फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन मेरी कहानीकथक से हुई संगीत की शुरुआत

कथक से हुई संगीत की शुरुआत

बचपन में दो विषय ऐसे थे, जिनमें मुझे भयंकर नंबर मिले। एक तो फिजिक्स और दूसरा नीडल वर्क यानी सिलाई-कढ़ाई। दोनों में एक बार मुझे सौ में से पांच नंबर मिले थे। पिताजी कम बोलते थे, मगर इशारों में बहुत कुछ...

कथक से हुई संगीत की शुरुआत
शुभा मुद्गल, शास्त्रीय गायिकाSat, 07 Oct 2017 10:12 PM
ऐप पर पढ़ें

बचपन में दो विषय ऐसे थे, जिनमें मुझे भयंकर नंबर मिले। एक तो फिजिक्स और दूसरा नीडल वर्क यानी सिलाई-कढ़ाई। दोनों में एक बार मुझे सौ में से पांच नंबर मिले थे। पिताजी कम बोलते थे, मगर इशारों में बहुत कुछ बोल जाते थे। पढ़ाई को लेकर उन्होंने यह कह रखा था कि हम नहीं चाहते कि हर रोज तुम्हारे साथ बैठें और कहें कि होमवर्क किया कि नहीं, अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारे लिए पढ़ाई जरूरी है, तो तुम अपने आप पढ़ो। पढ़ाई में तुम्हें ‘इंटरेस्ट’ होना चाहिए, और हमें कुछ नहीं चाहिए। हम तुमसे नहीं कहेंगे कि इतने घंटे पढ़ो, तुम अपने आप तय करो कि तुम्हें कब और कितना पढ़ना है? उनकी तरफ से बस यही आदेश था कि क्लास में ‘रेग्यूलर’ जाना है,  वहां कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी। स्कूल का काम पूरा करना है, साफ-सफाई से करना है। इसके साथ-साथ डांस का रियाज करते रहना है। 

मैंने चार साल की उम्र से ही कथक सीखना शुरू किया था। जयपुर के गंगानी परिवार के एक जाने-माने गुरु थे। वह घर आकर सिखाते थे। मेरे शास्त्रीय संगीत सीखने की बात दरअसल कथक से संबंधित जो ठुमरी गायन है, उससे चली थी। एक दिन मां ने कहा कि तुम डांस सीख रही हो, तुम्हें गाना भी सीखना चाहिए, क्योंकि कथक में ऐसी परंपरा है। वैसे भी, उनकी सोच थी कि मेरे अंदर कला के अंतर्संबंधों की समझ होनी चाहिए। मां चाहती थीं कि मैं कथक सीखूं या कुछ और, लेकिन साथ में मुझे गायन भी सीखना चाहिए। इस नजरिये से मेरी संगीत की तालीम शुरू कराने की बात हुई। पढ़ाई के साथ-साथ संगीत सीखने को लेकर हमें कभी लगा ही नहीं कि हम कोई बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। सब साथ-साथ हो जाता था। घर में सुनने, पढ़ने और बात करने का माहौल था। कोई नई किताब आई है, तो उस पर चर्चा हो रही है। फलां शायर को सुन रहे हैं। मुशायरे में पिताजी जाते, तो आकर हमें भी सुनाते थे। माहौल ऐसा था कि पढ़ाई और संगीत साथ-साथ चलता रहा। मेरा बचपन इसी तरह निकल गया। मुझे कभी ऐसा लगा ही नहीं कि परीक्षा आ गई है, हाय-हाय अब तो सब कुछ बंद करना पड़ेगा। परीक्षा के दौरान भी संगीत को लेकर कोई मनाही नहीं थी। तब तक इलाहाबाद के लोगों को ज्यादातर यही पता था कि मैं कथक करती हूं।

इस तरह मैं इंटरमीडिएट कॉलेज तक पहुंच गई। हमारे स्कूल में एक सिस्टर यूजीनिया थीं। एक दिन उन्होंने पिताजी को बुलाया और कहा कि शास्त्रीय संगीत सिखाने वाली एक बहुत ही अच्छी टीचर स्कूल में आई हैं। उनका नाम है कमला बोस और हम चाहते हैं कि शुभा भी उनसे सीखे। पिताजी ने कहा कि लेकिन शुभा तो कथक सीख रही है, उसने गाना तो सीखा नहीं है। इंटरमीडिएट कॉलेज में आ भी गई है। ऐसे एकाएक तो कोई शास्त्रीय संगीत सीख नहीं सकता। सिस्टर ने कहा कि शुभा को एक महीना कोशिश करने दीजिए, अगर ऐसा लगा कि इससे नहीं हो पा रहा, तो ‘सब्जेक्ट’ बदलवा देंगे। कमला दी के बारे में क्या कहूं, उनका गाना बहुत सरस था। वह पंडित रामाश्रय झा जी की शिष्या थीं। उनका स्वभाव भी बहुत मीठा था। दूसरी तरफ, हम लोग एक से बढ़कर एक छंटे हुए बदमाश। लेकिन उन्होंने इस प्रेम से सिखाया कि एक महीना कब निकल गया, हमें पता ही नहीं चला। उन्होंने ही मेरे पिताजी और मां से कहा कि इसको आप गुरुजी के पास ले जाइए। उनके सुझाव पर ही पिताजी और मां मुझे पंडित रामाश्रय झा जी के पास ले गए। पंडित जी एक तरीके से मां-पिताजी के ‘कलीग’ भी थे, क्योंकि वह भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संगीत विभाग में पढ़ाते थे। पहली बार मिलने के बाद गुरुजी ने कहा कि इसे थोड़ा सीखने दीजिए, फिर लेकर आइएगा। मेरे पास इतने ‘एडवांस’ लोग आते हैं कि सरगम से शुरू करवाना मुश्किल होगा। 

इसी दौरान मेरा इंटरमीडिएट पूरा हो गया। फिर बीए में दाखिला हुआ। वहां ‘टैलेंट-कॉन्टेस्ट’ हो रहा था। कमला दी से सीखकर मैंने उसमें हिस्सा लिया। मीराबाई का भजन था- बसो मेरे नैनन में नंदलाल।  मुझे लगा कि वह भजन तो मुझे अच्छी तरह आता है। मेरा अंदाज भी वही था, जो बचपन में या युवावस्था में होता है कि हम तो बड़े तीसमार खां हैं। बस इसी अंदाज में मैं स्टेज पर पहुंची, जैसे कि स्टेज पर गाना मेरा रोज का काम है। सामने देखा, तो पंडितजी बैठे हुए हैं जज करने के लिए। उसके बाद मेरी जो घिग्घी बंधी कि पूछिए मत, उस रोज मैंने कितना बुरा गाया। इसके बाद भी पंडितजी इतने उदार थे कि एक रोज घर आए। दरवाजे पर घंटी बजी, तो मैं कोई फिल्मी गाना गाते हुए दरवाजा खोलने पहुंची। सामने देखा, तो पंडितजी खड़े थे। उन्होंने पूछा कि मां-पिताजी कहां हैं? वह अंदर आए, बैठे और मां-पिताजी से कहा- ले आइएगा इसको मेरे पास। इतवार-इतवार को लेकर आइएगा। और इस तरह उनसे शास्त्रीय गायन सीखना शुरू हो गया।
(जारी...) 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें