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बेटे ने मोहन वीणा में किया बदलाव

एक बार अमेरिका में एक कार्यक्रम हुआ था। वहां का एक वाकया मुझे याद आ रहा है। मेरा कार्यक्रम सुनने के लिए वहां करीब 80 साल की एक महिला आई थीं। उनकी पर्सनैलिटी बिल्कुल अलग सी थी। उनका एक...

बेटे ने मोहन वीणा में किया बदलाव
विश्व मोहन भट्ट प्रसिद्ध मोहन वीणा वादकSat, 06 May 2017 11:45 PM
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एक बार अमेरिका में एक कार्यक्रम हुआ था। वहां का एक वाकया मुझे याद आ रहा है। मेरा कार्यक्रम सुनने के लिए वहां करीब 80 साल की एक महिला आई थीं। उनकी पर्सनैलिटी बिल्कुल अलग सी थी। उनका एक ‘औरा’ था। उन्होंने कहा- ‘आई हैव नॉट सीन गॉड, बट टुडे आई फील देयर इज सम गॉड इन योर म्यूजिक’ यानी आज मुझे अनुभूति हुई कि यहां आपके संगीत में ईश्वर मौजूद थे। मुझे ऐसी तारीफ किसी से नहीं मिली थी। मेरी आंखों के सामने वह शाम घूम गई, जब मैंने पहला ऑटोग्राफ मुंबई में दिया था। वह मेरा दूसरा ही कार्यक्रम था। उस समय मुझे यह एहसास हुआ था कि अब मैं कलाकार बन गया हूं। अब लोग मेरा ऑटोग्राफ लेने के लिए आ रहे हैं। वह एक सुखद अनुभव जरूर था, मगर ऐसी तारीफ तो कभी किसी ने की ही नहीं थी। ऐसे ही, एक बार जाने-माने कलाकार एरिक क्लैपटन ने टेक्सास में एक बड़ा कार्यक्रम किया था। उसमें करीब 60 हजार लोग थे। वहां पर बीबी किंग व एरिक क्लैपटन जैसे बड़े-बड़े कलाकार थे। वहां मुझे 12 मिनट का वक्त दिया गया था। बस 12 मिनट में मुझे अपनी इतने साल की तपस्या दिखानी थी। ऊपर वाले के आशीर्वाद से वह कार्यक्रम भी बहुत सफल रहा था। 

मैंने हिंदी फिल्मों के लिए भी थोड़ा-बहुत काम किया है। बवंडर   में मैंने अपने बेटे सौरभ के साथ काम किया था। मुझे एआर रहमान भी कभी-कभी बुलाते हैं। लगान और साथिया  के लिए उन्होंने मुझे बुलाया था। विशाल भारद्वाज ने इश्किया व डेढ़ इश्किया  जैसी फिल्मों के लिए बुलाया। बप्पी लाहिड़ी जी ने भी बुलाया। इस तरह थोड़ा-बहुत फिल्मी म्यूजिक भी किया। एआर रहमान के सेके्रटरी का फोन आया कि रहमान आपसे बात करना चाहते हैं। वह मणिरत्नम की फिल्म थी। मैं जब रहमान से मिलने गया, तो मणिरत्नम भी वहां मौजूद थे। उन्होंने ग्रैमी अवॉर्ड का जिक्र करते हुए कहा कि वह मेरे साथ काम करके बहुत खुश होंगे। विशाल भारद्वाज भी कहते हैं कि पंडित जी, मैं आपको क्या बताऊं, आपको जैसा समझ आए, वैसा कीजिए। उसके बाद तो मैं जो दिल से निकलता है, वह कर देता हूं। 

मैंने ग्रैमी या पद्मभूषण पाने के लिए काम नहीं किया। शास्त्रीय संगीत युवाओं तक पहुंचे, यह सबसे ज्यादा जरूरी है। लोग हमारे पांव छूते हैं, इतनी इज्जत देते हैं, इतना प्यार करते हैं, उससे ज्यादा बढ़कर कुछ भी नहीं है। शास्त्रीय संगीत रातोंरात सफलता या प्रतिष्ठा दिलाने वाली ‘फील्ड’ नहीं है। इसमें लगातार मेहनत और समर्पण चाहिए। शास्त्रीय संगीत में आपकी यात्रा धीरे-धीरे चलती है। कलाकार को पहचान या मान्यता बहुत धीरे-धीरे मिलती है।  

मेरे दो बेटे हैं। सलिल ने मोहन वीणा में भी थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने मोहन वीणा से ‘नेक’ हटा दिया है और पूरा साज एक ही लकड़ी के टुकड़े से बनाया है। उनके ‘सात्विक वीणा’ में कोई जोड़ नहीं है। इसकी वजह यह है कि एक बार सफर के दौरान मेरे साज को सही तरीके से नहीं रखा गया था, जिससे उसका ‘नेक’ टूट गया। मेरा कार्यक्रम था ‘मॉ्ट्रिरयल’ में, मैंने जब वहां साज खोला, तो देखा कि वह तो टूटा हुआ है। बाद में मैंने उसे बनवाकर कार्यक्रम किया। उसी घटना के बाद सलिल के मन में आया कि इस परेशानी को हमेशा के लिए ही खत्म कर दिया जाए। इसलिए उन्होंने लकड़ी के एक पूरे टुकड़े पर इस साज को बनाया। छोटे बेटे सौरभ भी मोहन वीणा बजाते हैं। उनकी एक रिकॉर्डिंग भी अभी एचएमवी से आई है। वह कंपोजर भी हैं। म्यूजिक कंपोज करते है। मेरे जितने प्रोजेक्ट हुए- ‘म्यूजिक फॉर रिलैक्सेशन’, ‘म्यूजिक फॉर सोल’, ‘सेलीब्रेशन ऑफ लव’, ‘मेघदूतम’, ‘मीरा’ सब सौरभ ने किया है। वह साउंड इंजीनियर भी हैं। 

सलिल और साज का किस्सा तो चर्चा में भी आया था। नगालैंड की एक सोसाइटी है, जो नगा म्यूजिक का जगह-जगह प्रचार-प्रसार करती है। मैं उनका ‘ब्रांड एंबेस्डर’ हूं। वे लोग मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मैं वहां का ‘स्टेट गेस्ट’ होता हूं। जब भी जाता हूं, वहां राजभवन में ठहरता हूं। उनकी सोसाइटी का एक म्यूजियम है, जिसमें उन्होंने अलग-अलग तरह के साज रखे हुए हैं। एक बार मैं भी वहां गया, मैं वहां भावुक हो गया। मैं इतना भावुक था कि बगैर सोचे-समझे मैंने उन्हें वह साज ‘डोनेट’ कर दिया, जो 28 साल से मेरे साथ था। मेरे इस फैसले को घरवालों ने पसंद नहीं किया। सलिल ने खास तौर पर। उन्होंने कहा कि यह ठीक नहीं है। वह हमारी धरोहर है, उसे हम अपने साथ रखेंगे। वहां म्यूजियम में उसका कोई उपयोग नहीं है। वह यहां रहेगा, तो हम रोज उसे देखेंगे। उसकी ‘वैल्यू’ हमारे यहां होगी कि इस साज ने आपको पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। आखिरकार मैंने वहां के लिए दूसरी मोहन वीणा बनाई और पुरानी मोहन वीणा वापस ली। 

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