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Hindi News ओपिनियन मेरी कहानीवह बचपन और शरारतें ही शरारतें

वह बचपन और शरारतें ही शरारतें

मेरा जन्म इलाहाबाद में हुआ है। वहीं परवरिश भी हुई। शुरुआती पढ़ाई से लेकर संगीत सीखने तक, सब कुछ वहीं हुआ। मेरे पिताजी स्कंद गुप्त और मां जया, दोनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाते थे। मेरे...

वह बचपन और शरारतें ही शरारतें
शुभा मुद्गल, शास्त्रीय गायिकाSat, 30 Sep 2017 11:12 PM
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मेरा जन्म इलाहाबाद में हुआ है। वहीं परवरिश भी हुई। शुरुआती पढ़ाई से लेकर संगीत सीखने तक, सब कुछ वहीं हुआ। मेरे पिताजी स्कंद गुप्त और मां जया, दोनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाते थे। मेरे दादाजी भी अंग्रेजी विभाग में ही थे। मेरी मौसी भी अंग्रेजी विभाग में थीं। घर में पढ़ने-पढ़ाने का माहौल था। इसके अलावा हमारे पिताजी को खेलों में बहुत रुचि थी। वह क्रिकेट के एक्सपर्ट माने जाते थे। उस बचपन की बहुत सी यादें हैं। होली के लिए हमारे पिताजी टेसू के फूल खरीद लाते थे। उन फूलों को बाकायदा साफ किया जाता था। फिर पानी में उबाला जाता था। हम लोग बड़े उत्साह में होते थे। वहीं दूसरी तरफ, दादाजी को होली का हो-हल्ला बिल्कुल पसंद नहीं था। वह कहते थे कि जिसको जो बदमाशी करनी है, करे; मैं अपनी लाइब्रेरी में पढ़ता रहूंगा।  

लेकिन हम सब लोग इसी ताक में रहते थे कि वह कब बाहर निकलें और उन पर रंग डाला जाए। बड़ी-बड़ी पिचकारियां ‘टेस्ट’ की जाती थीं। होली के दिन दादाजी एक बार सबसे मिलने छत पर आते थे। उसके बाद उन्हें किसी बहाने से बाहर बुलाया जाता और जो पिचकारियां हफ्तों से ‘टेस्ट’ की हुई होती थीं कि कितनी दूर तक उनकी धार जाएगी, उनसे हम नीचे से उनके ऊपर टेसू के रंग डाला करते थे। दादाजी पर रंग डाल हम बड़े खुश होते कि वाह, क्या उपलब्धि है! होली पर ऐसी हुड़दंग चलती रहती थी। साथ में गाना-बजाना भी चलता था। होली में ढपली गाई जाती है। किसी का नाम किसी के साथ मिलाकर। कई बार तो ऐसा लगता है कि अब भी कानों में वह सब कुछ सुनाई दे रहा है। सबका हो हल्ला। हमारी नानी भी साथ में थीं। घर पर एक से बढ़कर एक पकवान बनते थे। होली जमकर खेली जाती थी और फिर उनके हाथ से बनी गुझिया, सेव, नमकीन, मीठा, सब खाने को मिलता था। शाम को तैयार होकर हम परिचितों के यहां मिलने जाते थे। इलाहाबाद की ऐसी कई सुखद यादें हैं, लेकिन दूसरे शहरों में रहते हुए अब कभी-कभी लगता है कि वे सारी चीजें हम भूल गए हैं। 

मेरी एक बहन है रागिनी। वह मुझसे तीन साल छोटी है। बचपन में पता नहीं किस बात पर बीच-बीच में हम लोगों में ठन जाती थी और हम मार-पिटाई पर उतर आते थे। मां को इस बात पर बहुत गुस्सा आता था। वह कहती थीं- तुम्हारी एक ही बहन है। प्लीज, उसे प्यार से रख लो। बावजूद इसके मेरी दादागीरी चलती थी। मैं खूब बदमाशी करती थी। आपस में हम खूब लड़ते थे। एक दिन मां यूनिवर्सिटी से घर आईं, तब हम दोनों लड़ रहे थे। उन्होंने गुस्से में कहा कि हम तुम्हें घर से निकाल रहे हैं। उन्होंने हमें घर के बगीचे में निकाल दिया। थोड़ी देर में ही वहां पर चिलचिलाती धूप आ गई। मेरी बहन ने कहा- बड़ी प्यास लग रही है, चलो मां से माफी मांग लेते हैं। मैंने कहा- नहीं, बिल्कुल नहीं, सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने हमें घर से निकाला, अब हम वापस नहीं जाएंगे। मैंने अपना ढीठपना दिखाया। रागिनी बेचारी बीच-बीच में रोए भी जा रही थी। जो लोग घर के आस-पास से निकल रहे थे, वे भी पूछ रहे थे कि अरे, इतनी धूप में तुम लोग बाहर क्या कर रहे हो? मैं कह रही थी कि हम लोग खेल रहे हैं। मैंने जिद पकड़ ली, तो फिर अंदर जाकर मां से माफी नहीं मांगी। थोड़ी देर बाद, जब पिताजी आए और उनके लिए दरवाजा खुला, तो रागिनी तो जल्दी से अंदर घुस गई, लेकिन मैं फिल्मी गाने गाते बाहर ही खड़ी रही। मैं ऐसा दिखा रही थी, जैसे मुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ा। थोड़ी देर बाद पिताजी बाहर आए और बोले- चलो, अंदर आ जाओ।

उस पर भी मैंने यही कहा- नहीं, हमें कोई तकलीफ नहीं है, हम बाहर ही रहेंगे। रूठना-मनाना चला। उसके बाद मैं घर के अंदर गई। हालांकि बाद में मैंने बहन को ही नहीं, बल्कि मां-पिताजी को भी ‘सॉरी’ कहा। मैं सेंट मेरीज कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थी। वहां हमारा लंच टाइम बहुत मजेदार होता था। सभी के घर से अलग-अलग लंच आता। हम इस ताक में रहते थे कि किसके लंच में क्या आया है? एक लड़की थी, जो अपने लंच-बॉक्स से किसी को कुछ नहीं खिलाती थी। हम मिलकर उसको तंग करते कि दिखाओ न, आज तुम्हारे लंच बॉक्स में क्या है? एक दिन वह दो गुलाब जामुन लेकर आई थी। हम लोगों ने आदतन पूछा कि क्या लेकर आई हो? उसने कहा कि आज मैं गुलाब जामुन लेकर आई हूं। हमने कहा कि तुम्हारे पास दो गुलाब जामुन हैं, एक हम लोगों को दे दो। उसने हमेशा की तरह मना कर दिया। हमने कहा- अच्छा दिखाना तो जरा, जैसे ही उसने टिफिन खोला, हम लोग दोनों तरफ से उसके टिफिन पर झपटे और छीनकर भाग गए। छीनने वालों में एक मैं भी थी। उसे बहुत बुरा लगा। उसने घर जाकर बताया कि ये दोनों मेरा गुलाब जामुन छीनकर खा गए। उस दिन घर में बहुत डांट पड़ी कि अब तुम दूसरों के लंच बॉक्स छीनकर खा जाओगी?  
                (जारी...)
      
 

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