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स्कूल से पहले शुरू हो गई जिमनास्टिक

मेरा पूरा बचपन जिमनास्टिक में ही बीता है। मैंने साढ़े पांच साल की उम्र से ही जिमनास्टिक शुरू कर दी थी। तब तक मैंने स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया था। पापा स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में वेटलिफ्टिंग के...

स्कूल से पहले शुरू हो गई जिमनास्टिक
दीपा करमाकर, मशहूर जिमनास्ट Sun, 18 Jun 2017 12:09 AM
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मेरा पूरा बचपन जिमनास्टिक में ही बीता है। मैंने साढ़े पांच साल की उम्र से ही जिमनास्टिक शुरू कर दी थी। तब तक मैंने स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया था। पापा स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में वेटलिफ्टिंग के कोच थे। परिवार में खेल का अच्छा-खासा माहौल था। मेरी बुआ तैराक थीं। फूफा जी भी जिमनास्ट थे। मेरे ‘कजिन’ जिमनास्टिक करते थे। मेरी बहन योग करती थी। बचपन में पापा ही मुझे जिमनास्टिक कराने के लिए लेकर जाते थे। उन्होंने सोच लिया था कि अपनी दोनों बेटियों में से एक को खेल की दुनिया में जरूर ले जाएंगे। इसके लिए उन्होंने मुझे चुना। तब मैं सोमा मैम के पास जाती थी। वहां जिम में मैं खूब शरारत करती थी। कभी किसी को मार दिया, तो कभी किसी को धक्का दे दिया। बंगाली में कहते हैं ‘दुष्टामि’, मैं ऐसी शरारतें खूब करती थी। 

जब स्कूल जाना शुरू किया, तो मैं वहां भी झगड़ा कर लेती थी। यहां तक कि मैं अपनी बड़ी बहन को भी नहीं छोड़ती थी। उसे मार तक देती थी। घर में दीदी के साथ मैंने खूब मार-पिटाई की है। अगर घर में हम दोनों के लिए आइसक्रीम आई, तो मैं अपनी वाली आइसक्रीम जल्दी-जल्दी खा लेती थी, फिर दीदी वाली पर मेरी नजर रहती थी। मैं जिद करके उसमें भी हिस्सा लेती थी। इन बातों पर उनसे मेरा झगड़ा होता था। दीदी जब कभी, मुझे मारने के लिए आती, मैं फटाफट घर से बाहर भाग जाती थी। 

मेरे घर वालों ने शायद तभी ‘नोटिस’ किया कि मैं हर वक्त इधर से उधर कूदती रहती हूं। वैसे जिमनास्टिक की उम्र भी यही होती है, चार-पांच साल। पापा कोच थे ही, तो उन्होंने सोचा कि अगर मुझे जिमनास्टिक करानी ही है, तो कम उम्र से ही शुरू करनी होगी। जिमनास्टिक में मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई। मुझे याद है कि घर की तरह ही जिम में भी मैं इधर से उधर कूदती रहती थी। कहीं से भी कूद जाती थी। चोट लगने से बिल्कुल नहीं डरती थी। जिम में प्रैक्टिस शुरू की, तो अपने लिए नए-नए ‘चैलेंज’ तलाशती रहती थी। यहां तक कि सीनियर दीदी लोग जिम में जिस तरह की प्रैक्टिस करती थीं, मैं भी वैसा करने की कोशिश करती। 

लेकिन कुछ बड़े होने पर जब मैं आगे की ट्रेनिंग की तैयारी कर रही थी, तो पहली बार एक परेशानी का पता चला। मेरा पैर- ‘फ्लैट फुट’ था। उसके पहले किसी ने यह बात नहीं कही थी। जब हॉस्टल में जाने का वक्त आया, तो एक सर ने बताया कि ये जिमनास्टिक नहीं कर सकती है, क्योंकि इसका ‘फ्लैट फुट’ है। तब मैं करीब आठ-नौ साल की थी। आम तौर पर यह बात मानी जाती है कि अगर किसी का ‘फ्लैट फुट’ है, तो वह जिमनास्टिक नहीं कर सकता। लेकिन इसके बाद मैं नंदी सर के पास गई। उन्होंने मुझे कुछ एक्सरसाइज कराना शुरू किया। वह जैसा बोलते थे, मैं बिल्कुल वैसा ही करती थी। धीरे-धीरे वह परेशानी खत्म हो गई और मेरी ‘प्रॉपर प्रैक्टिस’ शुरू हो गई। 

मेरे ऊपर कभी भी इस बात का दबाव नहीं रहा कि सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करना है। बावजूद इसके स्कूल में भी मैं अच्छी ही थी। ज्यादातर क्लासेज में मैं पहली तीन लड़कियों में ही रहती थी, यानी फर्स्ट, सेकंड या फिर थर्ड। इसलिए मुझे हर कोई बहुत प्यार करता था। मेरे स्कूल से भी मुझे बहुुत सपोर्ट मिला। मेरा स्कूल ‘मॉर्निंग सेशन’ का था। तब तक मुझे कोई परेशानी नहीं होती थी। बाद में, जब मेरा स्कूल चार बजकर बीस मिनट तक का हो गया, तब मुझे जिमनास्टिक पै्रक्टिस के लिए जाने में दिक्कत होती थी। स्कूल वालों को पता चला, तो उन्होंने मुझे तीन बजे ही छुट्टी देनी शुरू कर दी। अगर मुझे किसी बड़े टूर्नामेंट में भाग लेना होता, तो उससे पहले भी छुट्टी मिल जाती थी। 

बचपन में अगर स्कूल ने ‘सपोर्ट’ न किया होता, तो जिमनास्टिक की ‘प्रैक्टिस’ अच्छी तरह नहीं हो सकती थी। स्कूल में मेरे चार-पांच पक्के दोस्त थे। वे अक्सर मुझसे पूछते- तू पहले क्यों चली जाती है? मैं उन्हें बताती थी कि मेरा जाना जरूरी है। बाद में, जब वे मेरे खेल को जान गए, तो वे आगे बढ़कर मदद करने लगेे। प्रैक्टिस पर जाने के लिए, जो क्लास मुझे छोड़नी पड़ती, उनके सारे नोट्स मेरे दोस्त ही मुझे दिया करते थे। कभी-कभी स्कूल में कोई कार्यक्रम हो रहा होता, तब भी मैं तीन बजे के बाद स्कूल में नहीं रुकती थी। मुझे याद है कि मैंने कभी भी स्कूल में पूरी क्लास नहीं की। कभी-कभार मेरे दोस्तों को गुस्सा भी आता था कि मैं खेल के साथ-साथ पढ़ाई में भी अच्छा कर लेती थी। उन्हीं के नोट्स लेकर उन सबसे अच्छे नंबर लाती थी, लेकिन बाद में उन्हें जब पता चल गया कि मेरे लिए जिमनास्टिक कितनी जरूरी है, तो उन्होंने मुझे बहुत ‘सपोर्ट’ किया। जब स्कूल छूटा, तो उसके बाद वे सारे दोस्त मेरे संपर्क से बाहर हो गए। मैं सिर्फ और सिर्फ जिमनास्टिक पर ‘फोकस’ करने लगी।
(जारी...)  

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