिंग सीखना चाहती थीं, पर गांव में इसकी ट्रेनिंग की कोई सुविधा नहीं थी। जब उन्होंने अपने कोच से बात की तो उन्होंने भी यही राय दी कि तुम्हें  बॉक्सिंग सीखनी चाहिये। 

कोच को यकीन था कि अगर इस लड़की को ट्रेनिंग मिले तो यह बेहरतीन बाक्सर बन सकती है। जमुना बताती हैं, मुझे मेरीकॉम से प्रेरणा मिली। जब वो तीन बच्चों की मां होकर बाक्सिंग कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। वो मेरी रोल मॉडल हैं। मैं उनके जैसी बॉक्सर बनना चाहती हूं।

यह बात 2009 की है। वुशु सिखाने वाले कोच उन्हें गुवाहाटी बाक्सिंग ट्रेनिंग सेंटर ले गये। वहां उनका चयन हो गया। जमुना के मन में डर था पता नहीं मां उन्हें गांव छोड़कर गुवाहाटी जाने की इजाजत देंगी या नहीं। पर यह आशंका गलत साबित हुई। मां ने उन्हें यह आशीर्वाद देकर विदा किया कि जाओ और मन लगाकर खेलो। जमुना कहती हैं, मां ने सब्जी बेचकर हम भाई-बहनों को पाला। दीदी की शादी की। वैसे सब्जी बेचना खराब काम नहीं है। मुझे गर्व है मां पर।   

ट्रेनिंग के दौरान उनका प्रदर्शन शानदार रहा। 2010 में वो पहली बार तमिलनाडु के इरोड में आयोजित सब जूनियर महिला राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप में खेलीं और गोल्ड मेडल जीतकर गांव लौटीं। यह उनका पहला गोल्ड मेडल था। गांव में बड़ा जश्न हुआ। अगले साल कोयंबटूर में दूसरे सब जूनियर महिला राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया। जमुना कहती हैं, मां ने बहुत मेहनत की है। उनका पूरा जीवन तपस्या रहा है। जब मैं मेडल जीतकर गांव लौटी तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। सच कहूं तो उनके हौसले ने मुझे खिलाड़ी बनाया। 

साल 2013 बहुत खास रहा उनके लिये। इस साल सर्बिया में आयोजित इंटरनेशनल सब-जूनियर गर्ल्स बॉक्सिंग टूर्नामेंट में उन्होंने गोल्ड जीतकर देश को एक बड़ा तोहफा दिया। फिर तो मानो मानों उन्हें जीत का चस्का लग गया। अगले साल यानी 2014 में रूस में बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर चैंपियन बनीं। तरक्की का सफर रफ्तार पकड़ने लगा। 2015 में ताइपे में यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता। अब उनका लक्ष्य 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेना है। आजकल वो इसकी तैयारी में जुटी हैं। जमुना कहती हैं, प्रैक्टिस के दौरान मैं अक्सर लड़कों से मुकाबला करती हूं। खेल के समय मैं यह नहीं देखती कि सामने लड़का है या लड़की। मेरा मकसद सामने वाले को हराना होता है। अब मैं ओलंपिक में जाना चाहती हूं। 
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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