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चौथे नंबर पर आने का दुख

रियो के टाइम के हिसाब से दो-ढाई बजे मेरा इवेंट था। मुझे सिर्फ इतना याद है कि नंदी सर ने कहा था कि बेटा, तुम्हें कुछ भी नया नहीं करना है, जो अब तक सीखती आई हो, बस उसी को खूब अच्छी तरह करना। अपना...

चौथे नंबर पर आने का दुख
दीपा करमाकर मशहूर जिमनास्ट Sun, 16 Jul 2017 12:13 AM
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रियो के टाइम के हिसाब से दो-ढाई बजे मेरा इवेंट था। मुझे सिर्फ इतना याद है कि नंदी सर ने कहा था कि बेटा, तुम्हें कुछ भी नया नहीं करना है, जो अब तक सीखती आई हो, बस उसी को खूब अच्छी तरह करना। अपना ‘बेस्ट’ प्रदर्शन करना। तुमने फाइनल के लिए जगह बनाई, यह अपने आप में बड़ी कामयाबी है। तुमने आठवें नंबर पर क्वालिफाई किया है। अब इससे नीचे तो जा नहीं सकती हो। इससे ऊपर आने का मौका तुम्हारे पास जरूर है। मेरे ऊपर किसी तरह का दबाव नहीं था। मैं बिल्कुल ‘फ्री’ थी। हमारे साथ जो साइकोलॉजिस्ट थीं- भावना मैडम, उन्होंने भी कहा कि तुम बिल्कुल हंसते हुए अपना इवेंट करना। तुम जब हंसकर जाती हो, तो अच्छा करती हो। तुम्हारे दांत दिखते रहने चाहिए। 

फिर मैंने कॉम्पिटिशन किया। मेरा फाइनल नंबर चौथा था। मैं जानती थी कि आठवें से चौथे नंबर पर आना कितना टफ है। जब मैं एरिना से बाहर निकली, तब मुझे पता चला कि मैं कितने कम अंतर से चौथे पायदान पर आई। इसके बाद तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई। तब मुझे लगा कि मेरा मेडल मिस हो गया। मैं लगातार रोती जा रही थी। रह-रहकर बस यही ख्याल आ रहा था कि अगर थोड़ी सी मेहनत और कर ली होती, तो आज मैं ओलंपिक मेडल जीत सकती थी। 

सर ने मुझे समझाना शुरू किया। कॉम्पिटिशन से पहले सर ने एक भी दिन ‘मैकडॉनल्ड’ में खाने नहीं दिया था। उस दिन वह खुद बोले- चलो, मैकडॉनल्ड चलते हैं। तुम्हें जो मन करे, वह खाओ। अब मेरे दिमाग से रियो ओलंपिक निकल चुका है। सर जानते थे कि मुझे कैसे संभालना है? मैं दोबारा रोने लगी, तो उन्हें भी रोना आ गया। चौथे पायदान पर आने का दुख बहुत बड़ा होता है। मैं एशियन गेम्स में भी चौथे नंबर पर आई थी। पांचवें-छठे नंबर पर शायद दुख कम होता है। चौथे नंबर पर आने का मतलब है-मेडल आते-आते रह जाना। फिर कोच सर ने मुझे समझाया कि अगली बार और मेहनत करेंगे और मेडल लाएंगे। उस दिन किसी से घर पर बात भी नहीं हुई। अगले दिन जब बात हुई, तो पापा-मम्मी बहुत खुश थे। उन्होंने भी समझाया कि मेडल के पीछे मत रोओ, यह सोचो कि तुम ओलंपिक में चौथे नंबर पर आई। तुमको मेडल मिल जाता, तो क्या पता, तुम जिमनास्टिक छोड़ ही देती, पर अभी तुम्हें खुद को मॉटिवेट करके अगली बार और अच्छा करना है। अगले दिन जब मुझे पता चला कि अमिताभ बच्चन जैसे बड़े स्टार मेरा खेल देख रहे थे, तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे लगता है कि अब मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। मुझे अब देश के लिए मेडल जीतना है।

मैं रियो में साक्षी और सिंधु से नहीं मिल पाई थी, पर भारत लौटने के बाद मैंने दोनों से मिलकर उन्हें बधाई दी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था कि जहां-जहां उन दोनों का नाम लिया जा रहा था, वहां मुझे भी बुलाया गया। लेकिन उनमें और मेरे में बहुत फर्क है। उनके पास ओलंपिक का मेडल है। मेरे कोच सर ने अगले ओलंपिक के लिए तैयारियां शुरू करा दी हैं। हमें देश के लिए मेडल जीतना है। ओलंपिक से पहले स्पोर्ट्स अथॉरिटी ने बहुत सहयोग दिया। उनके सपोर्ट के बिना इस मुकाम पर नहीं पहुंच सकते थे। यहां सभी लोग बहुत मदद करते हैं। दिल्ली में हमारे स्टेडियम की एडमिनिस्ट्रेटर मंजूश्री मैम हैं। वह हमें बिल्कुल घर की तरह रखती हैं। यहां तक कि हम यहीं हॉस्टल में पार्टी करते हैं। दोस्तों के जन्मदिन मनाते हैं। त्योहार मनाते हैं। चार साल से मैंने अपना जन्मदिन कैंप में ही मनाया है।

अब मैं आगे की तैयारी पर फोकस कर रही हूं। हमारे जो मूवमेंट होते हैं, उसमें ‘प्वॉइंट’ कट जाते हैं। मुझे अब वह गलती दोबारा नहीं करनी है। जिमनास्टिक के अलावा मेरा कोई शौक नहीं है। 2015 के बाद तो फिल्म देखने जाने का समय ही नहीं मिला। कुछ पाने के लिए छोटे-मोटे ‘सेक्रीफाइस’ तो कर ही सकते हैं। हम जब मन चाहे, तब घर नहीं जा सकते। जो मन करे, वह खा नहीं सकते। लेकिन इन सारी बातों को मैं बहुत छोटा-छोटा सेक्रीफाइस मानती हूं। मुझे मिठाई बहुत पसंद है, लेकिन मैं खा नहीं सकती हूं। रियो के बाद बहुत सारे पुराने दोस्तों के फोन आए। उनमें से कई मिलने भी आए। 2016 में मुझे और मेरे कोच को एक साथ सम्मानित भी किया गया। मुझे खेल रत्न दिया गया और कोच सर को द्रोणाचार्य अवॉर्ड। उस दिन को मैं अपनी जिंदगी में कभी भूल नहीं सकती हूं। सचिन तेंदुलकर और अभिनव बिंद्रा मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। मैं सचिन सर से दो बार मिली भी, उन्होंने कहा कि खूब मेहनत करो। दिमाग को जमीन पर रखो। कुछ इधर-उधर का मत सोचो। अभी अगर कोई त्रिपुरा के बारे में पूछता है, तो लोग कहते हैं कि वही स्टेट, जहां से दीपा है। मुझे इस बात का बहुत गर्व है। 

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